Wednesday, January 27, 2010

तुझे पढ़ता हूँ मैं हर बार, शायद

तुझे पढ़ता हूँ मैं हर बार, शायद
बदल जाये तेरा किरदार , शायद !!

मेरा दुश्मन गले से लग के रोए ,
अगर मैं छोड़ दूँ तलवार , शायद !!

उसे भी जिद पड़ी है जीतने की ,
उसे भी तोड़ दे इक हार , शायद !!

के अब चुल्लू बचा है, डूबने को ,
समंदर कर गया इनकार, शायद !!

वो कुछ लिखने को कागज़ ढूंढता था ,
उसे भी हो गया है प्यार , शायद !!

खिलोने बाँट कर खेलो न बच्चो,
यहीं से उठती है दीवार शायद !!

--रीताज़ मैनी

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