दिल में और तो क्या रखा है
तेरा दर्द छुपा रखा है।
इतने दुखों की तेज़ हवा में
दिल का दीप जला रखा है।
इस नगरी के कुछ लोगों ने
दुख का नाम दवा रखा है।
वादा-ए-यार की बात न छेड़ो
ये धोखा भी खा रखा है।
भूल भी जाओ बीती बातें
इन बातों में क्या रखा है।
चुप चुप क्यों रहते हो ‘नासिर’
ये क्या रोग लगा रखा है
--नासिर काज़मी
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Sunday, December 27, 2009
जान-ओ-दिल से मैं हारता ही रहूँ
जान-ओ-दिल से मैं हारता ही रहूँ
गर तेरी जीत मेंरी हार में है।
क्या हुआ गर खुशी नहीं बस में
मुसकुराना तो इख़्तियार में है।
–-फरहत शहजाद
इख़्तियार = Choice, Control, Influence, Option, Right
गर तेरी जीत मेंरी हार में है।
क्या हुआ गर खुशी नहीं बस में
मुसकुराना तो इख़्तियार में है।
–-फरहत शहजाद
इख़्तियार = Choice, Control, Influence, Option, Right
वही पलकों का झपकना वही जादू तेरे
वही पलकों का झपकना वही जादू तेरे
सारे अंदाज़ चुरा लाई है ख़ुशबू तेरे।
तुझसे मैं जिस्म चुराता था मगर इल्म न था
मेरे साये से लिपट जाएँगे बाज़ू तेरे ।
तेरी आँखों में पिघलती रही सूरत मेरी।
मेरी तसवीर पे गिरते रहे आँसू तेरे।
और कुछ देर अगर तेज़ हवा चलती रही
मेरी बाँहों में बिखर जाएँगे गेसू तेरे।
--अज्ञात
सारे अंदाज़ चुरा लाई है ख़ुशबू तेरे।
तुझसे मैं जिस्म चुराता था मगर इल्म न था
मेरे साये से लिपट जाएँगे बाज़ू तेरे ।
तेरी आँखों में पिघलती रही सूरत मेरी।
मेरी तसवीर पे गिरते रहे आँसू तेरे।
और कुछ देर अगर तेज़ हवा चलती रही
मेरी बाँहों में बिखर जाएँगे गेसू तेरे।
--अज्ञात
जब प्यार नहीं है तो भुला क्यों नहीं देते?
जब प्यार नहीं है तो भुला क्यों नहीं देते?
ख़त किसलिए रखे हैं जला क्यों नहीं देते?
किस वास्ते लिखा है हथेली पे मेरा नाम
मैं हर्फ़ ग़लत हूँ तो मिटा क्यों नहीं देते?
लिल्लाह शब-ओ-रोज़ की उलझन से निकालो
तुम मेरे नहीं हो तो बता क्यों नहीं देते?
रह रह के न तड़पाओ ऐ बेदर्द मसीहा
हाथों से मुझे ज़हर पिला क्यों नहीं देते?
जब इसकी वफ़ाओं पे यकीं तुमको नहीं है
‘हसरत’ को निग़ाहों से गिरा क्यों नहीं देते?
–-हसरत जयपुरी
हर्फ = Syllable, Letter
शब-ओ-रोज़ = Night and Day
Lyrics: Hasrat Jaipuri
Singer: Hussain Brothers
ख़त किसलिए रखे हैं जला क्यों नहीं देते?
किस वास्ते लिखा है हथेली पे मेरा नाम
मैं हर्फ़ ग़लत हूँ तो मिटा क्यों नहीं देते?
लिल्लाह शब-ओ-रोज़ की उलझन से निकालो
तुम मेरे नहीं हो तो बता क्यों नहीं देते?
रह रह के न तड़पाओ ऐ बेदर्द मसीहा
हाथों से मुझे ज़हर पिला क्यों नहीं देते?
