Sunday, April 28, 2019

जिन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं

जिन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं
और क्या जुर्म है पता ही नहीं

इतने हिस्सों मे बंट गया हूँ मैं
मेरे हिस्से मे कुछ बचा ही नहीं

जिन्दगी मौत तेरी मंज़िल है
और तो कोई रास्ता ही नहीं

जिसके कारण फसाद होते हैं
उसका कोई अता पता ही नहीं

ज़िन्दगी, अब बता कहाँ जाये
बाज़ार मे ज़हर मिला ही नहीं

सच घटे या बढ़े, तो सच ना रहे
झूठ की कोई इन्तिहां ही नहीं

धन के हाथों बिके हैं सब कानून
अब किसी जुर्म की सज़ा ही नहीं

चाहे सोने के फ्रेम मे जड़ दो
आइना झूठ बोलता ही नहीं

-कृष्ण बिहारी नूर

Thursday, April 18, 2019

जिन्दगी सितम तेरे भी बेहिसाब रहे

ना कोई शिकवा, ना कोई गिला, ना कोई मलाल रहा;

ज़िन्दगी सितम तेरे भी बेहिसाब रहे, सब्र मेरा भी कमाल रहा!

ए दिल

हजारों नामुकम्मल हसरतों के बोझ तले।

ऐ दिल ! तेरी हिम्मत है... जो तू धड़कता है॥

Monday, April 8, 2019

फिर वही इश्क़

हुए बदनाम मगर फिर भी न सुधर पाए हम,
फिर वही शायरी,
फिर वही इश्क,
फिर वही तुम.