Friday, April 30, 2010

क्या समझे ?

बात दलदल की करे जो वो कमल क्या समझे ?

प्यार जिसने न किया ताजमहल क्या समझे ?

यूं तो जीने को सभी जीते हैं इस दुनिया में,

दर्द जिसने न सहा हो वो ग़ज़ल क्या समझे ?

--अज्ञात

मंजिलें क्या है रास्ता क्या है

मंजिलें क्या है रास्ता क्या है
हौसला हो तो फासला क्या है

वो सज़ा दे के दूर जा बैठा
किस से पूछूँ मेरी खता क्या है

-आलोक श्रीवास्तव

उसे ये शिकवा के मैं उसे समझ न सका

उसे ये शिकवा के मैं उसे समझ न सका
और मुझे ये नाज़ के मैं जानता बस उसको था

--अज्ञात

Thursday, April 29, 2010

अपनी सूरत लगी पराई सी

दिल के दीवार-ओ-दर पे क्या देखा
बस तेरा नाम ही लिखा देखा

तेरी आँखों में हमने क्या देखा
कभी कातिल कभी खुदा देखा

अपनी सूरत लगी पराई सी
जब कभी हमने आईना देखा

हाय अंदाज़ तेरे रुकने का
वक्त को भी रुका रुका देखा

तेरे जाने में और आने में
हमने सदियों का फासला देखा

फिर न आया खयाल जन्नत का
जब तेरे घर का रास्ता देखा

तेरी आँखों में हमने क्या देखा
कभी कातिल कभी खुदा देखा

दिल के दीवार-ओ-दर पे क्या देखा
बस तेरा नाम ही लिखा देखा

--सुदर्शन फाकिर

जगजीत और चित्रा की आवाज़ में ये गीत आप youtube पर सुन सकते हैं

तेरी बेरुखी और तेरी मेहरबानी

तेरी बेरुखी और तेरी मेहरबानी
यही मौत है और यही जिंदगानी

वही इक फ़साना वही इक कहानी
जवानी जवानी जवानी जवानी

तेरी बेरुखी और तेरी मेहरबानी
यही मौत है यही जिंदगानी

लबो पर तबस्सुम तो आँखों में पानी
यही है यही दिल जलो की निशानी

बताऊँ है क्या आंसुओं की हकीक़त
जो समझो तो सब कुछ, न समझो तो पानी

--अज्ञात

जगजीत सिंह की आवज में सुनिए

दर्द से दो-दो हाथ कौन करे

बात करनी थी ,बात कौन करे
दर्द से दो-दो हाथ कौन करे.

हम सितारे तुम्हें बुलाते हैं
चाँद ना हो तो रात कौन करे .

हम तुझे रब कहें या बुत समझें
इश्क में जात-पात कौन करे

जिंदगी भर कि कमाई तुम हो
इस से ज्यादा ज़कात कौन करे

--डा कुमार विश्वास

तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी

ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं,

तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी.

--वसीम बरेलवी

तुम्हारे पास मेरे सिवा सब कुछ है,

तुम्हारे पास मेरे सिवा सब कुछ है,
मेरे पास सिवा तुम्हारे कुछ भी नही

--अज्ञात

Monday, April 26, 2010

यूँ प्यार को आज़माना नहीं था

दूरी को अपनी बढ़ाना नहीं था
यूँ प्यार को आज़माना नहीं था

उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था

चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था

दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था

उल्फत में कैसे वफ़ा मिलती "श्रद्धा"
किस्मत में जब ये खज़ाना नहीं था

--श्रद्धा जैन

Source : http://bheegigazal.blogspot.com/2010/04/blog-post_25.html

Friday, April 23, 2010

कभी टूटा ही नहीं मेरे दिल से तेरी यादों का तिलिस्म,

कभी टूटा ही नहीं मेरे दिल से तेरी यादों का तिलिस्म,
गुफ्तगू जिस से भी हो, ख्याल तेरा ही रहता है
--अज्ञात