जब इसकी वफ़ाओं पे यकीं तुमको नहीं है
‘हसरत’ को निग़ाहों से गिरा क्यों नहीं देते?
–-हसरत जयपुरी
हर्फ = Syllable, Letter
शब-ओ-रोज़ = Night and Day
Lyrics: Hasrat Jaipuri
Singer: Hussain Brothers
लोग कहते आये हैं जिसे ज़िन्दगी
for people who die to love, they are actually loving to die
लोग कहते आये हैं जिसे ज़िन्दगी
हमने तो उसकी हर अदा में मौत देखी है
--अज्ञात
(here 'zindagi' is the loved girl, jise dekhkar aashiq jite hain...ya fir pal-pal marte hain... )
लोग कहते आये हैं जिसे ज़िन्दगी
हमने तो उसकी हर अदा में मौत देखी है
--अज्ञात
(here 'zindagi' is the loved girl, jise dekhkar aashiq jite hain...ya fir pal-pal marte hain... )
खूब करता है, वो मेरे ज़ख्म का इलाज
खूब करता है, वो मेरे ज़ख्म का इलाज
कुरेद कर देख लेता है, और कहता है वक्त लगेगा !!
--तपेश कुमार
कुरेद कर देख लेता है, और कहता है वक्त लगेगा !!
--तपेश कुमार
ना वो जाल रखती है, ना ज़ंजीर रखती है
ना वो जाल रखती है, ना ज़ंजीर रखती है
पर नज़रों से वार करने की तासीर रखती है
निकल जाती है पास से अजनबी बनकर दोस्तो
जो रात को तकिये के नीचे मेरी तस्वीर रखती है
--अज्ञात
पर नज़रों से वार करने की तासीर रखती है
निकल जाती है पास से अजनबी बनकर दोस्तो
जो रात को तकिये के नीचे मेरी तस्वीर रखती है
--अज्ञात
तमन्ना कोई मेरे दिल की पूरी ना हुई
तमन्ना कोई मेरे दिल की पूरी ना हुई
चाहत का कोई अफसाना ना बना
आज फिर चली गयी नज़रों के सामने से
आज फिर उस से बात करने का बहाना ना बना
--अज्ञात
चाहत का कोई अफसाना ना बना
आज फिर चली गयी नज़रों के सामने से
आज फिर उस से बात करने का बहाना ना बना
--अज्ञात
वो ख्वाबो की तरह सच्चा बहुत था
वो ख्वाबो की तरह सच्चा बहुत था
ये धोखा था मगर अच्छा बहुत था
वो मेरा है गलतफहमी थी मुझको
पर ये सच है मैं उसका बहुत था
--अज्ञात
ये धोखा था मगर अच्छा बहुत था
वो मेरा है गलतफहमी थी मुझको
पर ये सच है मैं उसका बहुत था
--अज्ञात
Saturday, December 26, 2009
मुमकिन है, ज़िन्दगी का ये अन्दाज़-ए-इश्क़ हो
मुमकिन है, ज़िन्दगी का ये अन्दाज़-ए-इश्क़ हो
तु उसकी बेरुखी में कभी डूब के तो देख
--राजेश रेड्डी
तु उसकी बेरुखी में कभी डूब के तो देख
--राजेश रेड्डी
Thursday, December 24, 2009
ज़माने के सवालों को मैं हस के टाल दूँ फराज़
ज़माने के सवालों को मैं हस के टाल दूँ फराज़
लेकिन नमी आंखों की कहती है, मुझे तुम याद आते हो
--अहमद फराज़
लेकिन नमी आंखों की कहती है, मुझे तुम याद आते हो
--अहमद फराज़
उसे मैं याद आता तो हूँ फुरसत के लम्हों मे फराज़
उसे मैं याद आता तो हूँ फुरसत के लम्हों मे फराज़
मगर ये हकीकत है, के उसे फुरसत नहीं मिलती
--अहमद फराज़
मगर ये हकीकत है, के उसे फुरसत नहीं मिलती
--अहमद फराज़
