Sunday, February 28, 2010

मोहब्बत में नहीं है

मोहब्बत में नहीं है कैद मिलने और बिछड़ने की

ये इन खुदगरज बातों से बहुत आगे की दुनिया है

--अज्ञात

तुम उदास उदास से लगते हो

तुम उदास उदास से लगते हो

कोई तरकीब बताओ मनाने की

मैं जिंदगी गिरवी रख सकता हूँ

तुम कीमत बताओ मुस्कुराने की

--अज्ञात

किस कदर हसीन

किस कदर हसीन, कितनी शोख, लेकिन बेवफा
मैंने पूछा कौन, वो घबरा के बोले जिंदगी

--अज्ञात

वक़्त के रास्ते से हम तुम को

वक़्त के रास्ते से हम तुम को
एक ही साथ तो गुज़रना था

हम तो जी भी नहीं सके एक साथ
हमको तो एक साथ मरना था

--जौन इलिया

Tuesday, February 23, 2010

क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे

क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे
दिल वो बेमेहर कि रोने के बहाने माँगे

अपना ये हाल के जी हार चुके लुट भी चुके
और मुहब्बत वही अन्दाज़ पुराने माँगे

हम ना होते तो किसी और के चर्चे होते
खल्क़त-ए-शहर तो कहने को फ़साने माँगे

दिल किसी हाल पे माने ही नहीं जान-ए-फराज़
मिल गये तुम भी तो क्या और ना जाने माँगे

--अहमद फ़राज़


Source : http://www.urdupoetry.com/faraz26.html

Sunday, February 21, 2010

तुम्ही कहो क्या सजा है मेरी, खाकसारी खता है मेरी

तुम्ही कहो क्या सजा है मेरी, खाकसारी खता है मेरी
तुम्हे तो मिलने से जिद ने रोका, मेरे सामने अना है मेरी

--अज्ञात

खाकसारी=विनम्रता
अना=स्वाभिमान

Thursday, February 18, 2010

हर घडी खुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा

हर घडी खुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
मैं ही कश्ती हू मुझी में है समंदर मेरा

किससे पूछू की कहाँ गुम हूँ बरसों से
हर जगह ढूंढ़ता फिरता है मुझे घर मेरा

एक से हो गए मौसमों के चहरे सारे
मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा

मुद्दतें बीत गई ख्वाब सुहाना देखे
जगता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा

आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर
आज तक हाथ में महफूज़ है पत्थर मेरा

लेखक - निदा फ़ाज़ली

तुझको ये दुःख है कि मेरी चारागरी कैसे हो

तुझको ये दुःख है कि मेरी चारागरी कैसे हो
मुझे ये गम है कि मेरे ज़ख्म भर न जाएँ कहीं
--अहमद फराज़


Urdu: Chaaraagar
English: Healer, Doctor

रिश्वत को बुरा कहना ठीक नहीं है

रिश्वत को बुरा कहना ठीक नहीं है
बुरी जब है, जब हम दे नहीं सकते
--अर्घ्वान रब्भी

Wednesday, February 17, 2010

ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया

ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूठी क़सम से आप का इमान तो गया

दिल लेके मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
उलटी शिकयतें रही एहसान तो गया

अब शाय-ए-राज़-ए-इश्क़ गो ज़िल्लतें हुई
लेकिन उसे जता तो दिया, जान तो गया

[शाय-ए-राज़-ए-इश्क़=secret of love being known; ज़िल्लत=humiliation]

देखा है बुतकदे में जो ऐ शेख़ कुछ ना कुछ
ईमान की तो ये है कि ईमान तो गया

डरता हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरज़ू को मैं
सुन-सान घर ये क्यूँ ना हो, मेहमान तो गया

गो नामाबर से ख़ुश ना हुआ पर हज़ार शुक्र
मुझ को वो मेरे नाम से पहचान तो गया

होश-ओ-हवास-ओ-ताब-ओ-तवाँ "दाग" जा चुके
अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गया

