तो फिर यकीन की हद से भरम निकल जाए
हवा न हो तो चरागों का दम निकल जाए
राहत इन्दोरी
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तो फिर यकीन की हद से भरम निकल जाए
हवा न हो तो चरागों का दम निकल जाए
राहत इन्दोरी
दिल-ऐ-गुमराह को ऐ काश ये मालूम हो जाता
मोहब्बत दिलचस्प है तब तक, जब तक नहीं होती
--अज्ञात
कुछ तो कम होते ये लम्हे मुसीबतों के
तुम एक दिन तो मिल जाते, दो दिन की ज़िन्दगी में
--अज्ञात
पहले हम दोनों वक़्त चुराकर लाते थे
अब तब मिलते हैं जब भी फुरसत होती है
--जावेद अख्तर
कब्र की मिटटी हाथ में लिए सोच रहा हूँ
लोग मर जाते हैं तो गुरूर कहाँ जाता है
--अज्ञात
फिर कोई दर्द मिलेगा, तैयार रह ऐ दिल;
कुछ लोग पेश आ रहे बडे प्यार से!
--अज्ञात
कसम तुम को मेरे सर की मेरे पहलू से ना सरको
अगर सरको तो यूं सरको कलम कर के मेरे सर को
पड़ा रहने दो कदमो में ना ठुकराओ मेरे सर को मज़ा उल्फत में जब आये ना मैं सरकूं ना तुम सरको
जीवन बिताया सारा इंतजार करते करते
बन जाऊ तेरी प्यारी तुझे प्यार करते करते!!!!!!!!
अज्ञात
जहाँ यार याद न आए वो तन्हाई किस काम की,
बिगड़े रिश्ते न बने तो खुदाई किस काम की,
बेशक अपनी मंज़िल तक जाना है ,
पर जहाँ से अपना दोस्त ना दिखे
वो ऊंचाई किस काम की!!
--जावेद अख्तर
अब तलक गुजारी फुर्सत नहीं देती
ज़िन्दगी ये हमारी फुर्सत नहीं देती
पहले चाकरी ने मसरूफ कर रखा था
और अब ये बेकारी फुर्सत नहीं देती
कभी तो उलझा दिया दाल रोटी ने
कभी फ़िक्र-ए-तरकारी फुर्सत नहीं देती
इश्क का मुलाज़िम हूँ ड्यूटी पे हर दम
हमें छुट्टी सरकारी फुर्सत नहीं देती
दिल्लगी महज़ या कुछ हकीक़त भी
वो बात तुम्हारी फुर्सत नहीं देती
कोई है की रोज़े की रट लगाए है
किसी को इफ्तारी फुर्सत नहीं देती
रस्मन मिजाजपुरसी दस्तूरन दुआ सलाम
ये दुनिया ये दुनियादारी फुर्सत नहीं देती
सुखन आरामतलबी हममाआनी सही
पर हमें शायरी हमारी फुर्सत नहीं देती
(सुखन=कविता, हममाआनी=पर्याय)
गुरूर-ए-ग़ुरबत तो कभी फक्र-ए-फकीरी
'अमित' को ये खुद्दारी फुर्सत नहीं देती
--अमित हर्ष
तेरी तलब में रहता है आसमां पे दिमाग
तुझको पा गये होते तो जाने कहाँ होते
--अज्ञात
यही हालात इब्तदा से रहे
लोग हमसे ख़फ़ा-ख़फ़ा-से रहे
बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन
ये भी सच है कि बेवफ़ा-से रहे
इन चिराग़ों में तेल ही कम था
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे
बहस, शतरंज, शेर, मौसीक़ी
तुम नहीं रहे तो ये दिलासे रहे
उसके बंदों को देखकर कहिये
हमको उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे
ज़िन्दगी की शराब माँगते हो
हमको देखो कि पी के प्यासे रहे
--जावेद अख्तर
दीवान-ए-गज़ल जिसकी मोहब्बत में लिखा था
वो शक्स किसी और की किस्मत में लिखा था
वो शेर कभी उसकी नज़र से नहीं गुज़रा
जो डूब के जज़्बात की शिद्दत में लिखा था
दुनिया में तो ऐसे कोई आसार नही थे
शायद तेरा मिलना भी क़यामत में लिखा था
--अज्ञात
हिज्र लाज़िम है तो वस्ल का वादा कैसा
इश्क तो इश्क है, कम कैसा ज्यादा कैसा
लव्ज़ कितने ही तेरे पैरों से लिपटे होंगे
तूने जब आखिरी ख़त मेरा जलाया होगा
यूँही कुछ सोच लिया होगा बिछड़ने का सबब
फिर मेरा जुर्म भी लोगों को बताया होगा
तूने जब फूल किताबों से निकाले होंगे
देने वाला भी तुझे याद तो आया होगा
तूने किस नाम से बदला है मेरा नाम बता
किसको लिखा तो मेरा नाम मिटाया होगा
खलील उर रहमान 'कमर'
मतलबी दुनिया के लोग खड़े, हाथों में पत्थर ले के
मैं कहाँ तक भागूं, शीशे का मुक़द्दर ले के
--अज्ञात
गरीबों के महलों के ख़्वाब भी कमाल हैं
महल जिनमें अमीरों को नींद नहीं आती
--अज्ञात
ये बात जो गर होती मेरे इख्तियार में
सदियाँ गुज़ार देता तेरे इंतज़ार में
--सतलज राहत
बहुत थे हमारे भी कभी इस दुनिया में अपने
काम पड़ा दो चार से और हम अकेले हो गए
--अज्ञात
तोड़ कर दिल मेरा तुम हाल पूछते हो
बड़े नादाँ हो हुआ क्या बवाल पूछते हो
मनमोहन बाराकोटी
वही रंजिशें रहीं वही हसरतें रहीं
न ही दर्द-ए-दिल में कमी हुई
बड़ी अजीब सी है ज़िन्दगी हमारी
न गुज़र सकी; न ख़त्म हुई
--अज्ञात
ज़ब्त कहता है कि ख़ामोशी में बसर हो जाए
दर्द की ज़िद है कि दुनिया को खबर हो जाए
--अज्ञात
बरबादियो का जायजा लेने के वास्ते
वो पूछते हैं हाल मेरा कभी कभी
--अज्ञात
मतलब परस्ती या मासूमियत
खुदा जाने !!!!