Tuesday, April 20, 2010

एक वो जो मोहब्बत का सिला देता है

एक वो जो मोहब्बत का सिला देता है
ये ज़माना ही वफाओं की सज़ा देता है

वो भी आंसू है जो आग बुझाए दिल की
ये भी आंसू जो दामन जो जला देता है

--अज्ञात

Sunday, April 18, 2010

हम उसके बिना ज़िन्दगी गुज़ार ही देंगें

हम उसके बिना ज़िन्दगी गुज़ार ही देंगें फराज़
हसरत-ए-ज़िन्दगी था वो, शर्त-ए-ज़िन्दगी तो नहीं

--अहमद फराज़

हमारे बाद नहीं आयेगा तुम्हें चाहत का ऐसा मज़ा फ़राज़

हमारे बाद नहीं आयेगा तुम्हें चाहत का ऐसा मज़ा फ़राज़
तुम लोगों से कहते फिरोगे, मुझे चाहो उसकी तरह

--अहमद फ़राज़

मेरी हर मांगी हुई दुआ बेकार गयी फ़राज़

मेरी हर मांगी हुई दुआ बेकार गयी फ़राज़
जाने किस शक्स ने चाहा था इतनी शिद्दत से उसे

--अहमद फ़राज़

ज़िन्दगी में इस से बढ़ कर रन्ज क्या होगा फ़राज़

ज़िन्दगी में इस से बढ़ कर रन्ज क्या होगा फ़राज़
उसका ये कहना कि तू शायर है दीवाना नहीं

--अहमद फराज़

जिंदगी हूँ तुम्हारी गुज़ारो मुझे

चाहे जितना मुंह से भी पुकारो मुझे
जिंदगी हूँ तुम्हारी गुज़ारो मुझे

अपने घर में हो चारों तरफ आईने
मैं संवारू तुम्हे तुम संवारो मुझे

मैं तुम्हारी नज़र में तो इक खेल हूँ
चाहे जीतो मुझे चाहे हारो मुझे

--अंजुम रहबर

और तो कुछ भी पास निशानी तेरी

और तो कुछ भी पास निशानी तेरी
देखती रहती हूँ तस्वीर पुरानी तेरी

लड़कियां और भी मनसूब तेरे नाम से हैं
क्या कोई मेरी तरह भी है दीवानी तेरी

मैं अगर होंट भी सी लूं तो मेरी खामोशी
सारी दुनिया को सूना देगी कहानी तेरी

मेरे फूलों में महकता है पसीना तेरा
और हाथो में खनकती है जवानी तेरी

राजमहलों में कनीजों का रहा है कब्ज़ा
और जंगल में भटकती रही रानी तेरी

--अंजुम रहबर

खामोश राहों में तेरा साथ चाहिए

खामोश राहों में तेरा साथ चाहिए
तनहा है मेरा हाथ, तेरा हाथ चाहिए

मुझको मेरे मुक़द्दर पर इतना यकीन तो है
तुझको भी मेरे लफ्ज़, मेरी बात चाहिए

मैं खुद अपनी शायरी को क्या अच्छा कहता
मुझको तेरी तारीफ, तेरी दाद चाहिए

--अज्ञात

किसी के प्यार में दीवानावार हम भी हैं

किसी के प्यार में दीवानावार हम भी हैं
तुम्हारी तरह तार तार हम भी हैं
मेरी आँखों में आंसू नहीं मोतिया है
ग़मों के शहर के जागीरदार हम भी हैं
--अज्ञात

कोई नहीं है चाहने वाले तो क्या हुआ

कोई नहीं है चाहने वाला तो क्या हुआ
मेरी तरफ नहीं है उजाला तो क्या हुआ

धरती को मेरी जात से कुछ तो नमी मिली
फूटा है मेरे पाँव का छाला तो क्या हुआ

सारी दुनिया ने हम पे लगाईं तोहमतें
तूने भी मेरा नाम उछाला तो क्या हुआ

--अज्ञात

तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो

तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
तुमको देखूं या तुमसे बात करूँ

