Saturday, January 19, 2013

चलो अब फ़ैसला कर लें

चलो अब फ़ैसला कर लें
के इस रास्ते पे कितनी दूर जाना है?
मुझे तुमसे बिछडना है?
तुम्हें मुझ को भूलना है?
बहुत दिन तक
कभी साहिल की भीगी रेत पेर यूँ ही
तुम्हारा नाम लिखा है
कभी खुश्बू पे अश्कों से
कोई पैगाम लिखा है
कभी तन्हाई की वहशत में
दीवारों से बातें कीं
कभी छत पर टहल कर
चाँद से, तारों से बातें कीं
मगर ये इश्क़ की दीवानगी ठहरी
कोई हासिल नही जिस से
नदी के दो किनारों की तरह
हमराह चलने से
अलग ताक़ों में रखे
दो चिरागों की तरह एक साथ जलने से
भला किया फ़ायदा होगा
ये एक ऐसी मोहब्बत है
क जिस में क़ुरबत ओ फुरक़त का
या सोद-ओ-ज़ियाँ का
कोई भी लम्हा नहीं आता
सो इस बे-रब्त क़िस्से का
कोई अंजाम हो जाए
चलो अब फ़ैसला कर लें

[Humaira Rahat]

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