लाज़िम है मोहब्बत की कसक दोनो तरफ़ हो
लाज़िम है मोहब्बत की कसक दोनो तरफ़ हो
इक हाथ से तो ताली बजाई नही जाती
इक तुम हो फ़राज़ के करते नही इज़हार-ए-मोहब्बत
हम से तो दिल की बात छुपाई नही जाती
--अहमद फराज़
इक हाथ से तो ताली बजाई नही जाती
इक तुम हो फ़राज़ के करते नही इज़हार-ए-मोहब्बत
हम से तो दिल की बात छुपाई नही जाती
--अहमद फराज़
ग़म-ए-हयात का झगड़ा मिटा रहा है कोई
ग़म-ए-हयात का झगड़ा मिटा रहा है कोई
चले आओ के दुनिया से जा रहा है कोई
कोई अज़ल से कह दो, रुक जाये दो घड़ी
सुना है आने का वादा निभा रहा है कोई
वो इस नाज़ से बैठे हैं लाश के पास
जैसे रूठे हुए को मना रहा है कोई
पलट कर न आ जाये फ़िर सांस नब्ज़ों में
इतने हसीन हाथो से मय्यत सजा रहा है कोई
--अहमद फराज़
चले आओ के दुनिया से जा रहा है कोई
कोई अज़ल से कह दो, रुक जाये दो घड़ी
सुना है आने का वादा निभा रहा है कोई
वो इस नाज़ से बैठे हैं लाश के पास
जैसे रूठे हुए को मना रहा है कोई
पलट कर न आ जाये फ़िर सांस नब्ज़ों में
इतने हसीन हाथो से मय्यत सजा रहा है कोई
--अहमद फराज़
दिल गुमसुम, ज़ुबां खामोश
दिल गुमसुम, ज़ुबां खामोश, ये आंखें आज नम क्यों है
जब तुझे कभी पाया ही ना था, तो फिर आज खोने का ग़म क्यों है
--अज्ञात
जब तुझे कभी पाया ही ना था, तो फिर आज खोने का ग़म क्यों है
--अज्ञात
Saturday, December 19, 2009
ये इश्क़ भी क्या है, इसे अपनाये कोई और
ये इश्क़ भी क्या है, इसे अपनाये कोई और
चाहूँ किसी और को, और याद आये कोई और
उस शक्स की महफिल कभी बरपा हो तो देखो
हो ज़िक्र किसी और का, शरमाये कोई और
--अज्ञात
चाहूँ किसी और को, और याद आये कोई और
उस शक्स की महफिल कभी बरपा हो तो देखो
हो ज़िक्र किसी और का, शरमाये कोई और
--अज्ञात
Friday, December 18, 2009
कितने पास कितने दूर हैं हम
कितने पास कितने दूर हैं हम
खुदा ही जानता है कितने मजबूर हैं हम
सज़ा ये है कि मिल नहीं सकते आपसे
और गुनाह ये है के बेकसूर हैं हम
--अज्ञात
खुदा ही जानता है कितने मजबूर हैं हम
सज़ा ये है कि मिल नहीं सकते आपसे
और गुनाह ये है के बेकसूर हैं हम
--अज्ञात
दिल दे तो इस मिजाज़ का परवरदिगार दे
दिल दे तो इस मिजाज़ का परवरदिगार दे
जो रंज की घड़ी को खुशी में गुज़ार दे
--दाग देहलवी
जो रंज की घड़ी को खुशी में गुज़ार दे
--दाग देहलवी
Sunday, December 13, 2009
MISSED CALL तो मार दे
उस प्यारी सी सूरत का फिर एक बार दीदार दे
तड़प रहे हैं हम यहां, अब और ना इंतज़ार दे
आवाज़ मत सुना ए ज़ालिम मगर
कम से कम एक MISSED CALL तो मार दे
--अज्ञात
तड़प रहे हैं हम यहां, अब और ना इंतज़ार दे
आवाज़ मत सुना ए ज़ालिम मगर
कम से कम एक MISSED CALL तो मार दे
--अज्ञात
दिल को आता है जब भी खयाल उनका
दिल को आता है जब भी खयाल उनका
तस्वीर से पूछा करते हैं हम हाल उनका
