Monday, December 15, 2014

तो फिर यकीन की हद से भरम निकल जाए

तो फिर यकीन की हद से भरम निकल जाए

हवा न हो तो चरागों का दम निकल जाए

राहत इन्दोरी

Sunday, December 14, 2014

मोहब्बत दिलचस्प है तब तक

दिल-ऐ-गुमराह को ऐ काश ये मालूम हो जाता

मोहब्बत दिलचस्प है तब तक, जब तक नहीं होती

--अज्ञात

Saturday, November 29, 2014

कुछ तो कम होते ये लम्हे मुसीबतों के

कुछ तो कम होते ये लम्हे मुसीबतों के

तुम एक दिन तो मिल जाते, दो दिन की ज़िन्दगी में

--अज्ञात

Monday, November 24, 2014

पहले हम दोनों वक़्त चुराकर लाते थे

पहले हम दोनों वक़्त चुराकर लाते थे

अब तब मिलते हैं जब भी फुरसत होती है

--जावेद अख्तर

उसने लिखा भूल जाओ मुझे

उसने लिखा भूल जाओ मुझे

हमने भी लिख दिया कौन हो तुम?

--अज्ञात

Thursday, November 6, 2014

अजीब सी बेताबी

इक अजीब सी बेताबी है तेरे बिन

रह भी लेते हैं और रहा भी नहीं जाता

--अज्ञात

गुरूर कहाँ जाता है

कब्र की मिटटी हाथ में लिए सोच रहा हूँ

लोग मर जाते हैं तो गुरूर कहाँ जाता है

--अज्ञात

कुछ लोग पेश आ रहे हैं बड़े प्यार से

फिर कोई दर्द मिलेगा, तैयार रह ऐ दिल;
कुछ लोग पेश आ रहे बडे प्यार से!

--अज्ञात

Tuesday, October 14, 2014

कसम तुम को मेरे सर की मेरे पहलू से ना सरको

कसम तुम को मेरे सर की मेरे पहलू से ना सरको
अगर सरको तो यूं सरको कलम कर के मेरे सर को

पड़ा रहने दो कदमो में ना ठुकराओ मेरे सर को मज़ा उल्फत में जब आये ना मैं सरकूं ना तुम सरको

जीवन बिताया सारा इंतजार करते करते
बन जाऊ तेरी प्यारी तुझे प्यार करते करते!!!!!!!!

अज्ञात

Wednesday, October 1, 2014

जहाँ यार याद न आए वो तन्हाई किस काम की,

जहाँ यार याद न आए वो तन्हाई किस काम की,
बिगड़े रिश्ते न बने तो खुदाई किस काम की, 
बेशक अपनी मंज़िल तक जाना  है ,

           पर  जहाँ से अपना दोस्त ना दिखे
               वो ऊंचाई  किस  काम  की!!

--जावेद अख्तर

Saturday, September 27, 2014

आदतें उसकी थी बस मुझे जलाने वाली 

आदतें उसकी थी बस मुझे जलाने वाली
बात की हंस के मगर दिल को दुखाने वाली

आजकल वो मुझे कुछ बदला हुआ लगता है
हो गयीं उसकी निगाहें भी ज़माने वाली

हमने इख्लास का दामन नही छोड़ा अब तक
हाय उसकी तो मोहब्बत है रुलाने वाली

मैने समझा था गुज़र जाएगा मौसम लेकिन
रुत-ए-बरसात भी निकली तो सताने वाली

तुम्हारे वास्ते अब कोई नही है वसी
खुद से बातें ना करो दिल को बहलाने वाली

-अज्ञात

Sunday, August 17, 2014

और अब ये बेकारी फुर्सत नहीं देती

अब तलक गुजारी फुर्सत नहीं देती
ज़िन्दगी ये हमारी फुर्सत नहीं देती

पहले चाकरी ने मसरूफ कर रखा था
और अब ये बेकारी फुर्सत नहीं देती

कभी तो उलझा दिया दाल रोटी ने
कभी फ़िक्र-ए-तरकारी फुर्सत नहीं देती

इश्क का मुलाज़िम हूँ ड्यूटी पे हर दम
हमें छुट्टी सरकारी फुर्सत नहीं देती

दिल्लगी महज़ या कुछ हकीक़त भी
वो बात तुम्हारी फुर्सत नहीं देती

कोई है की रोज़े की रट लगाए है
किसी को इफ्तारी फुर्सत नहीं देती

रस्मन मिजाजपुरसी दस्तूरन दुआ सलाम
ये दुनिया ये दुनियादारी फुर्सत नहीं देती

सुखन आरामतलबी हममाआनी सही
पर हमें शायरी हमारी फुर्सत नहीं देती
(सुखन=कविता, हममाआनी=पर्याय)

