Tuesday, September 25, 2018

लंबी कर दी

मुख़्तसर सी थी सो शुरुआत लम्बी कर दी
कुछ इस तरह से हमने बात लम्बी कर दी

सुबह तलक टूट जायेंगे मालूम था ख़्वाब
बस इस ख़ातिर खींचकर रात लम्बी कर दी

ऐ ज़िन्दगी तुझसे मिलकर अच्छा तो लगा
पर तूने बेवजह मुलाक़ात लम्बी कर दी

छाई कुछ यूँ कि घटती ही नहीं तनिक
घटा ने बढ़ाकर बरसात लम्बी कर दी

बात बात में ‘अमित’ ये छोटी सी ग़ज़ल
तुमने देखो बिना-बात लम्बी कर दी

No comments:

Post a Comment