Tuesday, September 29, 2009

रोज़ किसी का इंतज़ार होता है

रोज़ किसी का इंतज़ार होता है
रोज़ ये दिल बेकरार होता है
कैसे समझायें इन दुनिया वालों को
कि चुप रहने वालों को भी प्यार होता है
--अज्ञात

Monday, September 28, 2009

सातो दिन भगवान के, क्या मंगल क्या वीर

सातो दिन भगवान के, क्या मंगल क्या वीर
जिस दिन सोया देर तक, भूखा रहा फ़कीर



--निदा फ़ाज़ली

Another version of this is here

Source : http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment
/story/2006/09/060915_nida_column6.shtml

Saturday, September 26, 2009

बाज़ी-ए-इश्क़ कुछ इस तरह से हारे यारो

बाज़ी-ए-इश्क़ कुछ इस तरह से हारे यारो
ज़ख्म पर ज़ख्म लगे दिल पे हमारे यारो

कोई तो ऐसा हो जो घाव पर मरहम रखे
यूँ तो दुश्मन न बनो सारे के सारे यारो

बज़्म में सर को झुकाये हुए जो बैठे हैं
इनको मत छेड़ो ये हैं इश्क़ के मारे यारो

जिन में होते थे कभी मेहर-ओ-वफा के मोती
इन हीं आंखों में सितम के हैं शरारे यारो

दोस्त ही अपने जो करने लगे नज़र-ए-तूफान
काम नहीं आते फिर कोई सहारे यारो

संग ग़ैरों ने मारे तो कोई दुख ना हुआ
मर गये तुमने मगर फूल जो मारे यारो

वो जो रहा दिलगीर तुम्हारी खातिर
तुमने क्या क्या नहीं ताने उसे मारे यारो

--अज्ञात

ज़िन्दगी जब भी किसी शै को तलब करती है

ज़िन्दगी जब भी किसी शै को तलब करती है
मेरे होंटों से तेरा नाम मचल जाता है
--अज्ञात

Friday, September 25, 2009

भ्रम तेरी वफाओं का मिटा देते तो क्या होता

भ्रम तेरी वफाओं का मिटा देते तो क्या होता
तेरे चेहरे से हम परदा उठा देते तो क्या होता

मोहब्बत भी तिजारत हो गयी है इस ज़माने में
अगर ये राज़ दुनिया को बता देते तो क्या होता

तेरी उम्मीद पर जीने से हासिल कुछ नहीं लेकिन
अगर यूँ ही न दिल को आसरा देते तो क्या होता

--उमेमा

Thursday, September 24, 2009

कागज़ की कश्ती थी, पानी का किनारा था

कागज़ की कश्ती थी, पानी का किनारा था
खेलने की मस्ती थी, दिल अपना आवारा था
कहां आ गये इस समझदारी के दलदल में
वो नादान बचपन ही कितना प्यारा था
--सन्नी

जीने के सिर्फ एक बहाने मे मर गये

जीने के सिर्फ एक बहाने मे मर गये
हम ज़िन्दगी का बोझ उठाने मे मर गये

अच्छा था घर की आग बुझाने में मरते हम
अफ़सोस अपनी जान बचाने मे मर गये

--अज्ञात

फ़ैज़ रंग भी अशार में आ सकता था

इसी गज़ल का दूसरा शेर

फ़ैज़ रंग भी अशार में आ सकता था
उंगलियाँ साथ तो दें खून में तर होने तक
--दिलावर फिगार

हमारे दिल की मत पूछो बड़ी मुश्किल में रहता है

हमारे दिल की मत पूछो बड़ी मुश्किल में रहता है
हमारी जान का दुश्मन हमारे दिल में रहता है
--सतपाल ख़याल

अगर कुछ मुंह से कहता हूँ

अगर कुछ मुंह से कहता हूँ, मज़ा नज़रों का जाता है
अगर खामोश रहता हूँ,कलेजा मुंह को आता है
--अज्ञात

Wednesday, September 23, 2009

खेल मुहब्बत का है जारी

कैसे बीती रात न पूछो
बिगड़े क्यों हालात न पूछो

दिल की दिल में ही रहने दो
दिल से दिल की बात न पूछो

ज्ञान ध्यान की सुन लो बातें
जोगी की तुम जात न पूछो

देखा तुमको दिल बौराया
भड़के क्यों जज़बात न पूछो

खेल मुहब्बत का है जारी
किस की होगी मात, न पूछो

प्रेम-नगर में 'श्याम सखा’ जी
क्या पायी सौगात, न पूछो

--श्याम सखा


Source : http://gazalkbahane.blogspot.com/2009/09/blog-post.html

थोड़ी है

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है

हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
सदाक़त=Authenticity, Truth

