Sunday, March 2, 2014

मैं जिसके पाँव से काँटा निकाल देता हूँ

कुछ इस तरह से वफ़ा की मिसाल देता हूँ
सवाल करता है कोई तो टाल देता हूँ

उसी से खाता हूँ अक्सर फरेब मंजिल का
मैं जिसके पाँव से काँटा निकाल देता हूँ

तसव्वुरात की दुनिया भी खूब दुनिया है
मैं उसके ज़हन को अपने ख्याल देता हूँ

वो कायनात की वुसअत बयान करता है
मैं एक शेर ग़ज़ल का उछाल देता हूँ

कहीं अज़ाब न बन जाये जिंदगी 'मंसूर'
उसे मैं रोज़ एक उलझन में डाल देता हूँ

--मंसूर उस्मानी

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