प्यास दरिया की निगाहों से छिपा रखी है
इक बादल से बड़ी आस लगा रखी है
तेरी आँखों की कशिश कैसे तुझे समझाऊं
इन चिरागों ने मेरी नींद उड़ा रखी है
तेरी बातों को छिपाना नहीं आता मुझको
तूने खुश्बू मेरे लहज़े में बसा रखी है
खुद को तन्हा ना समझो ए नये दीवानो
खाक हमने भी कई सहराओं की उड़ा रखी है
--इकबाल अशार
Iqbal Ashar
ReplyDeleteप्यास दरिया की निगाहों से छिपा रखी है
ReplyDeleteइक बादल से बड़ी आस लगा रखी है
तेरी आँखों की कशिश कैसे तुझे समझाऊं
इन चिरागों ने मेरी नींद उड़ा रखी है
तेरी बातों को छिपाना नहीं आता मुझको
तूने खुश्बू मेरे लहज़े में बसा रखी है
खुद को तन्हा ना समझ लेना नये दीवानो
खाक सहराओं की हमने भी उड़ा रखी है
क्यूँ न आ जाए महकने का हुनर लफ़्ज़ों को
तेरी चिटठी जो किताबों में छुपा रक्खी है
--इकबाल अशार
ठहरी ठहरी सी तबियत में रवानी आई
ReplyDeleteआज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई
आज फिर नींद को आँखों से बिछडते देखा
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई
मुद्दतों बाद चला उन पर हमारा जादू
मुदत्तो बाद हमें बात बनानी आई
मुद्दतो बाद पशेमा हुआ दरिया हमसे
मुद्दतों बाद हमें प्यास छुपानी आई
मुद्दतों बाद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
मुद्दतों बाद हमें नींद सुहानी आई
इतनी आसानी से मिलती नहीं फन की दौलत
ढल गयी उम्र तो गजलो पे जवानी आई ...इकबाल अशर
इकबाल अशर ...
उसे बचाए कोई कैसे टूट जाने से
ReplyDeleteवो दिल जो बाज़ न आये फरेब खाने से
वो शखस एक ही लम्हे में टूट-फुट गया
जिसे तराश रहा था में एक ज़माने से
रुकी रुकी से नज़र आ रही है नब्ज़-इ-हयात
ये कौन उठ के गया है मरे सरहाने से
न जाने कितने चरागों को मिल गयी शोहरत
एक आफ़ताब के बे-वक़्त डूब जाने से
उदास छोड़ गया वो हर एक मौसम को
गुलाब खिलते थे जिसके यूँ मुस्कुराने से.........इकबाल अशर
Thanks for this sanjeev ji
Deleteu r welcome yogesh ji !
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