कहाँ कतरे की गमख्वारी करे है
समंदर है अदाकारी करे है
कोई माने, न माने उसकी मरजी
मगर वो हुक्म तो जारी करे है
नहीं लम्हा भी जिसकी दस्तरस में
वही सदियों की तैयारी करे है
बड़े आदर्श है बातों में लेकिन
वो सारे काम बाजारी करे है
हमारी बात भी आये तो जानें
वो बातें तो बहुत सारी करे है
यही अखबार की सुर्खी बनेगी
ज़रा सा काम चिंगारी करे है
बुलावा आएगा चल देंगे हम भी
सफर की कौन तैयारी करे है
--वसीम बरेलवी
गमख्वारी=sympathy;
दस्तरस=reach
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