खलल, ख्यालात .. हालात से निकलती है
यूं तो हर ग़ज़ल तेरी बात से निकलती है
वही तो है जो ढल जाती है अश’आरों में
आवाज़ जो दिल-ओ-जज़्बात से निकलती है
बड़ी दिलकश है वो जो ख़्वाबों की कहानियां
वो दास्ताँ इन्हीं शाम-ओ-रात से निकलती है
बन के दरिया समन्दर में तब्दील हो गई
नदी वो सकरे जल-प्रपात से निकलती हैं
आप तलाश रहे है .. अंजाम के मुहाने पे
वजह हर वजह की शुरुआत से निकलती है
सुनो, समझो, संभालो रखो मर्ज़ी तुम्हारी
बात अब ‘अमित’ के हाथ से निकलती है
--अमित हर्ष
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Sunday, February 9, 2014
यूं तो हर ग़ज़ल तेरी बात से निकलती है
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