Tuesday, February 9, 2010

जो सफ़र इख़्तियार करते है

जो सफ़र इख़्तियार करते है
वही दरिया को पार करते है

उनसे बिछड़े तो फिर हुआ महसूस
वो हमे कितना प्यार करते है

हम तो अपनों से खा गये धोका
आपको होशियार करते है

झूठे वादे ना किया कर हमसे
हम तेरा ऐतबार करते है

हम तो उस दिल नवाज-दुश्मन को
दोस्तों मे शुमार करते है

--नवाज़ देवबंदी

2 comments:

  1. ये ग़ज़ल नवाज़ देवबंदी साहब की है
    और इसमें एक शेर नहीं है वो दे रहा हूँ

    "सच तो यह है के खुद मुसाफिर का
    रास्ते इंतज़ार करते है "

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  2. बहुत ही अच्छा लगा । नवाज़ देवबंदी जी आपने दिल जीत लिया ।।

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