दिल की ये आरज़ू थी कोई दिलरुबा मिले
लो बन गया नसीब के तुम हम से आ मिले
दिल की ये ...
देखें हमें नसीब से अब, अपने क्या मिले
अब तक तो जो भी दोस्त मिले, बेवफ़ा मिले
आँखों को इक इशारे की ज़ेहमत तो दीजिये
कदमों में दिल बिछा दूँ इजाज़त तो दीजिये
ग़म को गले लगा लूँ जो ग़म आप का मिले
दिल की ये ...
हम ने उदासियों में गुज़ारी है ज़िन्दगी
लगता है डर फ़रेब-ए-वफ़ा से कभी कभी
ऐसा न हो कि ज़ख़्म कोई फिर नया मिले
अब तक तो जो भी दोस्त मिले बेवफ़ा मिले
कल तुम जुदा हुए थे जहाँ साथ छोड़ कर
हम आज तक खड़े हैं उसी दिल के मोड़ पर
हम को इस इन्तज़ार का कुछ तो सिला मिले
दिल की ये ...
देखें हमें नसीब से अब, अपने क्या मिले
अब तक तो जो भी दोस्त मिले, बेवफ़ा मिले
* Movie: Nikaah
* Singer(s): Mahendra Kapoor, Salma Agha
* Music Director: Ravi
* Lyricist: Hasan Kamaal
* Actors/Actresses: Raj Babbar, Deepak Parashar, Salma Agha
* Year/Decade: 1982, 1980s
Source : http://chitrageet.blogspot.com/2010/05/blog-post_31.html
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Saturday, July 31, 2010
दिल की ये आरज़ू थी कोई दिलरुबा मिले
तुम अगर साथ देने का वादा करो
तुम अगर साथ देने का वादा करो
मैं यूँही मस्त नग़मे लुटाता रहूं
तुम मुझे देखकर मुस्कुराती रहो
मैन तुम्हें देखकर गीत गाता रहूँ, तुम अगर...
कितने जलवे फ़िज़ाओं में बिखरे मगर
मैने अबतक किसी को पुकरा नहीं
तुमको देखा तो नज़रें ये कहने लगीं
हमको चेहरे से हटना गवारा नहीं
तुम अगर मेरी नज़रों के आगे रहो
मैन हर एक शह से नज़रें चुराता रहूँ, तुम अगर...
मैने ख़्वाबों में बरसों तराशा जिसे
तुम वही संग-ए-मरमर की तस्वीर हो
तुम न समझो तुम्हारा मुक़द्दर हूँ मैं
मैं समझता हूं तुम मेरी तक़दीर हो
तुम अगर मुझको अपना समझने लगो
मैं बहारों की महफ़िल सजाता रहूं, तुम अगर...
मैं अकेला बहुत देर चलता रहा
अब सफ़र ज़िन्दगानी का कटता नहीं
जब तलक कोई रंगीं सहारा ना हो
वक़्त क़ाफ़िर जवानी का कटता नहीं
तुम अगर हमक़दम बनके चलती रहो
मैं ज़मीं पर सितारे बिछाता रहूं
तुम अगर साथ देने का वादा करो ...
Source : http://chitrageet.blogspot.com/2008/11/blog-post_788.html
* फ़िल्म - हमराज़ (१९६७) *
* गायक - महेंद्र कपूर *
* संगीतकार - रवि *
* गीतकार - साहिर लुधियानवी *
Wednesday, July 28, 2010
आ जाए किसी दिन तू ऐसा भी नही लगता
आ जाए किसी दिन तू ऐसा भी नही लगता
लेकिन वो तेरा वादा झूठा भी नही लगता
मिलता है सुकूँ दिल को उस यार के कूचे में
हर रोज़ मगर जाना अच्छा भी नही लगता..
