Saturday, November 16, 2019

मारूफियत में आती है बेहद तुम्हारी याद

ये कैसा नशा है

ये कैसा नशा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ
तू आ के जा भी चुका है मैं इंतिज़ार में हूँ

रविवार में मिलावट

कुछ किस्से कहूं

सोचता हूं ना सोचूं तुझे

सोचता हूँ न सोचूँ तुझे...

पर ये भी सोचना, सोचने से कम है क्या..?

नादानी और तजुर्बे का बटवारा हो रहा है

हलके हलके बढ रही है चेहरे की लकीरें..

नादानी और तजुर्बे का बटवारा हो रहा है..!!