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
मसनद=Throne

सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

--राहत इंदोरी


Source : http://www.fundoozone.com/forums/showthread.php?t=20695

Sunday, September 20, 2009

दुआ नहीं तो गिला देता कोई

दुआ नहीं तो गिला देता कोई
मेरी वफ़ओं का क्या सिला देता कोई
जुब मुक़द्दर ही नहीं था अपना
देता भी तो भला क्या देता कोई

हासिल-ए-इश्क़ फ़क़त दर्द है
ए काश पहले ही बता देता कोई.
तक़दीर नहीं थी गर आसमान छूना
खाक़ में ही मिला देता कोई

बेवफा भी हुमें बेवफा कह गया
इससे ज़्यादा क्या दगा देता कोई.
गुमान ही हो जाता किसी अपने का
दामन ही पकड़ कर हिला देता कोई

अरसे से अटका है हिचकियों पे दम
अच्छा होता जो भुला देता कोई
ये तो रो रो के कट गयी 'अहसान'
क्या होता अगरचे हंसा देता कोई

--अज्ञात

तखुल्लुस देख कर लगता है कि शायर का नाम अहसान रहा होगा, अगर आप में से किसी को इस गज़ल के शायर का पूरा नाम पता तो कृपा कर के बताने का कष्ट करें

Saturday, September 19, 2009

मंदर च फुल्ल चढ़ौण गये तां एहसास होया

मंदर च फुल्ल चढ़ौण गये तां एहसास होया
पत्थरां दी खुशी लई फुल्लां दा कत्ल कर आये
--अज्ञात

कितने गालिब थे जो पैदा हुए और मर भी गए

कितने गालिब थे जो पैदा हुए और मर भी गए..
कदरदान को तखल्लुस की खबर होने तक !!
--दिलावर फिगार


इसी गज़ल का दूसरा शेर

तुमको देखा तो मोहब्बत की समझ आई फ़राज़

तुमको देखा तो मोहब्बत की समझ आई फ़राज़
वरना इस लव्ज़ की तारीफ सुना करते थे
--अहमद फराज़

कब तक रहोगे आखिर यूँ दूर दूर हमसे

कब तक रहोगे आखिर यूँ दूर दूर हमसे
मिलना पड़ेगा आखिर एक दिन ज़रूर हम से

दामन बचाने वाले ये बेरुखी है कैसी
कह दो अगर हुआ है कोई कसूर हम से

हम छीन लेंगे तुमसे ये शान-ए-बेनियाज़ी
तुम मांगते फिरोगे अपना गुरूर हमसे
[बेनियाज़ी=आज़ादी]
--अज्ञात

Thursday, September 17, 2009

कीमत क्या है प्यार की?

मैने पूछा खुदा से कीमत क्या है प्यार की

खुदा हस कर बोले --

आंसू भरी आंखें, उमर इंतज़ार की

--अज्ञात

हम इन्तज़ार करेंगे तेरा क़यामत तक

हम इन्तज़ार करेंगे तेरा क़यामत तक
ख़ुदा करे कि क़यामत हो और तू आए

यह इन्तज़ार भी एक इम्तेहान होता है
इसी से इश्क का शोला जवान होता है
यह इन्तज़ार सलामत हो और तू आए

बिछाए शौक़ के सजदे वफ़ा की राहों में
खड़े हैं दीद की हसरत लिए निगाहों में
कुबूल दिल की इबादत हो और तू आए

वो ख़ुशनसीब हो जिसको तू इन्तख़ाब करे
ख़ुदा हमारी मोहब्बत को कामयाब करे
जवाँ सितार-ए-क़िस्मत हो और तू आए

ख़ुदा करे कि क़यामत हो और तू आए

--साहिर लुधियानवी


Wednesday, September 16, 2009

ये दर्द कम तो नहीं है के तू हमें न मिला

ये दर्द कम तो नहीं है के तू हमें न मिला
ये और बात है, हम भी न हो सके तेरे
--अज्ञात

