मै और उसको भुला दूं , ये कैसी बातें करते हो फ़राज़ .......!!!
सूरत तो फिर सूरत है वो नाम भी अच्छा लगता है ........!!!
--अहमद फराज़
If you know, the author of any of the posts here which is posted as Anonymous.
Please let me know along with the source if possible.
Monday, July 25, 2011
मै और उसको भुला दूं , ये कैसी बातें करते हो फ़राज़
Sunday, July 24, 2011
हम अकेले तो नहीं...
बस इसी बात पे, दिल को सुकूं आ जाता है
हम अकेले तो नहीं, जिसे कोई याद आता है
--अमोल सहारन
हम समझते थे के अब यादो की किश्ते चुक चुकीं
हम समझते थे के अब यादो की किश्ते चुक चुकीं
रात तेरी याद ने फिर से तकाजा कर दिया
--तुफैल चतुर्वेदी
एक गज़ल तुझ पे कहूँ दिल का तकाजा है बहुत
एक गज़ल तुझ पे कहूँ दिल का तकाजा है बहुत
इन दिनों खुद से बिछड जाने का इरादा है बहुत
--कृष्ण बिहारी नूर
जहाँ तुम चलते हो, वो हर किसी का रास्ता है
दोस्त ये जो चीता-कशी का रास्ता है
ये शोहरत का नहीं है, ख़ुदकुशी का रास्ता है
जहाँ हम चलते हैं वहाँ सिर्फ हम ही चलते हैं
जहाँ तुम चलते हो, वो हर किसी का रास्ता है
--सतलज राहत
Satlaj Rahat on Facebook
मुझको तो होश नहीं, तुमको खबर हो शायद
मुझको तो होश नहीं, तुमको खबर हो शायद,
लोग कहते हैं कि तुमने मुझे बर्बाद किया।
-'जोश' मलीहाबादी
Source : http://www.sheroshayari.org/urdu-poetry/b/bewafai/bewafai-32.html
या तुम बदल गये हो या हम बदल गये हैं।
बर्ताव दोस्ती के हद से निकल गये हैं,
या तुम बदल गये हो या हम बदल गये हैं।
-'जोश' मलीहाबादी
चलो बस हो चुका मिलना, न तुम खाली, न हम खाली।
तुम्हें गैरों से कब फुरसत, हम अपने गम से कब खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, न तुम खाली, न हम खाली।
-हसरत मोहनी
जमाने की अदावत का सबब थी दोस्ती जिसकी
जमाने की अदावत का सबब थी दोस्ती जिसकी,
अब उनको दुश्मनी है हमसे, दुनिया इसको कहते हैं।
-बेखुद देहलवी
अदावत=दुश्मनी
सबब=कारण
गैरों से कहा तुमने, गैरों से सुना तुमने
गैरों से कहा तुमने, गैरों से सुना तुमने
कुछ हमसे तो कहा होता, कुछ हमसे तो सुना होता
--हसरत चिराग हसन
Monday, July 18, 2011
दिल आख़िर तू क्यूँ रोता है
जब जब दर्द का बादल छाया
जब गम का साया लहराया
जब आँसू पलकों तक आया
जब यह तन्हा दिल घबराया
हमने दिल को ये समझाया
दिल आख़िर तू क्यूँ रोता है
दुनिया में यूँही होता है
यह जो गहरे सन्नाटे हैं
वक़्त ने सबको ही बाँटे हैं