देखा है तुझे जब से बेचैन बहुत है दिल
कहने को कोई तुझ से रिश्ता भी नही लगता
क्या फ़ैसला करूँ उस के बारे में अब
वो गैर नही लेकिन अपना भी नही लगता
--मिर्ज़ा ग़ालिब
Tuesday, July 27, 2010
ए काश कहीं ऐसा होता
ए काश कहीं ऐसा होता, के दो दिल होते सीने में
इक टूट भी जाता इश्क़ में तो, तकलीफ़ ना होती जीने में
ए काश कहीं ऐसा होता, के दो दिल होते सीने में
सच कहते है लोग के पीकर, रंग नशा बन जाता है
कोई भी हो, रोग यह दिल का, दर्द दवा बन जाता है
आग लगी हो इस दिल में तो, हर्ज़ है क्या फिर पीने में
ए काश कहीं ऐसा होता, के दो दिल होते सीने में
इक टूट भी जाता इश्क़ में तो, तकलीफ़ ना होती जीने में
ए काश कहीं ऐसा होता, के दो दिल होते सीने में
भूल नहीं सकता यह सदमा, याद हमेशा आएगा
किसी ने ऐसा दर्द दिया तो, बरसो मुझे तड़पाएगा
भर नहीं सकते ज़ख़्म यह दिल के, कोई साल महीने में
ए काश कहीं ऐसा होता, के दो दिल होते सीने में
एक टूट भी जाता इश्क़ में तो, तकलीफ़ ना होती जीने में
ए काश कहीं ऐसा होता, के दो दिल होते सीने में
--अज्ञात
Monday, July 26, 2010
पलकों पे रुकी बूँद भी रोने को बहुत है
पलकों पे रुकी बूँद भी रोने को बहुत है
एक अश्क भी दामन के भिगोने को बहुत है
ये वाक्या है, दिल में मेरे तेरी मुहब्बत
होने को बहुत कम है, ना होने को बहुत है
फिर क्या उसी तारीख़ को दोहराओगे कातिल
नेज़े पे मेरा सर ही पिरोने को बहुत है
[नेज़ा = भाला]
हर शाख पे उतरेंगे समर दुश्मनियों के
नफरत का बस इक बीज ही बोने को बहुत है
[समर = Fruit]
किस तरह से बातिन पे चढ़ी मैल उतारें
जो ज़ख्म बदन पर है, वो धोने को बहुत हैं
--मोहसिन नकवी
Source : http://forum.urduworld.com/f152/palkon-pe-ruki-boond-286058/
रूह बेचैन दिल उदास बहुत है
रूह बेचैन दिल उदास बहुत है
बुझ गई है शमा-ए-उम्मीद लेकिन आस बहुत है
ये दर्द-ए-जुदाई, ये हिजर के लम्हे
ये फिराक़ का मौसम मुझे रास बहुत है
समंदर के किनारे बैठा हूँ मगर फिर भी
सूखे हैं मेरे होंट और प्यास बहुत है
आएगा मेरी कब्र पे वो फूल चढाने
ये यकीन बहुत है, ये क़यास बहुत है
दिया जब गम तू कुछ ना सोचा उसने
उजड गये हम तो उसे अहसास बहुत है
--अज्ञात
Sunday, July 25, 2010
बड़ी लंबी कहानी है, तुम्हें लेकिन सुनानी है
बड़ी लंबी कहानी है, तुम्हें लेकिन सुनानी है
तेरा गम जानलेवा, पर तेरी यादें सुहानी हैं
ग़मों को छोड़ हम देते,सुकून को थाम ही लेते
ग़मों से क्या करें लेकिन, बड़ी यारी पुरानी है
ज़मीन को चीरना चाहे, हवा को थामना चाहे
बड़ी पागल सही लेकिन, यही यारो जवानी है
आए गम तू दूर ही रहना, समंदर आंसू का है
बहा ले जाए ना तुझको, ये लहरें भी दीवानी हैं
--अज्ञात
उसके होंटों का तबस्सुम रहे कायम या रब
उसके होंटों का तबस्सुम रहे कायम या रब
उस के जीवन में खुशियों का बसेरा कर दे
तू मेरे कुर्ब की रातों को भले खत्म न कर
उसकी हर शाम के आखिर में सवेरा कर दे
उस के दिल के किसी कोने में जगह दे मुझको
उस की आँखों को मेरे सपनों से खेरा कर दे
ये मेरे दिल की दुआ है मेरे मौला सुन ले
सारी दुनिया से छुपा कर उसे मेरा कर दे
--अज्ञात
Didn't get the meaning of red words... r they correct...
Can there be better words here..