Tuesday, September 15, 2009

ठहरे हुए कदमों से सफ़र सर नही होता

ठहरे हुए कदमों से सफ़र नही होता
हाथों की लकीरों में मुक़द्दर नही होता

देखा है बिछड़कर के बिछड़ने का असर भी
मुझ पर तो बहुत होता है उस पर नही होता

अगर औरों के आँसू मेरी आँख में ना होते
कुछ और ही मैं होता सुखनवर नहीं होता

--अज्ञात

फूल खिलना चाहता है, कली खिलने नहीं देती

फूल खिलना चाहता है, कली खिलने नहीं देती
दिल मिलना चाहता है, किस्मत मिलने नहीं देती
--अज्ञात

हां ये सच है, तुम मिल नहीं पाये लेकिन

हां ये सच है, तुम मिल नहीं पाये लेकिन
ये तो बताओ मोहब्बत में मिला कौन है
--अज्ञात

Sunday, September 13, 2009

अभी आये हैं, बैठे हैं, अभी दामन सम्भाला है

अभी आये हैं, बैठे हैं, अभी दामन सम्भाला है
आपकी जाऊँ जाऊँ ने हमारा दम निकाला है
--अज्ञात


फिल्म मुकद्दर का सिकन्दर का शेर है

इस शहर-ए-नामुराद की इज़्ज़त करेगा कौन

इस शहर-ए-नामुराद की इज़्ज़त करेगा कौन
अरे हम ही चले गये तो मोहब्बत करेगा कौन
इस घर की देख भाल को वीरानियां तो हों
इस घर की देख भाल को वीरानियां तो हों
जाले हटा दिये तो हिफ़ाज़त करेगा कौन
--अज्ञात


Hindi Song Title: TUM TOH THEHRE PARDESI
Hindi Movie/Album Name: TUM TOH THEHRE PARDESI
Singer(s): ALTAF RAJA

Source : http://forum.hindilyrics.net/showthread.php?t=1099

मेरे काम का है, न दुनिया के काम का

मेरे काम का है, न दुनिया के काम का
अरे दिल ही तुम्हें खुदा ने दिया दस ग्राम का
--अज्ञात


Hindi Song Title: Donon Hi Mohabbat Ke
Hindi Movie/Album Name: TUM TOH THEHRE PARDESI
Singer(s): ALTAF RAJA

ज़िन्दगी है और दिल-ए-नादान है

ज़िन्दगी है और दिल-ए-नादान है
क्या सफर है, और क्या सामान है
मेरे ग़मों को भी समझ कर देखिये
मुस्कुरा देना बहुत आसान है
--अज्ञात


Hindi Song Title: Donon Hi Mohabbat Ke
Hindi Movie/Album Name: TUM TOH THEHRE PARDESI
Singer(s): ALTAF RAJA

न पीने का शौक था, न पिलाने का शौक था

न पीने का शौक था, न पिलाने का शौक था
हमें तो बस नज़रें मिलाने का शौक था
पर क्या करें यारो, हम नज़रें ही उन से मिला बैठे
जिन्हें नज़रों से पिलाने का शौक था
--अज्ञात

अपना हिस्सा शुमार करता था

अपना हिस्सा शुमार करता था
मुझसे इतना वो प्यार करता था

वो बनाता था मेरी तस्वीरें
उनसे बातें हज़ार करता था

मेरा दुख भी खुलूस-ए-नीयत से
अपना दुख शुमार करता था

पहले रखता था फूल रासते में
फिर मेरा इंतज़ार करता था

आज पहलू में वो नहीं फराज़
जो मुझ पे जान निसार करता था

--अहमद फराज़

मैं तेरे ज़र्फ को पहचान कर जवाब दूँगा

मैं तेरे ज़र्फ को पहचान कर जवाब दूँगा
तू मुझे मेरे कद के बराबर सवाल दे
--अज्ञात


ज़र्फ=Capability, capacity

हम न भी रहे तो हमारी यादें वफा करेंगी तुमसे

हम न भी रहे तो हमारी यादें वफा करेंगी तुमसे
ये न समझना के तुम्हें चाहा था बस जीने के लिये
--अज्ञात

मुझे लिख लिख कर महफूज़ कर लो

मुझे लिख लिख कर महफूज़ कर लो
मैं तुम्हारी बातों से निकलता जा रहा हूँ
--अज्ञात

अश्क आँखों में तो होंटों में फ़ुगाँ होती है

अश्क आँखों में तो होंटों में फ़ुगाँ होती है
ज़िन्दगी इश्क़ में जल—जल के धुआँ होती है
[फ़ुगाँ=आह]