थोड़ा गम है सबका क़िस्सा
थोड़ी धूप है सबका हिस्सा
आँख तेरी बेकार ही नम है
हर पल एक नया मौसम है
क्यूँ तू ऐसे पल खोता है
दिल आख़िर तू क्यूँ रोता है
--जावेद अख्तर
From Movie ZINDAGI NA MILEGI DOBARA
Sunday, July 17, 2011
एक सस्ती शय का ऊंचे भाव सौदा कर लिया
उसके वादे के एवज में दे डाली जिंदगी
एक सस्ती शय का ऊंचे भाव सौदा कर लिया
--तौफेल चतुर्वेदी
Monday, July 11, 2011
एक अधूरी सी कहानी है मुकम्मल कर दे
फरेब दे दे इश्क़ मे मुझे पागल कर दे
एक अधूरी सी कहानी है मुकम्मल कर दे
नही औकात के सोचों को लफ़्ज़ों मे ढालूं
मेरे खुदा मेरे अहसास को ग़ज़ल कर दे
तू मेरे वास्ते बहाए तो अज़ीम खुदा
तेरी आँखो के हर आँसू को गंगाजल कर दे
उसी ने सोच के सब मुश्किले बनाई हैं
वो अगर चाहे तो सब मुश्किलो का हल कर दे
मैं जो भी चाहू ज़िंदगी मे उससे पा के रहूँ
मेरे खुदा मुझे इस बात पे अटल कर दे
यकीन रख वो हक़ीकत मे मुझको ढूँढेगी
उसके ख्वाबो मे ज़रा सा मेरा दखल कर दे
बात अच्छी है के हर बात मान जाता है
वो ज़िद पे आए तो हर बात मे खलल कर दे
'सतलज' ये पहली मुलाकात बहुत अच्छी थी
उसके होंठो की हर इक बात को ग़ज़ल कर दे
-सतलज राहत
Satlaj Rahat on facebook
Saturday, July 9, 2011
एक हम थे के बिक गये ख़ुद ही
कभी आंसू कभी ख़ुशी बेची
हम ग़रीबों ने बेकसी बेची
चन्द सांसे खरीदने के लिये
रोज़ थोदी सी ज़िन्दगी बेची
जब रुलाने लगे मुझे साये
मैन ने उक़्ता के रौशनी बेची
एक हम थे के बिक गये ख़ुद ही
वरना दुनिया ने दोस्ती बेची
--अबू तालिब
झूठी तोहमत लगाए जा रहा है
झूठी तोहमत लगाए जा रहा है
यही गम मुझको खाए जा रहा है
मुझे यादें जलाए जा रही हैं
मुझे बादल भीगाए जा रहा है
तेरे आने की कुछ उम्मीद नही
तेरा ख्याल आए जा रहा है
धूप मे ही करेगा याद मुझको
अभी वो साए साए जा रहा है
मुझसे कुछ ख़ैरियत भी पूछ मेरी
अपने किस्से सुनाए जा रहा है
मेरा ये है, के मैं वही पे हूँ
वक़्त का ये है, जाए जा रहा है
गहरा ज़ख़्म है कोई दिल मे
मुसलसल मुस्कुराए जा रहा है
इतने नखरे कहा उठाने थे
कितने नखरे उठाए जा रहा है
छुपाना याद नही है उसको
बड़ी बातें बनाए जा रहा है
वही तुझको बुलाना भूल गया
तो तू क्या बिन बुलाए जा रहा है
मेरी सोचो मे आने लग गया है
मेरी नींदें चुराए जा रहा है
मुझे बस तुझसे यही कहना है
ये कैसे दिन दिखाए जा रहा है
मैं कोई अपने काम आ ना सका
खुदा भी आज़माए जा रहा है
'सतलज' मार रहा है खुद को
अपना लिखा मिटाए जा रहा है!!!