[होश-ओ-हवास-ओ-ताब-ओ-तवाँ=sense, sensibility, strength, health]

--दाग देहलवी

एक दूसरे से सब यहाँ बेज़ार हो गए

एक दूसरे से सब यहाँ बेज़ार हो गए
रिश्तों के जितने फूल थे सब खार हो गए

निकले हिन् फिर बचाने वो मज़हब की आबरू
फिर एक नए फसाद के आसार हो गए

कल तक जो घर थे, गाँव थे, शहर थे
सब देखते ही देखते बाज़ार हो गए

बेचा जिन्होंने अपना ज़मीर इस जहाँ में वो
दुनिया कि हर खुशी के खरीददार हो गए

मंजिल हमारे सामने थे मुन्तज़र मगर
हम खुद ही अपनी राह में दीवार हो गए

--राजेश रेड्डी

Monday, February 15, 2010

चाहतो का वजूद

थक सा गया है मेरी चाहतो का वजूद
अब कोई अच्छा भी लगे तो हम इज़हार नहीं करते

--अज्ञात

Sunday, February 14, 2010

हम तो इंतखाब करते करते मर गए मोहसिन

हम तो इंतखाब करते करते मर गए मोहसिन
कोई आये मेरी जिंदगी में तो बेवफा न हो

--अज्ञात


शेर में तखल्लुस मोहसिन इस्तेमाल हुआ है, पर मुझे शायर का पक्का नहीं है कि ये मोहसिन नकवी का है या नहीं, किसी को पता हो तो ज़रूर बताना

ये आईने तुझे तेरी खबर क्या देंगे फ़राज

ये आईने तुझे तेरी खबर क्या देंगे फ़राज
आ देख मेरी आखों मे के तू कितना हसीन है

--अहमद फराज़

Wednesday, February 10, 2010

चलो कुछ दिनो के लिये दुनिया छोड चले फ़राज

चलो कुछ दिनो के लिये दुनिया छोड चले फ़राज
सुना है लोग बहुत याद करते है किसी के चले जाने के बाद

--अहमद फराज़

Tuesday, February 9, 2010

जो सफ़र इख़्तियार करते है

जो सफ़र इख़्तियार करते है
वही दरिया को पार करते है

उनसे बिछड़े तो फिर हुआ महसूस
वो हमे कितना प्यार करते है

हम तो अपनों से खा गये धोका
आपको होशियार करते है

झूठे वादे ना किया कर हमसे
हम तेरा ऐतबार करते है

हम तो उस दिल नवाज-दुश्मन को
दोस्तों मे शुमार करते है

--नवाज़ देवबंदी

दिल पहले कहाँ इस तरह गमगीन रहा है

दिल पहले कहाँ इस तरह गमगीन रहा है
लगता है कोई मुझसे तुझे छीन रहा है

कुछ मोड़ भी आते है मोहब्बत में खतरनाक ,
कुछ इश्क भी खतरों का शौकीन रहा है

--मुनव्वर राना

भले हम मिले भी तो क्या मिले, वही दूरियाँ वही फासले

भले हम मिले भी तो क्या मिले, वही दूरियाँ वही फासले,
न कभी हमारे क़दम बढे न कभी तुम्हारी झिझक गई

--बशीर बद्र

हम तुम मिले न थे तो जुदाई का था मलाल

हम तुम मिले न थे तो जुदाई का था मलाल,
अब ये मलाल है की तमन्ना निकल गयी
--"जलील" मानकपुरी....