हमने कहा मोहब्बत है
कहने लगे .... क्या मतलब ??
--अज्ञात
जिस नगर भी जाओ, किस्से हैं कमबख्त दिल के
कोई ले के रो रहा है, कोई दे के रो रहा है
--अज्ञात
खुदा करे इश्क में ऐसा मकाम आये
तुझे भूलने की दुआ करूँ, और दुआ में तेरा नाम आये
--अज्ञात
किसी भी गम के सहारे नहीं गुज़रती है
ये ज़िन्दगी तो गुज़ारे नहीं गुज़रती है
मैं ज़िन्दगी तो कहीं भी गुज़ार सकता हूँ
मगर बगैर तुम्हारे नहीं गुज़रती है
--अज्ञात
अंधेरों को तो ये भी खल रहा है
दिया मेरा हवा में जल रहा है
तुम्हारे काम इतने तो नहीं हैं
तुम्हारा नाम जितना चल रहा है
--अज्ञात
बहती हुई आँखों की रवानी में मरे हैं
कुछ ख्वाब मेरे ऐन जवानी में मरे हैं
क़ब्रों में नहीं हमको किताबों में उतारो
हम लोग मोहब्बत की कहानी में मरे हैं
--अज्ञात
अफवाह थी कि मुझे इश्क हुआ है
लोगों ने पूछ पूछ कर आशिक बना दिया
--अज्ञात
तनहा तनहा मत सोचा कर..
मर जायेगा मर जायेगा.. मत सोचा कर..
प्यार घड़ी भर का ही बहुत है..
झूठा.. सच्चा.. मत सोचा कर...
जिसकी फ़ितरत ही डंसना हो..
वो तो डसेगा मत सोचा कर..
धूप में तनहा कर जाता
क्यूँ यह साया मत सोचा कर..
अपना आप गवाँ कर तूने,
पाया है क्या मत सोचा कर
राह कठिन और धूप कड़ी है
कौन आयेगा मत सोचा कर..
ख्वाब, हकीकत या अफसाना
क्या है दुनिया मत सोचा कर
मूँद ले आँखें और चले चल....
मंज़िल रास्ता.. मत सोचा कर
दुनिया के गम साथ हैं..तेरे
खुद को तनहा, मत सोचा कर
जीना, दूभर हो जायेगा
जानां, इतना मत सोचा कर
मान मेरे शहजाद वगरना
पछताएगा मत सोचा कर...