वो कभी हम से पूछा करते थे, जुदाई क्या है
आज समझ आया है सवाल उनका
--अज्ञात
तस्वीर से पूछा करते हैं हम हाल उनका
वो कभी हम से पूछा करते थे, जुदाई क्या है
आज समझ आया है सवाल उनका
--अज्ञात
खफा है मुझसे, मुझे परेशान करता है
खफा है मुझसे, मुझे परेशान करता है
अजब शक्स है, खुद से बदगुमान करता है
न मेरी परवाह है, न मेरे हाल की कुछ फिक्र
सलूक वो करने लगा है, जैसे अनजान करता है
वो मेरे ज़िक्र पे मुझसे कतरा कर गुज़र जाना
ऐसा लगता है, जैसे वो दूरी का सामान करता है
पहले तो मुझसे मिलना ही एहम था जिसके लिये
अब मिलता है, तो जैसे एहसान करता है
तालुक तोड़ना है तो आ के कह दे मुझसे
वो ऐसी बातें क्यों ग़ैरों से बयान करता है
--अज्ञात
अजब शक्स है, खुद से बदगुमान करता है
न मेरी परवाह है, न मेरे हाल की कुछ फिक्र
सलूक वो करने लगा है, जैसे अनजान करता है
वो मेरे ज़िक्र पे मुझसे कतरा कर गुज़र जाना
ऐसा लगता है, जैसे वो दूरी का सामान करता है
पहले तो मुझसे मिलना ही एहम था जिसके लिये
अब मिलता है, तो जैसे एहसान करता है
तालुक तोड़ना है तो आ के कह दे मुझसे
वो ऐसी बातें क्यों ग़ैरों से बयान करता है
--अज्ञात
Saturday, December 12, 2009
ज़ुल्फें हैं उसकी भीगी हुई रात की तरह
ज़ुल्फें हैं उसकी भीगी हुई रात की तरह
लेहज़ा खुश्क खुश्क सा है बरसात की तरह
खुश्बू से उस हसीन की महकी है कायनात
उसका ख्याल भी है मुलाकात की तरह
--अज्ञात
लेहज़ा खुश्क खुश्क सा है बरसात की तरह
खुश्बू से उस हसीन की महकी है कायनात
उसका ख्याल भी है मुलाकात की तरह
--अज्ञात
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ
--डा कुमार विश्वास
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ
--डा कुमार विश्वास
सीख जायेगा
हवा के रुख पे रहने दो, जलना सीख जायेगा
कि बच्चा लड़खड़ायेगा तो चलना सीख जायेगा
वो पहरों बैठ कर तोते से बातें करता है
चलो अच्छा है, अब नज़रें बदलना सीख जायेगा
इसी उम्मीद पर बदन को हमने कर लिया छलनी
कि पत्थर खाते खाते पेड़ फलना सीख जायेगा
ये दिल बच्चे की सूरत है, इसे सीने में रहने दो
बुरा होगा जो ये घर से निकलना सीख जायेगा
तुम अपना दिल मेरे सीने में कुछ दिन के लिये रख दो
यहां रह कर ये पत्थर भी पिघलना सीख जायेगा
--मुनव्वर राणा
कि बच्चा लड़खड़ायेगा तो चलना सीख जायेगा
वो पहरों बैठ कर तोते से बातें करता है
चलो अच्छा है, अब नज़रें बदलना सीख जायेगा
इसी उम्मीद पर बदन को हमने कर लिया छलनी
कि पत्थर खाते खाते पेड़ फलना सीख जायेगा
ये दिल बच्चे की सूरत है, इसे सीने में रहने दो
बुरा होगा जो ये घर से निकलना सीख जायेगा
तुम अपना दिल मेरे सीने में कुछ दिन के लिये रख दो
यहां रह कर ये पत्थर भी पिघलना सीख जायेगा
--मुनव्वर राणा
सब की पूजा एक सी, क्या मन्दिर क्या पीर
सब की पूजा एक सी, क्या मन्दिर क्या पीर