लौट आऊंगा तुम इक बार बुला कर देखो
आईना हूँ मैं मेरे सामने आकर देखो
खुद नज़र आओगे जो आँख मिला कर देखो
मेरे गम में मेरी तक़दीर नज़र आती है
डगमगाओगे मेरा दर्द उठा कर देखो
यूँ तो आसान नज़र आता है मंज़िल का सफ़र
कितना मुश्क़िल है मेरी राह से जाकर देखो
बज़्म का मेरी चरागाँ है नज़र का धोखा
किन अंधेरों में भटकता हूँ मैं आकर देखो
दिल तुम्हारा है, मैं यह जान भी दे दूं तुम पर
बस मेरा साथ ज़रा दिल से निभा कर देखो
मौत आने को है मगर तुम से वादा है मेरा
लौट आऊंगा तुम इक बार बुला कर देखो
--अज्ञात
फिर दिल की दीवार पे तेरा चेहरा क्यो है?
वक़्त भी चल रहा है उसी रफ़्तार से
मेरे ज़िंदगी में सब कुछ ठहरा क्यो है?
गिले शिकवे रुक जाते है होंटों तक आके
हर लफ्ज़ पे खामोशी का पहरा क्यो है?
दिल कहता है मोहब्बत नही खता है ये
फिर दिल की दीवार पे तेरा चेहरा क्यो है?
और भी ज़ख़्म है तेरे ज़ख़्मो के सिवा
तेरे ही ज़ख़्म का दाग इतना गहरा क्यो है?
--अज्ञात
Saturday, July 24, 2010
मेरी किस्मत में तू नहीं शायद
मेरी किस्मत में तू नहीं शायद
मैं तेरा इंतज़ार करता हूँ
मैं तुझे कल भी प्यार करता था
मैं तुझे अब भी प्यार करता हूँ
आज समझी वो प्यार को शायद
आज मैं तुझसे प्यार करती हूँ
कल मेरा इंतज़ार था तुझको
आज मैं इंतज़ार करती हूँ
मेरी किस्मत में तू नहीं शायद
सोचता हूँ के मेरी आँखों में
क्यों सजाये थे प्यार के सपने
हर गम टपक रहा है मेरा आंसुओं में ढल कर
वो नज़र से छुप कर, मेरी जिंदगी बदल कर
सोचता हूँ के मेरी आँखों में
क्यों सजाये थे प्यार के सपने
तुझसे मांगी थी इक खुशी मैंने
तूने गम भी नहीं दिए अपने
जिंदगी बोझ बन गयी अब तो
अब तो जीता हूँ और न मरता हूँ
मैं तुझे कल भी प्यार करता था
मैं तुझे अब भी प्यार करता हूँ
मेरी किस्मत में तू नहीं शायद
अब न टूटे ये प्यार के रिश्ते
फूलों के साथ काँटों की चुभन भी देखते जाओ
हसी तो देख ली, दिल की जलन भी देखते जाओ
अब न टूटे ये प्यार के रिश्ते
अब ये रिश्ते सँभालने होंगे
मेरी राहों से तुझको कल की तरह
गम के कांटे निकालने होंगे
दिल न जाए खुशी के रस्ते में
गम की परछाईयो से डरती हूँ
कल मेरा इंतज़ार था तुझको
आज मैं इंतज़ार करती हूँ
मेरी किस्मत में तू नहीं शायद...
शायर/लेखक : अमीर कज़लबाश
फिल्म : प्रेम रोग
गम जुदाई का यूं तो बहुत था मगर
गम जुदाई का यूं तो बहुत था मगर
दूर तक हाथ फिर भी हिलाना पड़ा
बैठ कर रेलगाड़ी में वो चल दिए
रोते रोते हमें घर को आना पड़ा
गम जुदाई का यूं...
वो तो चल भी दिया, दिल मेरा तोड़ कर
मुझ पे बीती है क्या, काश लेता खबर
ये वो गम है जो होगा न कम उम्र भर
होगा पानी का क्या पत्थरों पे असर
इतना रोया हूँ मैं, याद कर के उसे
आसुओं में मुझे डूब जाना पड़ा
गम जुदाई का यूं...