--अज्ञात

हस्ती के मेरे मानी कुछ तुझसे जुदा तो नहीं

हस्ती के मेरे मानी कुछ तुझसे जुदा तो नहीं
फिर क्यों गुरूर है, मैं गर नहीं तो, तू भी खुदा तो नहीं

--आलोक मेहता

बेजुबान को वो जब जुबां देता है

बेजुबान को वो जब जुबान देता है
पढ़ने को वो अपनी किताब, कुरान देता है
बक्शने पर आये जब उम्मत के गुनाह
तोहफे में हम गुनाहगारो को वो रमजान देता है

--अज्ञात

मिलना था इत्तफाक, बिछड़ना नसीब था

मिलना था इत्तफाक, बिछड़ना नसीब था
वो फिर उतनी दूर हो गया, जितना करीब था

बस्ती के सारे लोग ही आतिस-परस्त थे
घर जल रहा था, और समंदर करीब था

अंजुम मैं जीत कर भी यही सोचती रही
जो हार कर गया, वो बड़ा खुशनसीब था

--अंजुम रहबर

Saturday, April 17, 2010

जिंदगी में किसी का साथ काफी है

जिंदगी में किसी का साथ ही काफी है
हाथो में किसी का हाथ ही काफी है
दूर हो या पास फरक नहीं पड़ता
प्यार का तो बस एहसास ही काफी है

--अज्ञात

जाओ हम ऐतबार करते हैं

हम बुतों से जो प्यार करते हैं
नकले परवरदिगार करते हैं

इतनी कसमें न खाओ घबराकर
जाओ हम ऐतबार करते हैं

अब भी आ जाओ कुछ नहीं बिगड़ा
अब भी हम इन्तजार करते हैं

--अज्ञात

सोचना ही फ़िज़ूल है शायद

सोचना ही फ़िज़ूल है शायद
जिंदगी एक भूल है शायद

हर नज़ारा दिखाई दे धुंधला
मेरी आँखों पे धुल है शायद

इक अजब सा सुकून है दिल में
आपका ग़म क़ुबूल है शायद

दोस्ती प्यार दुश्मनी नफरत
यूं लगे सब फ़िज़ूल है शायद

किस कदर चुभ रहा हूँ मैं
मेरे दामन में फूल है शायद

--राजेन्द्र टोकी

Thursday, April 15, 2010

जब मेरी हक़ीकत जा जा कर उनको सुनाई लोगों ने

जब मेरी हक़ीकत जा जा कर उनको सुनाई लोगों ने
कुछ सच भी कहा, कुछ झूठ कहा ,कुछ बात बनाई लोगों ने,

ढाए हैं हमेशा ज़ुल्म - ओ- सितम दुनिया ने मोहब्बत वालों पर
दो दिल को कभी मिलने ना दिया दीवार उठाई लोगों ने,

आँखो से ना आँसू पोंछ सके ,होंठो पे ख़ुसी देखी ना गयी
आबाद जो देखा घर मेरा तो आग लगाई लोगों ने,

तन्हाई का साथी मिल ना सका ,रुसवाई मे शामिल शहर हुआ
पहले तो मेरा दिल तोड़ दिया फिर ईद मनाई लोगों ने,

इस दौर मे जीना मुश्किल है ,ये इश्क़ कोई आसान नही
हर एक कदम पर मरने की अब रस्म चलाई लोगों ने...