जिस दिन सोया देर तक, भूखा रहा फ़कीर
--अज्ञात
Another version of this is here
जिस दिन सोया देर तक, भूखा रहा फ़कीर
--अज्ञात
Another version of this is here
कीमती पीते हैं, लाजवाब पीते हैं
कीमती पीते हैं, लाजवाब पीते हैं
बहुत पीते हैं, बेहिसाब पीते हैं
जब भी आती है तेरी याद
हम खून बेच कर शराब पीते हैं
--अज्ञात
बहुत पीते हैं, बेहिसाब पीते हैं
जब भी आती है तेरी याद
हम खून बेच कर शराब पीते हैं
--अज्ञात
Wednesday, December 9, 2009
मुझे नसीब हुआ उसके ध्यान में रहना
मुझे नसीब हुआ उसके ध्यान में रहना
ज़मीन पे होते हुए आसमान में रहना
मैं जानती हूँ की वो मेरा हो नहीं सकता
मुझे पसंद है लेकिन गुमान में रहना
मुहब्बतों में जो दिल बे-क़रार हो जाएँ
उन्हें नसीब कहाँ इत्मिनान में रहना
किसी किसी को दिया मर्तबा खुदा ने ये
किसी का होना किसी की अमान* में रहना
मुझे नसीब हुआ उसके ध्यान में रहना
ज़मीन पे होते हुए आसमान में रहना
--अज्ञात
अमान=security
ज़मीन पे होते हुए आसमान में रहना
मैं जानती हूँ की वो मेरा हो नहीं सकता
मुझे पसंद है लेकिन गुमान में रहना
मुहब्बतों में जो दिल बे-क़रार हो जाएँ
उन्हें नसीब कहाँ इत्मिनान में रहना
किसी किसी को दिया मर्तबा खुदा ने ये
किसी का होना किसी की अमान* में रहना
मुझे नसीब हुआ उसके ध्यान में रहना
ज़मीन पे होते हुए आसमान में रहना
--अज्ञात
अमान=security
जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
तू कहां है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे
--अहमद फराज़
जुज़=other than
Source : http://www.urdupoetry.com/faraz31.html
तू कहां है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे
--अहमद फराज़
जुज़=other than
Source : http://www.urdupoetry.com/faraz31.html
शोला था जल-बुझा हूँ हवायें मुझे ना दो
शोला था जल-बुझा हूँ हवायें मुझे ना दो
मैं कब का जा चुका हूँ सदायें मुझे ना दो
जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया
अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआयें मुझे ना दो
ऐसा कहीं ना हो के पलटकर ना आ सकूँ
हर बार दूर जा के सदायें मुझे ना दो
कब मुझ को ऐतेराफ़-ए-मुहब्बत ना था 'फ़राज़'
कब मैं ने ये कहा था सज़ायें मुझे ना दो
--अहमद फ़राज़
Source : http://www.urdupoetry.com/faraz07.html
मैं कब का जा चुका हूँ सदायें मुझे ना दो
जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया
अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआयें मुझे ना दो
ऐसा कहीं ना हो के पलटकर ना आ सकूँ
हर बार दूर जा के सदायें मुझे ना दो
कब मुझ को ऐतेराफ़-ए-मुहब्बत ना था 'फ़राज़'
कब मैं ने ये कहा था सज़ायें मुझे ना दो
--अहमद फ़राज़
Source : http://www.urdupoetry.com/faraz07.html