मय से बढ़ कर तो कोई चीज़ नहीं राहते—जाँ
कौन कहता है कि ये दुश्मने—जाँ होती है
[राहते—जाँ=सुखदायक]

चन्द लोगों को ही मिलती है मताए—ग़मे—इश्क़
सब की तक़दीर में ये बात कहाँ होती है
[मताए—ग़मे—इश्क़=इश्क़ में मिलने वाले ग़म की पूंजी]

बात चुप रह के भी कह देते हैं कहने वाले
बाज़—औक़ात ख़मोशी भी ज़बाँ होती है
[बाज़—औक़ात=कभी—कभी]

दिल की जो बात ज़बाँ पर नहीं आती ऐ ‘शौक़’
वो महब्बत में निगाहों से बयाँ होती है.

--सुरेश चन्द्र 'शौक'

किसी सूरत न होगी इल्तिजा हमसे

किसी सूरत न होगी इल्तिजा हमसे
वो होता है तो हो जाए ख़फ़ा हमसे

जो हो हक़ बात कह देते हैं महफ़िल में
कि हो जाती है अक्सर ये ख़ता हमसे

कुछ ऐसा अपनापन इक अजनबी में है
वो सदियों से हो जैसे आशना हमसे...
[आशना=परिचित]

नज़र से दूर लेकिन दिल में रहता है
जुदा हो कर भी कब है वो जुदा हमसे

लबों को ज़हमते—जुम्बिश न दे प्यारे....
तिरी आँखों ने सब कुछ कह दिया हमसे
[ज़हमते—जुम्बिश=होंठ हिलाने का कष्ट]

तही-दस्ती का आलम ‘शौक़’ क्या कहिये
चुराते हैं नज़र अब आशना हमसे.
[तही-दस्ती=निर्धनता]

--सुरेश चन्द्र 'शौक'

Wednesday, September 9, 2009

भरी दुनिया में ग़मज़दा रहो या शाद रहो

भरी दुनिया में ग़मज़दा रहो या शाद रहो,
कुछ ऐसा करके चलो यहां कि बहुत याद रहो
--अज्ञात


शाद=खुश

कहाँ कहाँ होंठों के निशान छोड गये तुम

कहाँ कहाँ होंठों के निशान छोड गये तुम
बेजान एक जिस्म में जान छोड गये तुम
खुद से पूछती रही थी ये कि मैं कौन हूं?
आज मुझ में मेरी पहचान छोड गये तुम
--अनिल पराशर

तेरी गली से मैं निकलूँगा गधे लेकर

तेरी गली से मैं निकलूँगा गधे लेकर
तेरे नखरों का बोझ अब मुझ से उठाया नहीं जाता
--अज्ञात

पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या

पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या
जो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार करना क्या
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश मे है
हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या
--डॉ कुमार विश्वास

तुम से करूँ मुहब्बत उसूल की बात है

तुम से करूँ मुहब्बत उसूल की बात है
तुम मेरे लिए सोचो फ़िज़ूल की बात है

रिश्ता नही है तुमसे गीतों का कोई मेरे
ख़ुश्बुओं के हक़ में इक फूल की बात है

सच की ही जीत होगी जानता था मैं भी
अब की नही मगर ये इस्कूल की बात है

मेरे नही हो लेकिन मिलता हूं मैं तुमसे
ये दुआ सलाम भी तो उसूल की बात है

किसी बेवफ़ा की बात नही मेरी शायरी में
आँखों में जो थी झोंकी धूल की बात है

पढ़ते भी हैं मुझको कहते भी हैं मुझसे
मासूम जी शायरी तो फ़िज़ूल की बात है

--अनिल पराशर

Tuesday, September 8, 2009

दामन किसी का हाथ से जब छूटता रहा

दामन किसी का हाथ से जब छूटता रहा
शीशा तो यह नहीं था मगर टूटता रहा
बदकिस्मती तो देखिये हिंदोस्तां की
जो आया इस चमन को वही लूटता रहा
--सुहेल उस्मानी


Source : http://in.jagran.yahoo.com/sahitya/article/index.php?category=7&articleid=69&start=1

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में
--बशीर बद्र

मैं तेरा कोई नहीं मगर इतना तो बता

मैं तेरा कोई नहीं मगर इतना तो बता
ज़िक्र से मेरे, तेरे दिल में आता क्या है?
--अज्ञात

