Friday, December 28, 2018

हर बात पे ऐ दोस्त ! ग़म नहीं करते

लज्ज़त-ए-ज़िन्दगी  कम नहीं करते
हर बात पे ऐ दोस्त !  ग़म नहीं करते

दिक्कतें खटखटाती है दरवाजा रह रह के
पर उनसे मुलाक़ात अब हम नहीं करते

मायूस हो जायेंगी मंजिलें न पा कर तुझे
बढ़ाकर आगे  यूं पीछे क़दम नहीं करते

नेमत है खुदा की और इबादत भी है ये
मेरी जान !  इश्क में शरम नहीं करते

न ज़िक्र तकलीफ का,  न शिकवा कोई
सितम पे उनके यूं  सितम नहीं करते

मसला ही हुआ हल, न खातमा किरदार का
बीच कहानी किस्सा यूं खतम नहीं करते

बेपनाह मोहब्बतों से नवाज़ा गैरों ने यूं तो
फ़क़त अहबाब ‘अमित’ पे करम नहीं करते

* * अहबाब ahbaab = मित्रगण, दोस्त friends (हबीब का बहुवचन)

-- अमित हर्ष

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