Monday, December 7, 2009
खूबसूरती भी क्या बुरी चीज़ है
खूबसूरती भी क्या बुरी चीज़ है ग़ालिब
जिसने भी कभी डाली बुरी नज़र ही डाली
--मिरज़ा ग़ालिब
जिसने भी कभी डाली बुरी नज़र ही डाली
--मिरज़ा ग़ालिब
पहलू में रह के दिल ने दिया बड़ा फरेब
पहलू में रह के दिल ने दिया बड़ा फरेब
रखा है उसको याद, भुलाने के बाद भी
--अज्ञात
रखा है उसको याद, भुलाने के बाद भी
--अज्ञात
Sunday, December 6, 2009
हम याद नहीं करते तो भुलाते भी नहीं
हम याद नहीं करते तो भुलाते भी नहीं
हम हसते भी नहीं तो किसी को रुलाते भी नहीं
आप जैसे अनमोल दोस्त सम्भाल रखे हैं
अगर और बना नहीं सकते तो किसी को गंवाते भी नहीं
--अज्ञात
हम हसते भी नहीं तो किसी को रुलाते भी नहीं
आप जैसे अनमोल दोस्त सम्भाल रखे हैं
अगर और बना नहीं सकते तो किसी को गंवाते भी नहीं
--अज्ञात
गुलशन में सब को जुस्तजू तेरी है
गुलशन में सब को जुस्तजू* तेरी है
बुल्बुल की ज़ुबां पे गुफ्तगू तेरी है
हर रंग में है जल्वा तेरी दोस्ती का
जिस फूल को सूंघता हूँ, खुश्बू तेरी है
--अज्ञात
जुस्तजू=Desire
बुल्बुल की ज़ुबां पे गुफ्तगू तेरी है
हर रंग में है जल्वा तेरी दोस्ती का
जिस फूल को सूंघता हूँ, खुश्बू तेरी है
--अज्ञात
जुस्तजू=Desire
है याद मुलाक़ात की वो शाम अभी तक
है याद मुलाक़ात की वो शाम अभी तक
मैं तुझको भुलाने में हूँ नाकाम अभी तक
आ तुझको दिखाऊँ तेरे बाद ए सितमगर
वीरान पड़ा है दर-ओ-बाम अभी तक
गर तर्क-ए-ताल्लुक को हुआ एक ज़माना
होंटों पे मचलता है तेरा नाम अभी तक
तर्क-ए-ताल्लुक=रिश्ता तोड़ना
महसूस ये होता है के वो हम से खफा हैं
क्या तर्क-ए-मोहब्बत का है इल्ज़ाम अभी तक
मैंखाने में भूले से चले आये हैं मोहसिन
एहबाब की नज़रों में है बदनाम अभी तक
--मोहसिन नक़वी
मैं तुझको भुलाने में हूँ नाकाम अभी तक
आ तुझको दिखाऊँ तेरे बाद ए सितमगर
वीरान पड़ा है दर-ओ-बाम अभी तक
गर तर्क-ए-ताल्लुक को हुआ एक ज़माना
होंटों पे मचलता है तेरा नाम अभी तक
तर्क-ए-ताल्लुक=रिश्ता तोड़ना
महसूस ये होता है के वो हम से खफा हैं
क्या तर्क-ए-मोहब्बत का है इल्ज़ाम अभी तक
मैंखाने में भूले से चले आये हैं मोहसिन
एहबाब की नज़रों में है बदनाम अभी तक
--मोहसिन नक़वी
हर शाम हर रात इंतज़ार में गुज़री
हर शाम हर रात इंतज़ार में गुज़री
ज़िन्दगी बेबसी के सैलाब में गुज़री
हम वो फूल थे जिसे वो रख के भूल गये
फिर तमाम उम्र उनकी किताब में गुज़री
--अज्ञात
ज़िन्दगी बेबसी के सैलाब में गुज़री
हम वो फूल थे जिसे वो रख के भूल गये
फिर तमाम उम्र उनकी किताब में गुज़री
--अज्ञात
Saturday, December 5, 2009
यादों में बसा रखा है तुझे इस कदर
यादों में बसा रखा है तुझे इस कदर
कोई वक्त पूछे तो तेरा नाम बताते हैं
--अज्ञात
कोई वक्त पूछे तो तेरा नाम बताते हैं
--अज्ञात
