हमारे गम में जो भी थे उदास , झूठे थे ,
वो लोग जितने थे सब आस पास, झूठे थे !!
तेरे लबों को मेरे होंठ कैसे छू पाते,
के प्यास सच्ची थी लेकिन, गिलास, झूठे थे !!
शराब शौक थी उनका ! वो इश्क कहते रहे,
महोब्ब्तों में सभी देवदास, झूठे थे !!
तुम्हे 'रिताज़' खबर हो भी कैसे सकती थी ,
अमीर शहर के उजले लिबास झूठे थे !
--रिताज़ मैनी
रचना अच्छी लगी।
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