गुरूर-ए-ग़ुरबत तो कभी फक्र-ए-फकीरी
'अमित' को ये खुद्दारी फुर्सत नहीं देती

--अमित हर्ष

Monday, August 4, 2014

तेरी तलब में तो रहता है आसमां पे दिमाग

तेरी तलब में रहता है आसमां पे दिमाग
तुझको पा गये होते तो जाने कहाँ होते

--अज्ञात

Sunday, July 20, 2014

यही हालात इब्तदा से रहे

यही हालात इब्तदा से रहे
लोग हमसे ख़फ़ा-ख़फ़ा-से रहे

बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन
ये भी सच है कि बेवफ़ा-से रहे

इन चिराग़ों में तेल ही कम था
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे

बहस, शतरंज, शेर, मौसीक़ी
तुम नहीं रहे तो ये दिलासे रहे

उसके बंदों को देखकर कहिये
हमको उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे

ज़िन्दगी की शराब माँगते हो
हमको देखो कि पी के प्यासे रहे

--जावेद अख्तर

Saturday, July 12, 2014

किसी का ऐतबार क्या करते

किसी का ऐतबार क्या करते
जो भी देखा ख़्वाब में देखा

Tuesday, July 8, 2014

वो शक्स किसी और की किस्मत में लिखा था

दीवान-ए-गज़ल जिसकी मोहब्बत में लिखा था
वो शक्स किसी और की किस्मत में लिखा था

वो शेर कभी उसकी नज़र से नहीं गुज़रा
जो डूब के जज़्बात की शिद्दत में लिखा था

दुनिया में तो ऐसे कोई आसार नही थे
शायद तेरा मिलना भी क़यामत में लिखा था

--अज्ञात

Monday, July 7, 2014

हिज्र लाजिम है तो वस्ल का वादा कैसा

हिज्र लाज़िम है तो वस्ल का वादा कैसा

इश्क तो इश्क है, कम कैसा ज्यादा कैसा

Sunday, June 29, 2014

फिर मेरा जुर्म भी लोगों को बताया होगा

लव्ज़ कितने ही तेरे पैरों से लिपटे होंगे
तूने जब आखिरी ख़त मेरा जलाया होगा

यूँही कुछ सोच लिया होगा बिछड़ने का सबब
फिर मेरा जुर्म भी लोगों को बताया होगा

तूने जब फूल किताबों से निकाले होंगे
देने वाला भी तुझे याद तो आया होगा

तूने किस नाम से बदला है मेरा नाम बता
किसको लिखा तो मेरा नाम मिटाया होगा

खलील उर रहमान 'कमर'

प्यार उसका हज़ार के नोट जैसा

प्यार उसका हज़ार के नोट जैसा
डर लगता है नकली न हो
--अज्ञात

Sunday, June 15, 2014

मतलबी दुनिया के लोग खड़े, हाथों में पत्थर ले के

मतलबी दुनिया के लोग खड़े, हाथों में पत्थर ले के
मैं कहाँ तक भागूं, शीशे का मुक़द्दर ले के

--अज्ञात

गरीबों के महलों के ख़्वाब भी कमाल हैं

गरीबों के महलों के ख़्वाब भी कमाल हैं
महल जिनमें अमीरों को नींद नहीं आती

--अज्ञात

Friday, June 6, 2014

ये बात जो गर होती मेरे इख्तियार में

ये बात जो गर होती मेरे इख्तियार में
सदियाँ गुज़ार देता तेरे इंतज़ार में

--सतलज राहत

Saturday, May 31, 2014

बहुत थे हमारे भी कभी इस दुनिया में अपने

बहुत थे हमारे भी कभी इस दुनिया में अपने
काम पड़ा दो चार से और हम अकेले हो गए

--अज्ञात

यूं न झांको गरीब के दिल में

यूं न झांको गरीब के दिल में
हसरतें बेलिबास रहतीं हैं

--अज्ञात

तोड़ कर दिल मेरा तुम हाल पूछते हो

तोड़ कर दिल मेरा तुम हाल पूछते हो

बड़े नादाँ हो हुआ क्या बवाल पूछते हो

मनमोहन बाराकोटी

Thursday, May 29, 2014

वही रंजिशें रहीं वही हसरतें रहीं

वही रंजिशें रहीं वही हसरतें रहीं
न ही दर्द-ए-दिल में कमी हुई
बड़ी अजीब सी है ज़िन्दगी हमारी
न गुज़र सकी; न ख़त्म हुई