Sunday, September 6, 2009

जाने मुझसे क्या ज़माना चाहता है

जाने मुझसे क्या ज़माना चाहता है
मेरा दिल तोड़ कर मुझे हसाना चाहता है
जाने क्या बात झलकती है मेरे चेहरे से
जो हर शक्स मुझे आज़माना चाहता है
--अज्ञात

Saturday, September 5, 2009

मैं उस शक्स को कैसे मनाऊँगा फ़राज़

मैं उस शक्स को कैसे मनाऊँगा फ़राज़
जो मुझ से रूठा है मेरी मोहब्बत के सबब
--अहमद फराज़

चांद के साथ कईं दर्द पुराने निकले

चांद के साथ कईं दर्द पुराने निकले
कितने ग़म थे जो तेरे ग़म बहाने निकले
--अमजद इस्लाम अमजद


Source : http://www.urdupoetry.com/amjad02.html

किसने कहा तुझे कि अनजान बन के आया कर

किसने कहा तुझे कि अनजान बन के आया कर
मेरे दिल के आइने में महमान बन के आया कर
एक तुझे ही तो बख़शी है दिल की हुकूमत
यही तेरी सलतनत है, सुलतान बन के आया कर
--अज्ञात

कौन था अपना जिस पे इनायत करते

कौन था अपना जिस पे इनायत करते
हमारी तो हसरत थी, हम भी मोहब्बत करते
उसने समझा ही नहीं मुझे किसी काबिल
वरना उसे प्यार नहीं उसकी इबादत करते
--अज्ञात

भूल जाता हूँ

ज़रूरी काम है लेकिन रोज़ाना भूल जाता हूँ
मुझे तुम से मोहब्बत है बताना भूल जाता हूँ

तेरी गलियों में फिरना इतना अच्छा लगता है
मैं रास्ता याद रखता हूँ, ठिकाना भूल जाता हूँ

बस इतनी बात पर मैं लोगों को अच्छा नहीं लगता
मैं नेकी कर तो देता हूँ, जताना भूल जाता हूँ

शरारत ले के आखों में वो तेरा देखना तौबा
मैं नज़रों पे जमी नज़रें झुकाना भूल जाता हूँ

मोहब्बत कब हुई कैसे हुई सब याद है मुझको
मैं कर के मोहब्बत को भुलाना भूल जाता हूँ

--अज्ञात

वो कर रहे थे अपनी वफाओं का तज़किरा

वो कर रहे थे अपनी वफाओं का तज़किरा
हम पे निगाह पड़ी तो ख़ामोश हो गये
--अज्ञात

Friday, September 4, 2009

कागज़ पे रख कर रोटियां खायें भी तो कैसे

कागज़ पे रख कर रोटियां खायें भी तो कैसे
खून से लथपथ आता है अखबार आज कल

--पंकज पलाश

Wednesday, September 2, 2009

अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है

अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है
लैला मजनूँ के मिसालों पे हँसी आती है

जब भी तक़मील-ए-मोहब्बत का ख़याल आता है
मुझको अपने ख़यालों पे हँसी आती है
[तक़मील=completion]

लोग अपने लिये औरों में वफ़ा ढूँढते हैं
उन वफ़ा ढूँढने वालों पे हँसी आती है

देखनेवालों तबस्सुम को करम मत समझो
उन्हे तो देखने वालों पे हँसी आती है
[तबस्सुम=smile]

चाँदनी रात मोहब्बत में हसीन थी ‘फ़ाकिर’
अब तो बीमार उजालों पे हँसी आती है

--सुदर्शन फाकिर


Source : http://www.urdupoetry.com/faakir23.html

ख़ुशी ने मुझ को ठुकराया है रन्ज-ओ-ग़म ने पाला है

ख़ुशी ने मुझ को ठुकराया है रन्ज-ओ-ग़म ने पाला है
गुलों ने बेरुख़ी की है तो कांटों ने सम्भाला है

मुहब्बत मे ख़याल-ए-साहिल-ओ-मन्ज़िल है नादानी
जो इन राहो मे लुट जाये वही तक़दीर वाला है

चराग़ां कर के दिल बहला रहे हो क्या जहां वालों
अन्धेरा लाख रौशन हो उजाला फिर उजाला है

किनारो से मुझे ऐ नाख़ुदा दूर ही रखना
वहाँ लेकर चलो तूफ़ाँ जहाँ से उठने वाला है

नशेमन ही के लुट जाने का ग़म होता तो क्या ग़म था
यहाँ तो बेचने वालों ने गुलशन बेच डाला है

--अली अहमद जलीली