--Unknown

Wednesday, April 14, 2010

ताबीर जो मिल जाती, तो इक ख़्वाब बहुत था

ताबीर जो मिल जाती, तो इक ख़्वाब बहुत था
जो शख्स गँवा बैठे हैं नायाब बहुत था
मैं कैसे बचा लेता भला कश्ती-ए-दिल को
दरिया-ए-मोहब्बत में सैलाब बहुत था
--अज्ञात

Tuesday, April 13, 2010

जज़्बात-ए-इश्क नाकाम न होने देंगे

जज़्बात-ए-इश्क नाकाम न होने देंगे
दिल की दुनिया में कभी शाम न होने देंगे
दोस्ती का हर इलज़ाम अपने सर पर ले लेंगे
पर दोस्त हम तुम्हे बदनाम न होने देंगे

--अज्ञात

तेरी जुदाई में दिल बेकरार न करूँ

तेरी जुदाई में दिल बेकरार न करूँ
तू हुकुम दे तो तेरा इंतज़ार न करूँ
बेवफाई करनी हो तो इस कदर कर
तेरे बाद मैं किसी से प्यार न करूँ

--अज्ञात

Monday, April 12, 2010

आप की यांद ना आयें तो हम बेवफ़ा

आप की यांद ना आयें तो हम बेवफ़ा
आप बुलाऒ और हम ना आये तो हम बेवफ़ा
हमे मरने के लिये खंजर की जरुरत नही ,
बस एक बार नजरे फ़ेर लो अगर ना मर जायें तो हम बेवफ़ा

--अज्ञात

मुँह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन

मुँह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में, ख़ामोशी पहचाने कौन ।

सदियों-सदियों वही तमाशा, रस्ता-रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं, खो जाता है जाने कौन ।

जाने क्या-क्या बोल रहा था, सरहद, प्यार, किताबें, ख़ून
कल मेरी नींदों में छुपकर, जाग रहा था जाने कौन ।

वो मेरा आईना है और मैं उसकी परछाई हूँ
मेरे ही घर में रहता है, मुझ जैसा ही जाने कौन ।

किरन-किरन अलसाता सूरज, पलक-पलक खुलती नींदें
धीमे-धीमे बिखर रहा है, ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन

--निदा फाजली


Sunday, April 11, 2010

हम रूठे तो किसके भरोसे

हम रूठे तो किसके भरोसे
कौन है जो आएगा हमें मनाने के लिए
हो सकता है तरस आ भी जाए आपको
पर दिल कहाँ से लाऊं आपसे रूठ जाने के लिए

--सत्येन्द्र तिवारी

तेरे बगैर भी जीना बहुत मुहाल नहीं

तेरे बगैर भी जीना बहुत मुहाल नहीं
ये बात और है के मुझसे जिया नहीं जाता

--अज्ञात

बहुत अज़ीज़ था वो शख्स हाँ मगर यारो

बहुत अज़ीज़ था वो शख्स हाँ मगर यारो
बिछड़ गया तो मुझे भूलना पड़ा आखिर !!!
--अज्ञात

Thursday, April 8, 2010

अब भला छोड़ कर घर क्या करते

अब भला छोड़ कर घर क्या करते
शाम के वक्त सफर क्या करते

तेरी मसरूफियतें जानते थे
अपने आने की खबर क्या करते
(मसरूफियतें : Engagements)

जब सितारे ही नहीं मिल पाए
ले के हम शम्स-ओ-कमर क्या करते
(शम्स-ओ-कमर : Sun And The Moon)

वो मुसाफिर ही खुली धुप का था
साये फैला के शजर क्या करते
(शजर : Tree)

ख़ाक ही अव्वल-ओ-आखिर थी
कर के ज़र्रे को गौहर क्या करते
(ख़ाक : Dust;
अव्वल-ओ-आखिर : In The Beginning And The End;
ज़र्रे : Particles;
गौहर : Jewels)


राय पहले से ही बना ली तूने
दिल में अब हम तेरे घर क्या करते

इश्क ने सारे सलीके बख्शे
हुस्न से कसब-ए-हुनर क्या करते
(सलीके : Etiquettes; Kasb-E-Hunar : ?)