--अज्ञात

ज़ब्त कहता है कि ख़ामोशी में बसर हो जाए

ज़ब्त कहता है कि ख़ामोशी में बसर हो जाए
दर्द की ज़िद है कि दुनिया को खबर हो जाए

--अज्ञात

Sunday, April 27, 2014

बरबादियो का जायजा लेने के वास्ते

बरबादियो का जायजा लेने के वास्ते
वो पूछते हैं हाल मेरा कभी कभी

--अज्ञात

Tuesday, April 22, 2014

मतलब परस्ती या मासूमियत

मतलब परस्ती या मासूमियत
खुदा जाने !!!!
हमने कहा मोहब्बत है
कहने लगे .... क्या मतलब ??

--अज्ञात

Saturday, April 12, 2014

जिस नगर भी जाओ, किस्से हैं कमबख्त दिल के

जिस नगर भी जाओ, किस्से हैं कमबख्त दिल के

कोई ले के रो रहा है, कोई दे के रो रहा है

--अज्ञात

खुदा करे इश्क में ऐसा मकाम आये

खुदा करे इश्क में ऐसा मकाम आये
तुझे भूलने की दुआ करूँ, और दुआ में तेरा नाम आये

--अज्ञात

Friday, April 11, 2014

किसी भी गम के सहारे नहीं गुज़रती है

किसी भी गम के सहारे नहीं गुज़रती है
ये ज़िन्दगी तो गुज़ारे नहीं गुज़रती है

मैं ज़िन्दगी तो कहीं भी गुज़ार सकता हूँ
मगर बगैर तुम्हारे नहीं गुज़रती है

--अज्ञात

Tuesday, April 8, 2014

सुकून और इश्क, वो भी एक साथ

सुकून और इश्क, वो भी एक साथ
रहने दो, कोई अक्ल की बात करो

--अज्ञात

Saturday, April 5, 2014

अंधेरों को तो ये भी खल रहा है

अंधेरों को तो ये भी खल रहा है
दिया मेरा हवा में जल रहा है

तुम्हारे काम इतने तो नहीं हैं
तुम्हारा नाम जितना चल रहा है

--अज्ञात

बहती हुई आँखों की रवानी में मरे हैं

बहती हुई आँखों की रवानी में मरे हैं
कुछ ख्वाब मेरे ऐन जवानी में मरे हैं

क़ब्रों में नहीं हमको किताबों में उतारो
हम लोग मोहब्बत की कहानी में मरे हैं

--अज्ञात

Sunday, March 23, 2014

अफवाह थी कि मुझे इश्क हुआ है

अफवाह थी कि मुझे इश्क हुआ है

लोगों ने पूछ पूछ कर आशिक बना दिया

--अज्ञात

तुम किसी और की

तुम किसी और की हो जाओ जानां

अमीर होने में मुझे अभी वक़्त लगेगा

--अज्ञात

Friday, March 21, 2014

तनहा तनहा मत सोचा कर..

तनहा तनहा मत सोचा कर..
मर जायेगा मर जायेगा.. मत सोचा कर..

प्यार घड़ी भर का ही बहुत है..
झूठा.. सच्चा.. मत सोचा कर...

जिसकी फ़ितरत ही डंसना हो..
वो तो डसेगा मत सोचा कर..

धूप में तनहा कर जाता
क्यूँ यह साया मत सोचा कर..

अपना आप गवाँ कर तूने,
पाया है क्या मत सोचा कर

राह कठिन और धूप कड़ी है
कौन आयेगा मत सोचा कर..

