ज़रा गौर फरमाइयेगा
गम नहीं, शिकवा नहीं, अफ़सोस मे दिल रोया है,
कितना बदनसीब है वो, पाकर हमे खोया है |
उसके लिए दुनिया की दलीलों को झुटा देते,
हम ऐब भी उसके तमगो से सजा देते,
फिर दिल क्यों न उसे देते खेलने के वास्ते,
हमने फरेब भी जिसका, गज़लों में संजोया है |
कितना बदनसीब है वो, पाकर हमे खोया है |
वो खेल ज़माने भर के मेरे दिल के साथ करता,
नफरत भरी नज़र से मुस्कुरा के बात करता,
दर्द मेरे ज़ज्बात का वो कैसे समझता भला,
चाहत को जिसने नफरत के, धागों से पिरोया है |
कितना बदनसीब है वो, पाकर हमे खोया है |
हम जिनके ख्यालो में दिन रात हुए थे गुम
कहते है हमको ज्यादा सोचा न करो तुम,
उल्फत में किसी की जगना "इफ्त" वो क्या जाने,
बेफिक्र होके हर रात जो, आराम से सोया है|
कितना बदनसीब है वो, पाकर हमे खोया है |
--इफ्त
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