ये न समझो के ढल रही है शाम
अपने तेवर बदल रही है शाम
तुम नहीं आये और उस दिन से
मेरे सीने में जल रही है शाम
फैलती जा रही तारीकी
एक दुःख से निकल रही है शाम
ज़र्द सूरज छुपा रहा है बदन
लम्हा लम्हा पिघल रही है शाम
ओढ़ती जा रही है खामोशी
ऐसा लगता है ढल रही है शाम
उसके हमराह चल रहा है दिन
मेरे हमराह चल रही है शाम
--अज्ञात
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