ख्वाब, हकीकत या अफसाना
क्या है दुनिया मत सोचा कर

मूँद ले आँखें और चले चल....
मंज़िल रास्ता.. मत सोचा कर

दुनिया के गम साथ हैं..तेरे
खुद को तनहा, मत सोचा कर

जीना, दूभर हो जायेगा
जानां, इतना मत सोचा कर

मान मेरे शहजाद वगरना
पछताएगा मत सोचा कर...


-फरहत शहजाद

Wednesday, March 5, 2014

कुछ रिश्ते ता उम्र अगर बेनाम रहे तो अच्छा है

कुछ रिश्ते ता उम्र अगर बेनाम रहे तो अच्छा है
आँखों आँखों में ही कुछ पैगाम रहे तो अच्छा है

सुना है मंज़िल मिलते ही उसकी चाहत मर जाती है
गर ये सच है तो फिर हम नाकाम रहें तो अच्छा है

जब मेरा हमदम ही मेरे दिल को न पहचान सका
फिर ऐसी दुनिया में हम गुमनाम रहे तो अच्छा है

--अज्ञात
(From हमनशीं album of shreya ghoshal)

Sunday, March 2, 2014

मैं जिसके पाँव से काँटा निकाल देता हूँ

कुछ इस तरह से वफ़ा की मिसाल देता हूँ
सवाल करता है कोई तो टाल देता हूँ

उसी से खाता हूँ अक्सर फरेब मंजिल का
मैं जिसके पाँव से काँटा निकाल देता हूँ

तसव्वुरात की दुनिया भी खूब दुनिया है
मैं उसके ज़हन को अपने ख्याल देता हूँ

वो कायनात की वुसअत बयान करता है
मैं एक शेर ग़ज़ल का उछाल देता हूँ

कहीं अज़ाब न बन जाये जिंदगी 'मंसूर'
उसे मैं रोज़ एक उलझन में डाल देता हूँ

--मंसूर उस्मानी

Wednesday, February 26, 2014

कुज सानू मरण दा शौक वी सी

कुज उंज वी राहवां औखियाँ सन
कुज गल्ल विच गम दा तौख वी सी

कुज शहर दे लोक वी ज़ालिम सन
कुज सानू मरण दा शौक वी सी

अज़ीम मुनीर नियाज़ी

कौन कहता है एक तरफ़ा प्यार सच्चा नहीं होता

रिश्तों का धागा इतना कच्चा नहीं होता
किसी का दिल तोडना अच्छा नहीं होता
प्यार तो दिल की आवाज़ है
कौन कहता है एक तरफ़ा प्यार सच्चा नहीं होता

--अज्ञात

Monday, February 17, 2014

ज़िन्दगी इस आस में कट गयी

ज़िंदगी इस आस में कट गयी
काश मैं और तुम होते

--अज्ञात

Saturday, February 15, 2014

ये आईने तुझे तेरी खबर क्या देंगे

ये आइने तुझे तेरी खबर क्या देंगे
आ मेरी आँखों में देख ले तू कितना हसीन है

--अज्ञात

Sunday, February 9, 2014

यूं तो हर ग़ज़ल तेरी बात से निकलती है

खलल, ख्यालात .. हालात से निकलती है
यूं तो हर ग़ज़ल तेरी बात से निकलती है

वही तो है जो ढल जाती है अश’आरों में
आवाज़ जो दिल-ओ-जज़्बात से निकलती है

बड़ी दिलकश है वो जो ख़्वाबों की कहानियां
वो दास्ताँ इन्हीं शाम-ओ-रात से निकलती है

बन के दरिया समन्दर में तब्दील हो गई
नदी वो सकरे जल-प्रपात से निकलती हैं

आप तलाश रहे है .. अंजाम के मुहाने पे
वजह हर वजह की शुरुआत से निकलती है

सुनो, समझो, संभालो रखो मर्ज़ी तुम्हारी
बात अब ‘अमित’ के हाथ से निकलती है

--अमित हर्ष

Thursday, February 6, 2014

कोई हल है न कोई जवाब है

कोई हल है न कोई जवाब है
ये सवाल कैसा सवाल है
जिसे भूल जाने का हुक्म है
उसे भूल जाना मुहाल है

--अज्ञात

Tuesday, February 4, 2014

कितना आसान था तेरे हिजर में मरना जानां

कितना आसान था तेरे हिजर में मरना जानां
फिर भी इक उमर लगी जान से जाते जाते
--अज्ञात
(From Noorjahan gazal.. itne marassim the ke aate jaate)