मन्ज़िलों से देखिए हम दूर होते जा रहे है

मन्ज़िलों से देखिए हम दूर होते जा रहे है
हम भटकने के लिए मज़बूर होते जा रहे है
काम जब अच्छे किए तो कुछ तवज्जों न मिली,
जब हुए बदनाम तो मशहूर होते जा रहे है
--शरद तैलंग

दिलजले फ़िल्म के चंद शेर


फ़िल्म : दिलजले

आरज़ू झूट है, कहानी है,
आरज़ू का फरेब खाना नहीं
खुश जो रहना हो जिंदगी में तुम्हे,
दिल किसी से कभी लगाना नहीं
--अज्ञात

क्यों बनाती हो तुम रेत के ये महल
जिनको एक रोज खुद ही मिटाओगी तुम
आज कहती हो इस दिलजले से प्यार है तुम्हे,
कल मेरा नाम तक भूल जाओगी तुम
--अज्ञात

एक पल में जो आकर गुजार जाता है
ये हवा का वो झोंका है, और कुछ नहीं
प्यार कहती है ये सारी दुनिया जिसे
एक रंगीन धोखा है, और कुछ नहीं
--अज्ञात

Sunday, February 7, 2010

अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो

अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो
आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आये
--अहमद फराज़


Complete gazal is here : http://bagewafa.wordpress.com/2010/02/03/nikalaye_ahmedfaraz/

हसरत पहले हुआ करती थी उनके वस्ल की हमको

हसरत पहले हुआ करती थी उनके वस्ल की हमको
इश्क का दर्जा बढ़ गया है अब बस दीदार की चाह है
--अज्ञात

काफिर हुए थे जिसकी मोहब्बत में हम फराज़

काफिर हुए थे जिसकी मोहब्बत में हम फराज़
कल वही शख्स किसी और के लिए मुसलमान हो गया
--अहमद फराज़

Thursday, February 4, 2010

मेरे क़त्ल का इरादा हो, तो खंजर से न वार करना

मेरे क़त्ल का इरादा हो, तो खंजर से न वार करना
मेरे मरने के लिए खाफी है, तेरा औरों से प्यार करना

--अज्ञात

बहुत हुआ

उसको जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये किस्सा पुराना बहुत हुआ

ढलती न थी किसी भी जतन से शब-ए-फ़िराक़
ए मर्ग-ए-नगाहाँ तेरा आना बहुत हुआ

हम खुल्द से निकल तो गये हैं पर ए खुदा
इतने से वाक्ये का फ़साना बहुत हुआ

अब हम हैं और सारे ज़माने की दुश्मनी
उस से ज़रा राब्त बढ़ाना बहुत हुआ

अब क्यों न ज़िन्दगी पे मोहब्बत को वार दें
इस आशिकी में जान से जाना बहुत हुआ

अब तक दिल का दिल से तारुफ़ न हो सका
माना कि उस से मिलना मिलाना बहुत हुआ

क्या क्या न हम खराब हुए हैं मगर ये दिल
ए याद-ए-यार तेरा ठिकाना बहुत हुआ

कहता था नसीहों से मेरे मुंह न आइयो
फिर क्या था एक हु का आना बहुत हुआ

लो फिर तेरे लबों पे उसी बेवफ़ा का ज़िक्र
अहमद फ़राज़ तुझ से कहा न बहुत हुआ

--अहमद फराज़

दिल किसी हाल पे माने ही नहीं जान-ए-फ़राज़

दिल किसी हाल पे माने ही नहीं जान-ए-फ़राज़
मिल गये तुम भी तो क्या, और न जाने माँगे
--अहमद फराज़

सारा शहर उसके जनाज़े में था शरीक

सारा शहर उसके जनाज़े में था शरीक
मर गया जो शक्स तनहाईयों के खौफ़ से
--अहमद फराज़

दिल के रिशतों कि नज़ाकत वो क्या जाने फ़राज़

दिल के रिशतों कि नज़ाकत वो क्या जाने फ़राज़
नर्म लव्ज़ों से भी लग जाती है चोटें अक्सर

--अहमद फराज़

मिली सज़ा जो मुझे वो किसी खता पे न थी फ़राज़

मिली सज़ा जो मुझे वो किसी खता पे न थी फ़राज़
मुझ पे जो जुर्म साबित हुआ वो वफ़ा का था
--अहमद फराज़

मैं बस एक बार लाजवाब हुआ था फ़राज़

मैं बस एक बार लाजवाब हुआ था फ़राज़
जब किसी अपने ने कहा कौन हो तुम?