-फरहत शहजाद
कुछ रिश्ते ता उम्र अगर बेनाम रहे तो अच्छा है
आँखों आँखों में ही कुछ पैगाम रहे तो अच्छा है
सुना है मंज़िल मिलते ही उसकी चाहत मर जाती है
गर ये सच है तो फिर हम नाकाम रहें तो अच्छा है
जब मेरा हमदम ही मेरे दिल को न पहचान सका
फिर ऐसी दुनिया में हम गुमनाम रहे तो अच्छा है
--अज्ञात
(From हमनशीं album of shreya ghoshal)
कुछ इस तरह से वफ़ा की मिसाल देता हूँ
सवाल करता है कोई तो टाल देता हूँ
उसी से खाता हूँ अक्सर फरेब मंजिल का
मैं जिसके पाँव से काँटा निकाल देता हूँ
तसव्वुरात की दुनिया भी खूब दुनिया है
मैं उसके ज़हन को अपने ख्याल देता हूँ
वो कायनात की वुसअत बयान करता है
मैं एक शेर ग़ज़ल का उछाल देता हूँ
कहीं अज़ाब न बन जाये जिंदगी 'मंसूर'
उसे मैं रोज़ एक उलझन में डाल देता हूँ
--मंसूर उस्मानी
कुज उंज वी राहवां औखियाँ सन
कुज गल्ल विच गम दा तौख वी सी
कुज शहर दे लोक वी ज़ालिम सन
कुज सानू मरण दा शौक वी सी
अज़ीम मुनीर नियाज़ी
रिश्तों का धागा इतना कच्चा नहीं होता
किसी का दिल तोडना अच्छा नहीं होता
प्यार तो दिल की आवाज़ है
कौन कहता है एक तरफ़ा प्यार सच्चा नहीं होता
--अज्ञात
ये आइने तुझे तेरी खबर क्या देंगे
आ मेरी आँखों में देख ले तू कितना हसीन है
--अज्ञात
खलल, ख्यालात .. हालात से निकलती है
यूं तो हर ग़ज़ल तेरी बात से निकलती है
वही तो है जो ढल जाती है अश’आरों में
आवाज़ जो दिल-ओ-जज़्बात से निकलती है
बड़ी दिलकश है वो जो ख़्वाबों की कहानियां
वो दास्ताँ इन्हीं शाम-ओ-रात से निकलती है
बन के दरिया समन्दर में तब्दील हो गई
नदी वो सकरे जल-प्रपात से निकलती हैं
आप तलाश रहे है .. अंजाम के मुहाने पे
वजह हर वजह की शुरुआत से निकलती है
सुनो, समझो, संभालो रखो मर्ज़ी तुम्हारी
बात अब ‘अमित’ के हाथ से निकलती है
--अमित हर्ष
कोई हल है न कोई जवाब है
ये सवाल कैसा सवाल है
जिसे भूल जाने का हुक्म है
उसे भूल जाना मुहाल है
--अज्ञात
कितना आसान था तेरे हिजर में मरना जानां
फिर भी इक उमर लगी जान से जाते जाते
--अज्ञात
(From Noorjahan gazal.. itne marassim the ke aate jaate)
जाते थे मेरे हक़ में सब ही फैसले मगर
मुनसिफ ने भी हर बार दिया साथ उसी का
एक वो है के यूँ तोड़ दिए रिश्ते सभी हमसे
एक दिल है के रहता है तरफदार उसी का
--अज्ञात
ठहरी ठहरी सी तबियत में रवानी आई
आज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई
आज फिर नींद को आँखों से बिछडते देखा
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई
मुद्दतों बाद चला उन पर हमारा जादू
मुदत्तो बाद हमें बात बनानी आई
मुद्दतो बाद पशेमा हुआ दरिया हमसे
मुद्दतों बाद हमें प्यास छुपानी आई
मुद्दतों बाद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
मुद्दतों बाद हमें नींद सुहानी आई
इतनी आसानी से मिलती नहीं फन की दौलत
ढल गयी उम्र तो गजलो पे जवानी आई
--इकबाल अशर
उसे बचाए कोई कैसे टूट जाने से
वो दिल जो बाज़ न आये फरेब खाने से
वो शखस एक ही लम्हे में टूट-फुट गया
जिसे तराश रहा था में एक ज़माने से
रुकी रुकी से नज़र आ रही है नब्ज़-इ-हयात
ये कौन उठ के गया है मरे सरहाने से
न जाने कितने चरागों को मिल गयी शोहरत
एक आफ़ताब के बे-वक़्त डूब जाने से
उदास छोड़ गया वो हर एक मौसम को
गुलाब खिलते थे जिसके यूँ मुस्कुराने से
--इकबाल अशर
ये रात ये तनहाई और ये तेरी याद
मैं इश्क न करता तो कब का सो गया होता
--अज्ञात
उसे फुरसत नहीं मिलती ज़रा सा याद करने की
उसे कह दो हम उसकी याद में फुरसत से बैठे हैं
--अज्ञात
बिछड़ के तुमसे ज़िन्दगी सज़ा लगती है
ये सांस भी जैसे मुझसे ख़फ़ा लगती है
तड़प उठते हैं दर्द के मारे
ज़ख्मो को जब तेरे शहर की हवा लगती है
अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किससे करूँ
मुझको तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफा लगती है
--अज्ञात
वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं
कौन दुःख झेले आजमाए कौन
आज फिर दिल है कुछ उदास उदास
देखिये आज याद आये कौन
जावेद अख्तर
मैं जानता हूँ कि ख़ामोशी में ही मस्लहत है
मगर यही मस्लहत मेरे दिल को खल रही है
जावेद अख्तर
[मस्लहत=समझदारी]
चेहरा बता रहा था कि बेचारा मरा है भूख से
सब लोग कह रहे थे कि कुछ खा के मर गया
--अज्ञात
वो अपना भी नहीं पराया भी नहीं
ये कैसी धूप है जिसका साया भी नहीं
किसी को चाहा ज़िन्दगी की तरह
उससे दूर भी रहे और भुलाया भी नहीं
--अज्ञात
रिश्वत भी नहीं लेता कम्बख्त जान छोड़ने की,
ये तेरा इश्क तो मुझे केजरीवाल लगता हैं...
--अज्ञात