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता
ना मज़ा है दुश्मनी में ना है लुत्फ़ दोस्ती में
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता
ये मज़ा था दिल्लगी का के बराबर आग लगती
ना तुम्हें क़रार होता ना हमें क़रार होता
तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते
अगर अपनी ज़िन्दगी का हमें ऐतबार होता
--दाग़ देहलवी
Source http://www.urdupoetry.com/daag04.html
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता
ना मज़ा है दुश्मनी में ना है लुत्फ़ दोस्ती में
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता
ये मज़ा था दिल्लगी का के बराबर आग लगती
ना तुम्हें क़रार होता ना हमें क़रार होता
तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते
अगर अपनी ज़िन्दगी का हमें ऐतबार होता
--दाग़ देहलवी
Source http://www.urdupoetry.com/daag04.html
उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन
लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-नापायेदार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में
उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये दो इन्तज़ार में
कितना है बद_नसीब "ज़फ़र" दफ़्न के लिये
दो गज़ ज़मीन भी ना मिली कू-ए-यार में
कू-ए-यार=यार की गली
--बहादुर शाह ज़फर
किस की बनी है आलम-ए-नापायेदार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में
उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये दो इन्तज़ार में
कितना है बद_नसीब "ज़फ़र" दफ़्न के लिये
दो गज़ ज़मीन भी ना मिली कू-ए-यार में
कू-ए-यार=यार की गली
--बहादुर शाह ज़फर
तेरे हुस्न को परदे की ज़रूरत ही क्या है ग़ालिब
तेरे हुस्न को परदे की ज़रूरत ही क्या है ग़ालिब
कौन होश में रहता है, तुझे देखने के बाद
--मिरज़ा ग़ालिब
कौन होश में रहता है, तुझे देखने के बाद
--मिरज़ा ग़ालिब
गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गये
गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गये
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गये
--ख़ातिर ग़ज़नवी
Source : http://www.urdupoetry.com/kgaznavi01.html
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गये
--ख़ातिर ग़ज़नवी
Source : http://www.urdupoetry.com/kgaznavi01.html
Friday, December 4, 2009
दुनिया में और भी वजह होती है दिल के टूट जाने की
दुनिया में और भी वजह होती है दिल के टूट जाने की...
लोग यूँ ही महब्बत को बदनाम किया करते हैं
--अज्ञात
लोग यूँ ही महब्बत को बदनाम किया करते हैं
--अज्ञात
अपने किरदार पे लोग रखते नहीं नज़र
अपने किरदार पे लोग रखते नहीं नज़र...
शिकवा करते हैं, मुक़द्दर के बिगड़ जाने का !!
--अज्ञात
शिकवा करते हैं, मुक़द्दर के बिगड़ जाने का !!