--अहमद फराज़

हम से एक रूठा हुआ शक्स न माना फ़राज़

हम से एक रूठा हुआ शक्स न माना फ़राज़
लोग तो रूठी हुई तकदीर मना लेते हैं
--अहमद फराज़

मैं लव्ज़ ढूंढ ढूंढ कर थक गया फ़राज़

मैं लव्ज़ ढूंढ ढूंढ कर थक गया फ़राज़
वो फूल दे कर बात का इजहार कर गये
--अहमद फराज़

मोहब्बत के बाद मोहब्बत मुमकिन है फ़राज़

मोहब्बत के बाद मोहब्बत मुमकिन है फ़राज़
टूट कर चाहना सिर्फ़ एक बार होता है

--अहमद फराज़

किसी का कद बढ़ा देना, किसी के कद को कम कहना

किसी का कद बढ़ा देना, किसी के कद को कम कहना
हमें आता नहीं, ना-मोहतरम को मोहतरम कहना

चलो चलते हैं, मिलजुल कर वतन पे जान देते हैं
बहुत आसान है कमरे में वन्दे-मातरम कहना

--मुनव्वर राणा

Wednesday, February 3, 2010

ले के तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव

ले के तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव

--निदा फाजली

सबकी पूजा एक सी अलग-अलग है रीत

सबकी पूजा एक सी अलग-अलग है रीत
मस्जिद जाए मौलवी, कोयल गाये गीत

--निदा फाजली

छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार

छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार,
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार

--निदा फाजली

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार,
दुःख ने दुःख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार

--निदा फाजली

सिसकियों को दबा रही होगी

सिसकियों को दबा रही होगी
वो गज़ल गुनगुना रही होगी

ओढ़ कर के सुहाग इक लड़की
खत पुराने जला रही होगी

लोग यूं ही खफा नहीं होते
आपकी भी खता रही होगी

हादसों से मुझे बचा लाई
वो किसी की दुआ रही होगी

खैरियत से कटे सफर मेरा
आज माँ निर्जला रही होगी

--शिव ओम अम्बर


निर्जला=a fast in which a single drop of water is not allowed.

परखता हूँ मैं जब ये बात बुनियादी निकलती है,

परखता हूँ मैं जब ये बात बुनियादी निकलती है,
कोई सूरत हो माँ के सामने सादी निकलती है !!

शहीदों को भूलाते जा रहे हो, याद रख लेना ,
कि उनके खून से हो कर ही आज़ादी निकलती है !!

वहां लाकर मुझे इस वक़्त ने छोडा है जहाँ से ,
मैं सारी उम्र भी चलता हूँ तो आधी निकलती है,

(और इक शेर जिन दोस्तों ने रामायण पढ़ी या देखी हो उसमे एक अहील्या का किस्सा आता है जब राम जी के पैर छूते ही पत्थर अहिल्या राजकुमारी बन गया थी !!)


कहाँ है राम वो हम ने सुना है जिन के पांव से ,
लगी ठोकर तो फिर पत्थर से शहज़ादी निकलती है !!

भरी दोपहर में 'रीताज़' ऐसे याद आते हो ,
के जैसे छोड़ कर शहरों को आबादी निकलती है !!

--रीताज मैनी

शहीदों को भूलाते जा रहे हो, याद रख लेना

शहीदों को भूलाते जा रहे हो, याद रख लेना
कि उनके खून से हो कर ही आज़ादी निकलती है !!

--रीताज मैनी

परखता हूँ मैं जब ये बात बुनियादी निकलती है

परखता हूँ मैं जब ये बात बुनियादी निकलती है,
कोई सूरत हो माँ के सामने सादी निकलती है !!

--रीताज मैनी