कौन कहता है गम नहीं है रे
आँख ही बस ये नम नहीं है रे
चाहता है तू आदमी होना
आरजू ये भी कम नहीं है रे
मैं हूँ, बस मैं ही, सिर्फ मैं ही हूँ
एक भी शब्द "हम" नहीं है रे
थी दुआ जिसकी बेअसर उसकी
बद्दुआ में भी दम नहीं है रे
वो मेरा हमसफ़र तो होगा पर
वो मेरा हमकदम नहीं है रे
दर्द दे और छीन ले आँसू
इससे बढ़कर सितम नहीं है रे
खुद को 'अद्भुत' मैं मान लूं शायर
मुझको इतना भी भ्रम नहीं है रे
-अरुण मित्तल अद्भुत
Source : http://kavita.hindyugm.com/2009/06/blog-post_12.html
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