Thursday, June 11, 2009

मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने

मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने
अब गुज़ारेगा मेरे साथ ज़माने कितने

मैं गिरा था तो बहुत लोग रुके थे लेकिन
सोचता हूं मुझे आये थे उठाने कितने

जिस तरह मैने तुझे अपना बना रक्खा है
सोचते होंगें यही बात ना जाने कितने

तुम नया ज़ख्म लगाओ! तुम्हे इस से क्या है
भरने वाले हैं अभी ज़ख्म पुराने कितने

--सीमाब अकबराबादी

No comments:

Post a Comment