दोस्तो, राज़ फिल्म में इस्तेमाल किया गयी एक बहुत ही खूबसूरत गज़ल है
हालाकि फिल्म में इस गज़ल में बदलाव कर के पेश किया गया है
Original गज़ल इस प्रकार है, और कतील शिफ़ाई द्वारा लिखी गई है
गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं
बच निकलते हैं अगर आतिह-ए-सय्याद से हम
शोला-ए-आतिश-ए-गुलफ़ाम से जल जाते हैं
ख़ुदनुमाई तो नहीं शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा
जिन को जलना हो वो आराम से जल जाते हैं
शमा जिस आग में जलती है नुमाइश के लिये
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं
जब भी आता है मेरा नाम तेरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मेरे नाम से जल जाते हैं
रब्ता बाहम पे हमें क्या ना नहेंगे दुश्मन
आशना जब तेरे पैग़ाम से जल जाता है
--क़तील शिफ़ाई
Source : http://www.urdupoetry.com/qateel22.html
Ye udaas udaas thandak jo aseer hai chaman mein,
ReplyDeleteKahin bijliyan na bhar dein kisi gosha-e-chaman mein,
Meri muflisi se bachkar kahin aur jane wale,
Yeh sukun nahi milega tujhe reshmi kafan mein,
Main tulu'-e-sub'h-e-nau se abhi mutma'een nahin hun,
Tera husn bhi to hota kisi khushnuma kiran mein,
Main liye liye phira hun gham-e-zindgi ka lasha,
Kabhi apni khilwaton mein kabhi teri anjuman mein,
Tere gham mein bah chuka hai mera ek ek aansu,
Nahi ab koi sitara jo chamak sake gagan mein,
Main Qateel woh musafir hun jahan-e-bebasi ka,
Jo bhatak ke rah gaya hai kisi ajnabi watan mein!
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