Thursday, April 8, 2010

अब भला छोड़ कर घर क्या करते

अब भला छोड़ कर घर क्या करते
शाम के वक्त सफर क्या करते

तेरी मसरूफियतें जानते थे
अपने आने की खबर क्या करते
(मसरूफियतें : Engagements)

जब सितारे ही नहीं मिल पाए
ले के हम शम्स-ओ-कमर क्या करते
(शम्स-ओ-कमर : Sun And The Moon)

वो मुसाफिर ही खुली धुप का था
साये फैला के शजर क्या करते
(शजर : Tree)

ख़ाक ही अव्वल-ओ-आखिर थी
कर के ज़र्रे को गौहर क्या करते
(ख़ाक : Dust;
अव्वल-ओ-आखिर : In The Beginning And The End;
ज़र्रे : Particles;
गौहर : Jewels)


राय पहले से ही बना ली तूने
दिल में अब हम तेरे घर क्या करते

इश्क ने सारे सलीके बख्शे
हुस्न से कसब-ए-हुनर क्या करते
(सलीके : Etiquettes; Kasb-E-Hunar : ?)

--परवीन शाकिर

4 comments:

  1. This is by Parveen Shakir (Pakistani poetess)
    Listen to it at http://www.youtube.com/watch?v=su_SYVa3OfA by Tina Sani

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  2. Thanks Abhishek for letting us know.

    Updated both the writer's name and video.

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  3. Thanks Yogesh! The writer name should be परवीन शाकिर (Parveen Shakir) and not प्रवीण शकीर (Praveen Shakeer).

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