--अज्ञात
Tuesday, December 1, 2009
ता उम्र सीने में रखा ये हमारा न हो सका
ता उम्र सीने में रखा ये हमारा न हो सका
तुमने मुस्कुरा कर देखा ये दिल तुम्हारा हो गया
--अज्ञात
तुमने मुस्कुरा कर देखा ये दिल तुम्हारा हो गया
--अज्ञात
तनहा पाते ही मुझको कर लेता है मेरे दिल का रुख
तनहा पाते ही मुझको कर लेता है मेरे दिल का रुख
मुझको ये काफिला तेरी यादों का लगता है
--जौली
मुझको ये काफिला तेरी यादों का लगता है
--जौली
ਰੋਗ ਬਣ ਕੇ ਰਹਿ ਗਿਆ, ਪਿਆਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ
ਰੋਗ ਬਣ ਕੇ ਰਹਿ ਗਿਆ, ਪਿਆਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ
ਮੈਂ ਮਸੀਹਾ ਵੇਖਿਆ, ਬੀਮਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ
ਇਹਦੀਆਂ ਗਲੀਆਂ ਮੇਰੀ, ਚੜਦੀ ਜਵਾਨੀ ਖਾ ਲਈ
ਕਿਉਂ ਕਰਾ ਨ ਦੋਸਤਾ, ਸਤਿਕਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ
ਸ਼ਹਿਰ ਤੇਰੇ ਕਦਰ ਨਹੀਂ, ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸੁੱਚੇ ਪਿਆਰ ਦੀ
ਰਾਤ ਨੂੰ ਖੁੱਲਦਾ ਹੈ ਹਰ, ਬਾਜਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ
ਫੇਰ ਮੰਜਿਲ ਵਾਸਤੇ, ਇੱਕ ਪੈਰ ਨ ਪੁੱਟਿਆ ਗਿਆ
ਇਸ ਤਰਾਂ ਕੁਛ ਚੁਭਿਆ, ਕੋਈ ਖਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ
ਜਿੱਥੇ ਮੋਇਆਂ ਬਾਅਦ ਵੀ, ਕਫਨ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ਨਸੀਬ
ਕੌਣ ਪਾਗਲ ਹੁਣ ਕਰੇ, ਇਤਬਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ
ਏਥੇ ਮੇਰੀ ਲਾਸ਼ ਤੱਕ, ਨੀਲਾਮ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ
ਲੱਥਿਆ ਕਰਜ ਨ ਫਿਰ ਵੀ, ਯਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ
--शिव कुमार बटालवी
Read in Hindi
ਮੈਂ ਮਸੀਹਾ ਵੇਖਿਆ, ਬੀਮਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ
ਇਹਦੀਆਂ ਗਲੀਆਂ ਮੇਰੀ, ਚੜਦੀ ਜਵਾਨੀ ਖਾ ਲਈ
ਕਿਉਂ ਕਰਾ ਨ ਦੋਸਤਾ, ਸਤਿਕਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ
ਸ਼ਹਿਰ ਤੇਰੇ ਕਦਰ ਨਹੀਂ, ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸੁੱਚੇ ਪਿਆਰ ਦੀ
ਰਾਤ ਨੂੰ ਖੁੱਲਦਾ ਹੈ ਹਰ, ਬਾਜਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ
ਫੇਰ ਮੰਜਿਲ ਵਾਸਤੇ, ਇੱਕ ਪੈਰ ਨ ਪੁੱਟਿਆ ਗਿਆ
ਇਸ ਤਰਾਂ ਕੁਛ ਚੁਭਿਆ, ਕੋਈ ਖਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ
ਜਿੱਥੇ ਮੋਇਆਂ ਬਾਅਦ ਵੀ, ਕਫਨ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ਨਸੀਬ
ਕੌਣ ਪਾਗਲ ਹੁਣ ਕਰੇ, ਇਤਬਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ
ਏਥੇ ਮੇਰੀ ਲਾਸ਼ ਤੱਕ, ਨੀਲਾਮ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ
ਲੱਥਿਆ ਕਰਜ ਨ ਫਿਰ ਵੀ, ਯਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ
--शिव कुमार बटालवी
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अब किसी और को चाहूँ, तो शिकायत कैसी
अब किसी और को चाहूँ, तो शिकायत कैसी
मुझ से बिछड़े हो, मोहब्बत मेरी आदत कर के
--अज्ञात
मुझ से बिछड़े हो, मोहब्बत मेरी आदत कर के
--अज्ञात
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