परखता हूँ मैं जब ये बात बुनियादी निकलती है,
कोई सूरत हो माँ के सामने सादी निकलती है !!
शहीदों को भूलाते जा रहे हो, याद रख लेना ,
कि उनके खून से हो कर ही आज़ादी निकलती है !!
वहां लाकर मुझे इस वक़्त ने छोडा है जहाँ से ,
मैं सारी उम्र भी चलता हूँ तो आधी निकलती है,
(और इक शेर जिन दोस्तों ने रामायण पढ़ी या देखी हो उसमे एक अहील्या का किस्सा आता है जब राम जी के पैर छूते ही पत्थर अहिल्या राजकुमारी बन गया थी !!)
कहाँ है राम वो हम ने सुना है जिन के पांव से ,
लगी ठोकर तो फिर पत्थर से शहज़ादी निकलती है !!
भरी दोपहर में 'रीताज़' ऐसे याद आते हो ,
के जैसे छोड़ कर शहरों को आबादी निकलती है !!
--रीताज मैनी
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