Wednesday, October 13, 2010

देख कर मुझको तेरे ज़हन में आता क्या है

अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है
एक नज़र मेरी तरफ देख तेरा जाता क्या है

मेरी रुसवाइयों में तू भी है बराबर का शरीक
मेरे किस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है

पास रहकर भी न पहचान सका तू मुझको
दूर से देख के अब हाथ हिलाता क्या है

उम्र भर अपने गिरेबान से उलझने वाले
तू मुझे मेरे ही साये से डराता क्या है

मैं तो तेरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता
देख कर मुझको तेरे ज़हन में आता क्या है

--शज़द अहमद

No comments:

Post a Comment