जिसकी खातिर ज़माने को ठुकरा दिया
उसकी चाहत में मुझको मिला ये सिला
गैर के साथ उसका मिलन हो गया
मेरी मजबूरियों की नहीं इंतेहा
उसकी शादी में उसकी खुशी के लिए
प्यार के गीत मुझको भी गाना पड़ा
गम जुदाई का यूं तो बहुत था मगर
दूर तक हाथ फिर भी हिलाना पड़ा
बैठ कर रेलगाड़ी में वो चल दिए
रोते रोते हमें घर को आना पड़ा
--अल्ताफ राजा
Wednesday, July 21, 2010
बच जाएगी, बस जाएगी, जर्रों मे लेकिन याद कोई
माँगे तो क्या माँगे रब से, हो मन मे बची मुराद कोई,
चंदा को छूने की हसरत, पर अब ना तेरे बाद कोई..
वो बोले थे कह दो कहने से मन हल्का हो जाएगा,
जाती लहरों से उजड़े तट करते भी क्या फरियाद कोई.
हमराहों ने जब हाथ छोड़ थी खुशी-खुशी राहें बदली,
तन्हाई यूँ आकर बोली, मत डर है तेरे साथ कोई.
लोगो की नरम-मिजाजी से.. हम को तो सख़्त शिकायत है,
माना की हैं आबाद नही, इतने भी नही बर्बाद कोई
तन मिट्टी का ढलते ढलते, एक रोज धुआँ बन जाएगा,
बच जाएगी, बस जाएगी, जर्रों मे लेकिन याद कोई
--गौरव शुक्ला
E-mail : Gaurav_shukla06@infosys.com
Tuesday, July 20, 2010
ये मेरी मोहब्बत की तौहीन होगी
तेरी बेवफाई का शिकवा करूँ तो
ये मेरी मोहब्बत की तौहीन होगी
भरी बज़्म में तुझको रुसवा करूँ तो
ये मेरी शराफत की तौहीन होगी
तेरी बेवफाई का शिकवा करू तो
ये मेरी मोहब्बत की तौहीन होगी
न महफ़िल में होंगी, न मेले में होंगी
ये आपस की बातें अकेले में होंगी
मैं लोगो से तेरी शिकायत करूँ तो
ये मेरी शिकायत की तौहीन होंगी
तेरी बेवफाई का शिकवा करू तो
ये मेरी मोहब्बत की तौहीन होगी
सुना है तेरा और भी इक बलम है
मगर गम न कर तुझको मेरी कसम है
तुझे बेशरम बेमुरव्वत कहूँ तो
ये मेरी मुरव्वत की तौहीन होगी
तेरी बेवफाई का शिकवा करू तो
ये मेरी मोहब्बत की तौहीन होगी
--शहजाद साहिब
Monday, July 12, 2010
चलो ये मान लिया के आँख मेरी नम
चलो ये मान लिया के आँख मेरी नम नहीं
गुमान न कर के मेरे दिल में कोई गम नहीं
उसी को खौफ है कि मंजिलें कठिन हैं बहुत
वफ़ा की राह पे मेरा जो हमकदम नहीं
तुम्हे गुरूर है अपनी सितामगिरी पे अगर
ए दोस्त हौंसला जीने का मुझ में भी कम नहीं
सुरूर-ए-दिल भी वही है अज़ीज़-ए-जान भी वही है
के डर-ए-जीस्त पे एक नाम जो रकम भी नहीं
इल्म जो हक का उठाया है मैंने अभी
बहाल सांस है, बाजू में कलम भी नहीं
हज़ार गम हैं मगर फिर जो सलामत हूँ
तो किस तरह से कह दूं तेरा करम भी नहीं
--अज्ञात
इस शहर-ए-नामुराद की इज़्ज़त करेगा
इस शहर-ए-नामुराद की इज़्ज़त करेगा कौन...
हम ही चले गये तो मोहब्बत करेगा कौन...
इस घर की देख-रेख के लिए वीरनियाँ तो हों...
जाले हटा दिए तो हिफ़ाज़त करेगा कौन...
सदमे से टूटने के लिए कुछ तो चाहिए...
कुछ भी नहीं तो इसकी शिकायत करेगा कौन...
मुझको खबर तो है की तू कमजोर है मगर...
मैं ये भी जनता हूँ हिमायत करेगा कौन...