--परवीन शाकिर

दिल की चौखट पे एक दीप जला रखा है

दिल की चौखट पे एक दीप जला रखा है
तेरे लौट आने का इमकान सजा रखा है

साँस तक भी नहीं लेते हैं तुझे सोचते वक़्त
हम ने इस काम को भी कल पे उठा रखा है
रूठ जाते हो तो कुछ और हसीन लगते हो
हम ने यह सोच के ही तुम को खफा रखा है

तुम जिसे रोता हुआ छोड़ गये थे एक दिन
हम ने उस शाम को सीने से लगा रखा है
चैन लेने नही देता यह किसी तौर मुझे
तेरी यादों ने जो तूफान उठा रखा है

जाने वाले ने कहा था क वो लौट आएगा ज़रूर
एक इसी आस पे दरवाज़ा खुला रखा है
तेरे जाने से जो इक धूल उठी थी गम की
हम ने उस धूल को आँखों में बसा रखा है

मुझ को कल शाम से वो बहुत याद आने लगा
दिल ने मुद्दत से जो एक शख्स भुला रखा है
आखिरी बार जो आया था मेरे नाम पैगाम
मैने उसी कागज़ को दिल से लगा रखा है

दिल की चौखट पे एक दीप जला रखा है.

--अज्ञात

Source : http://shayari.wordpress.com/2006/09/17/%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%AA-%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%96%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88/

शाम का सूरज हूँ, पूजता कोई नहीं

शाम का सूरज हूँ, पूजता कोई नहीं
जब सुबह होगी तो मै ही देवता हो जाऊँगा

लोग जब पूछेंगे मुझ से मेरी बर्बादी का हाल
तेरे दर के सामने जाकर खडा हो जाऊँगा

दिल गया दामन गया और होश भी हैं लापता
रफ़्ता-रफ़्ता एक दिन मै भी लापता हो जाऊँगा

इश्क में कायम करेंगे दूरियों के सिलसिले
आज तू मुझ से खफा कल मैं तुझ से खफा हो जाऊँगा

--अज्ञात

Wednesday, April 7, 2010

इस कदर हम यार को मनाने निकले

इस कदर हम यार को मनाने निकले
उसकी चाहत के हम दीवाने निकले
जब भी उसे दिल का हाल बताना चाहे
तो उसके होंटों से वक़्त न होने के बहाने निकले

--अज्ञात

Monday, April 5, 2010

नकाब उलटे हुए जब से वो गुज़रता है

नकाब उलटे हुए जब से वो गुज़रता है
समझ कर फूल उसके लैब पे तितली बैठ जाती है

--अज्ञात

Sunday, April 4, 2010

उधेड़-बुन: 21 वीं सदी


उधेड़-बुन: 21 वीं सदी

खींच लेती है हमें तुम्हारी मोहब्बत वरना

खींच लेती है हमें तुम्हारी मोहब्बत वरना
आखिरी बार मिले हैं कईं बार तुझसे

--अज्ञात

तुझको पाने की तमन्ना तो मिटा दी मैंने

तुझको पाने की तमन्ना तो मिटा दी मैंने
दिल से लेकिन तेरे दीदार की हसरत न गयी

--अज्ञात

जाने किसका नाम खुदा था पीतल के गुलदानो पर

सस्ते दामो तो ले आते पर दिल तो था भर आया
जाने किसका नाम खुदा था पीतल के गुलदानो पर

--अज्ञात

Friday, April 2, 2010

मैं उसका हूँ, वो इस एहसास से इनकार करता है

मैं उसका हूँ, वो इस एहसास से इनकार करता है
भरी महफ़िल में भी रुसवा, मुझे हर बार करता है
यकीन है सारी दुनिया को, खफा है मुझसे वो लेकिन
मुझे मालूम है फिर भी, मुझी से प्यार करता है
--डा कुमार विश्वास

तन का कुर्ब ना मांगो

मोहब्बत बंदगी है इसमे तन का कुर्ब ना मांगो

के जिसको छु लिया जाये उसे पुजा नही करते

--अज्ञात

न छूने की इजाज़त है

न छूने की इजाज़त है, न पा सकता हूँ मैं तुमको,
चलो आज ये तय कर लें, कि मेरी हद कहाँ तक है
--अज्ञात