Wednesday, January 29, 2014

एक दिल है के रहता है तरफदार उसी का

जाते थे मेरे हक़ में सब ही फैसले मगर
मुनसिफ ने भी हर बार दिया साथ उसी का

एक वो है के यूँ तोड़ दिए रिश्ते सभी हमसे
एक दिल है के रहता है तरफदार उसी का

--अज्ञात

Sunday, January 26, 2014

ठहरी ठहरी सी तबियत में रवानी आई

ठहरी ठहरी सी तबियत में रवानी आई
आज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई

आज फिर नींद को आँखों से बिछडते देखा
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई

मुद्दतों बाद चला उन पर हमारा जादू
मुदत्तो बाद हमें बात बनानी आई

मुद्दतो बाद पशेमा हुआ दरिया हमसे
मुद्दतों बाद हमें प्यास छुपानी आई

मुद्दतों बाद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
मुद्दतों बाद हमें नींद सुहानी आई

इतनी आसानी से मिलती नहीं फन की दौलत
ढल गयी उम्र तो गजलो पे जवानी आई

--इकबाल अशर 

उसे बचाए कोई कैसे टूट जाने से

उसे बचाए कोई कैसे टूट जाने से
वो दिल जो बाज़ न आये फरेब खाने से

वो शखस एक ही लम्हे में टूट-फुट गया
जिसे तराश रहा था में एक ज़माने से

रुकी रुकी से नज़र आ रही है नब्ज़-इ-हयात
ये कौन उठ के गया है मरे सरहाने से

न जाने कितने चरागों को मिल गयी शोहरत
एक आफ़ताब के बे-वक़्त डूब जाने से

उदास छोड़ गया वो हर एक मौसम को
गुलाब खिलते थे जिसके यूँ मुस्कुराने से

--इकबाल अशर

Thursday, January 23, 2014

ये रात ये तन्हाई और ये तेरी याद

ये रात ये तनहाई और ये तेरी याद

मैं इश्क न करता तो कब का सो गया होता

--अज्ञात

Tuesday, January 21, 2014

उसे फुरसत नहीं मिलती ज़रा सा याद करने की

उसे फुरसत नहीं मिलती ज़रा सा याद करने की
उसे कह दो हम उसकी याद में फुरसत से बैठे हैं

--अज्ञात

किस्मत भी साथ नहीं देती

किस्मत भी साथ नहीं देती
बिलकुल तेरे जैसी है

--अज्ञात

Friday, January 17, 2014

बिछड़ के तुमसे ज़िन्दगी सज़ा लगती है

बिछड़ के तुमसे ज़िन्दगी सज़ा लगती है
ये सांस भी जैसे मुझसे ख़फ़ा लगती है

तड़प उठते हैं दर्द के मारे
ज़ख्मो को जब तेरे शहर की हवा लगती है

अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किससे करूँ
मुझको तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफा लगती है

--अज्ञात

Thursday, January 16, 2014

वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं

वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं
कौन दुःख झेले आजमाए कौन

आज फिर दिल है कुछ उदास उदास
देखिये आज याद आये कौन

जावेद अख्तर

Tuesday, January 14, 2014

मैं जानता हूँ कि ख़ामोशी में ही मस्लहत है

मैं जानता हूँ कि ख़ामोशी में ही मस्लहत है
मगर यही मस्लहत मेरे दिल को खल रही है

जावेद अख्तर
[मस्लहत=समझदारी]

Sunday, January 5, 2014

चेहरा बता रहा था कि बेचारा मरा है भूख से

चेहरा बता रहा था कि बेचारा मरा है भूख से
सब लोग कह रहे थे कि कुछ खा के मर गया

--अज्ञात

Thursday, January 2, 2014

वो अपना भी नहीं पराया भी नहीं

वो अपना भी नहीं पराया भी नहीं
ये कैसी धूप है जिसका साया भी नहीं
किसी को चाहा ज़िन्दगी की तरह
उससे दूर भी रहे और भुलाया भी नहीं

--अज्ञात

Wednesday, January 1, 2014

रिश्वत भी नहीं लेता कम्बख्त जान छोड़ने की,

रिश्वत भी नहीं लेता कम्बख्त जान छोड़ने की,
ये तेरा इश्क तो मुझे केजरीवाल लगता हैं...

--अज्ञात