सोज़-ए-ग़म देके मुझे उस ने ये इर्शाद किया
जा तुझे कश-मा-कश-ए-दहर से आज़ाद किया
वो करें भी तो किन अल्फ़ाज़ में तेरा शिकवा
जिन को तेरी निगाह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहना ना दिया
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया
ऐसे में मैं तेरे तज-तकल्लुफ़ पे निसार
फिर तो फ़र्माये वफ़ा आप ने इर्शाद किया
इस का रोना नहीं क्यों तुमने किया दिल बर्बाद
इस का ग़म है कि बहुत देर में बर्बाद किया
इतना मासूम हूँ फ़ितरत से, कली जब चटकी
झुक के मैं ने कहा, मुझसे कुछ इरशाद किया
मेरी हर साँस है इस बात की शाहिद-ए-मौत
मैं ने हर लुत्फ़ के मौक़े पे तुझे याद किया
मुझको तो होश नहीं तुमको ख़बर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुमने मुझे बर्बाद किया
वो तुझे याद करे जिसने भुलाया हो कभी
हमने तुझ को ना भुलाया ना कभी याद किया
कुछ नहीं इस के सिवा 'जोश' हरीफ़ों का कलाम
वस्ल ने शाद किया हिज्र ने नाशाद किया
--जोश मलिहाबादी
[sard=cold]
[taj-takalluf=to give up/sacrifice formality/reticence; irshaad=to show the way]
[fitarat=nature; irashaad=to speak]
[shaahid-e-maut=witness of death]
[hariifo.n=rivals; kalaam=words/conversation; vasl=union/meeting]
[shaad=happy; hijr=separation; nashaad=unhappy]
Source : http://www.urdupoetry.com/josh03.html
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Thursday, March 4, 2010
इस का ग़म है कि बहुत देर में बर्बाद किया
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