--सतलज राहत
Satlaj Rahat on Facebook
Friday, July 8, 2011
अब इसका ज़िक्र भी सच्चाइयों में आता है
अब इसका ज़िक्र भी सच्चाइयों में आता है
मेरा दुश्मन भी मेरे भाइयों में आता है
लब पे नाम तो बरसो तलाक नहीं आता
तेरा ख़याल पर तन्हाइयों में आता है
हम शिकार भी दंगाइयों का होते हैं
हमारा नाम भी दंगाइयों में आता है
कभी मैं उसको रोने से रोकता ही नहीं
मुझे सुकून ही गहराइयों में आता है
तुम्हारे साथ जो तन्हाइयों में रहता है
वो मेरे पास भी तन्हाइयों में आता है
मेरा मासूम सा बचपन जो खो गया है कहीं
अभी वो सुबह की अंगडाइयों में आता है
वो अब सुन्हाई भी खामोशियों में देता है
वो अभी दिखाई भी परछाइयों में आता है
सुना है उसकी आँखें भीग जाती हैं
सतलज याद जब तन्हाइयों में आता है
--सतलज राहत
Satlaj Rahat on facebook
मेरी किस्मत बदल गयी साली
हथेली से फिसल गयी साली
जिंदगी थी निकल गयी साली
मेरी किस्मत में तुझे पाना था
मेरी किस्मत बदल गयी साली
वो खुशी है तो मुझे मिल न सकी
वो बाला है तो टल गयी साली
कहा तो था के बेवफा है वो
देख फिर से बदल गयी साली
ज़ख्म फिर से वही उभर आये
फिर वही बात चल गयी साली
मुझसे बस बेवफाई की उसने
गैर को कैसे फल गयी साली
न मिलेंगे ये बात तय है मगर
तमन्ना फिर मचल गयी साली
मौत सब से बड़ी खिलाड़ी है
आखिर चाल चल गयी साली
एक तारीख बनाना थी इससे
तमाशो से बहल गयी साली
अभी तो जिंदगी को जाना था
जिंदगी फिर बदल गयी साली
हसी सच्ची तो नहीं थी मेरी
चला अच्छा है जल गयी साली
तुम्हारी याद काली नागिन है
मेरी रातें निगल गयी साली
जिंदगी भी बिगड गयी सतलज
तेरी सोहबत में ढल गयी साली
--सतलज राहत
Satlaj Rahat on facebook
Tuesday, July 5, 2011
तुझसे बिछड़ा अगर मैं तो मर जाऊँगा
तुझसे बिछड़ा अगर मैं तो मर जाऊँगा
साथ लेकर भी तुझको किधर जाऊँगा
अब मुझे जिंदगानी में आने भी दे
मैं तेरी रूह के ज़ख्म भर जाऊँगा
मैं तो राह-ए-वफ़ा पे चला ही नहीं
उसको लगता था हद से गुज़र जाऊंगा
मुझको इस जिंदगानी ने मोहब्बत न दी
मैंने सोचा था कुछ दिन ठहर जाऊंगा
बस तेरे नाम से जग में बदनाम हूँ
मैं मरा, जो अगर तेरे सर जाऊँगा
खुद तमाशा भी करता है अब इश्क का
उसने मुझसे कहा था मुकर जाऊँगा
दुनिया ऐसी ही चलती रहेगी इतनी मगर
तू भी मर जायेगी मैं भी मर जाऊंगा
मैंने सोचा नहीं, सोचना था मुझे
इतनी जल्दी कहाँ से सुधर जाऊंगा
एक दिन इस उदासी की तस्वीर में
इश्क के सैकडो रंग भर जाऊँगा
तेरे शहर में, तेरी गलियों में फिर
मुझको जाना नहीं था, मगर जाऊँगा
इश्क की राह में खुद की कुर्बानियां
मैं बहुत दे चुका अब तो घर जाऊँगा
सारी दुनिया फसादो से आबाद है
अब जो छुट्टी मिली चाँद पर जाऊँगा
मुझको अपने खयालो से आज़ाद कर
तू तो होगा वहाँ, मैं जिधर जाऊँगा
मैंने दुनिया सजाई है तेरे लिए
सब चला जाएगा मैं अगर जाऊँगा
मैं तो सतलज हूँ दरिया सा बहता हुआ
एक दरिया हूँ, फिर भी ठहर जाऊँगा
--सतलज राहत
Satlaj Rahat on Facebook
Sunday, July 3, 2011
हमारे साथ भी गुज़ार कोई
न कश्ती है न पतवार कोई
ए खुदा भेज मददगार कोई
तेरी किस्मत में कितनी शामें हैं
हमारे साथ भी गुज़ार कोई
लोग शैतान या फ़रिश्ते हैं
खुदा इंसान भी तो उतार कोई
खुद से बाहर निकल नहीं पाता
बैठा रहता है पहरेदार कोई
तुझे पता भी है हर पल तेरा
करता रहता है इंतज़ार कोई
खुदा वही पे मुसल्लत कर दे
कबूतर के लिए मीनार कोई
पता चलता है हिचकियों से मुझे
याद करता है बार बार कोई
हमसे लिहाज़ अब नहीं होगा
सामने आये अब की बार कोई
बहुत ढूंढा हमें न मिल पाया
तुम्हारी बात का आधार कोई
बस यही चाहते हैं हम 'सतलज'
ढूँढ लाये तुझे एक बार कोई
--सतलज राहत
Satlaj Rahat on Facebook