--अल्ताफ राजा
हुआ जो कुछ उसे भुलाना चाहिए था
हुआ जो कुछ उसे भुलाना चाहिए था
के उसे अब लौट आना चाहिए था
यह सारा बोझ मेरे सर पे क्यों है
उसे भी थोड़ा गम उठाना चाहिए था
इतनी खामोशी से ताल्लुक तोड़ दिया
उसे पहले बताना चाहिए था
उसकी यादों की खुश्बू है आज भी मेरे दिल मैं
मुझे जिसको भुलाना चाहिए था
ज़रा सी ग़लती पे रूठ बैठे
क्या उससे बस बहाना चाहिए था ??
मुझे पा कर उससे क्या चैन मिलता
जिसे सारा ज़माना चाहिए था
--अज्ञात
Sunday, July 11, 2010
वो मुझसे पूछ रहा है बताओ कैसा है
वो मुझसे पूछ रहा है बताओ कैसा है,
जो मैने तुमको दिया था वो घाव कैसा है
अभी भी टीस से रातों को जागते हो के नहीं,
कुछ अपने ज़ख़्म की हालत सुनाओ कैसा है
कहा तो था के बहुत सख़्त मरहाले होंगे,
यह मेरी ज़ात से तुमको लगाव कैसा है
शदीद कर्ब में जीना भी रास है तुमको,
तुम्हारे शौक़ का यह चल चलाव कैसा है
तलाश कर ही लो मिल जाएगा कोई तुमको,
मेरी ही सिम्त तुम्हारा झुकाव कैसा है
श्रृंगार हुस्न की फ़ितरत रही है सदियों से,
तुम्हारे इश्क़ में आख़िर बनाव कैसा है
वो जिस शहर में बसर कर रहे हो उम्र फिगार,
मुहब्बातों का वहाँ रख रखाव कैसा है
--फिगार
Source: http://mobyhump.blogspot.com/2010/07/ek-koshish-ek-sher-dekh-kar.html
Tuesday, July 6, 2010
वो जो बेखौफ़ मोहब्बत का हुनर देता है
वो जो बेखौफ़ मोहब्बत का हुनर देता है
हाँ वही शक्स बिछड़ने का भी डर देता है
प्यार भर देता है उड़ने की तमन्ना दिल में
और मेरे पंख भी पत्थर के वो कर देता है
मेरे हिस्से के खुदा गम तो मुझे मिलते हैं
पर मेरे हिस्से की सब खुशियाँ किधर देता है?
रिश्ता ही प्यार का होता है ये कैसा रिश्ता
तन्हा दुनिया से जो लड़ने का जिगर देता है
--इरशाद कामिल
Saturday, July 3, 2010
मैं ने कहा के मुझे छोड़ दो या तोड़ दो
मैं ने कहा के मुझे छोड़ दो या तोड़ दो
वो बेवफा हंस के बोली
इतने नायाब खिलौने रोज कहाँ मिलते हैं
--अज्ञात
वो कह गए कि मेरा इंतज़ार मत करना
वो कह गए कि मेरा इंतज़ार मत करना
मैं कहूँ भी तो मुझ पे ऐतबार मत करना
वो कहते हैं के मुझे तुमसे मोहब्बत नहीं
पर तुम किसी और से प्यार मत करना
--अज्ञात
दिल दिया ऐतबार की हद थी
दिल दिया ऐतबार की हद थी
जान दी तेरे प्यार की हद थी
मर गए हम खुली रही आँखें
ये तेरे इंतज़ार की हद थी
--अज्ञात
किताब-ए-जिंदगी
हज़ार निगाहों से गुजरी मगर कोई पढ़ न सका
जिंदगी भर खुली रही किताब-ए-जिंदगी मेरी
--अज्ञात
दर्द, अश्क,तन्हाई और बेकारी बेहिसाब
दर्द, अश्क,तन्हाई और बेकारी बेहिसाब
क्या करेगी मौत मेरी जिंदगी लेकर
--जौली
ज़रा सी रंजिश पे न छोड़ो वफ़ा का दामन
ज़रा सी रंजिश पे न छोड़ो वफ़ा का दामन
उमरें बीत जाती हैं दिल का रिश्ता बनने में
--अज्ञात
ज़माने से न छुप गर करनी मोहब्बत है
ज़माने से न छुप गर करनी मोहब्बत है
कि मज़ा आता है खेल का तमाशबीनो से
--जौली