अब तलक गुजारी फुर्सत नहीं देती
ज़िन्दगी ये हमारी फुर्सत नहीं देती
पहले चाकरी ने मसरूफ कर रखा था
और अब ये बेकारी फुर्सत नहीं देती
कभी तो उलझा दिया दाल रोटी ने
कभी फ़िक्र-ए-तरकारी फुर्सत नहीं देती
इश्क का मुलाज़िम हूँ ड्यूटी पे हर दम
हमें छुट्टी सरकारी फुर्सत नहीं देती
दिल्लगी महज़ या कुछ हकीक़त भी
वो बात तुम्हारी फुर्सत नहीं देती
कोई है की रोज़े की रट लगाए है
किसी को इफ्तारी फुर्सत नहीं देती
रस्मन मिजाजपुरसी दस्तूरन दुआ सलाम
ये दुनिया ये दुनियादारी फुर्सत नहीं देती
सुखन आरामतलबी हममाआनी सही
पर हमें शायरी हमारी फुर्सत नहीं देती
(सुखन=कविता, हममाआनी=पर्याय)
गुरूर-ए-ग़ुरबत तो कभी फक्र-ए-फकीरी
'अमित' को ये खुद्दारी फुर्सत नहीं देती
--अमित हर्ष
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