ख़्वाब, उम्मीद, नशा, सांस, तबस्सुम, आंसू
टूटने वाली किसी शै पे भरोसा न करो
--अज्ञात
If you know, the author of any of the posts here which is posted as Anonymous.
Please let me know along with the source if possible.
Sunday, January 31, 2010
Thursday, January 28, 2010
मत दो खुश रहने की दुआएं फराज़
मत दो खुश रहने की दुआएं फराज़
मैं खुशियाँ रखता नहीं बाँट दिया करता हूँ
--अहमद फराज़
मैं खुशियाँ रखता नहीं बाँट दिया करता हूँ
--अहमद फराज़
Wednesday, January 27, 2010
तुझे पढ़ता हूँ मैं हर बार, शायद
तुझे पढ़ता हूँ मैं हर बार, शायद
बदल जाये तेरा किरदार , शायद !!
मेरा दुश्मन गले से लग के रोए ,
अगर मैं छोड़ दूँ तलवार , शायद !!
उसे भी जिद पड़ी है जीतने की ,
उसे भी तोड़ दे इक हार , शायद !!
के अब चुल्लू बचा है, डूबने को ,
समंदर कर गया इनकार, शायद !!
वो कुछ लिखने को कागज़ ढूंढता था ,
उसे भी हो गया है प्यार , शायद !!
खिलोने बाँट कर खेलो न बच्चो,
यहीं से उठती है दीवार शायद !!
--रीताज़ मैनी
बदल जाये तेरा किरदार , शायद !!
मेरा दुश्मन गले से लग के रोए ,
अगर मैं छोड़ दूँ तलवार , शायद !!
उसे भी जिद पड़ी है जीतने की ,
उसे भी तोड़ दे इक हार , शायद !!
के अब चुल्लू बचा है, डूबने को ,
समंदर कर गया इनकार, शायद !!
वो कुछ लिखने को कागज़ ढूंढता था ,
उसे भी हो गया है प्यार , शायद !!
खिलोने बाँट कर खेलो न बच्चो,
यहीं से उठती है दीवार शायद !!
--रीताज़ मैनी
Tuesday, January 26, 2010
बुझते हैं तो बुझ जाए कोई गम नहीं करते
बुझते हैं तो बुझ जाए कोई गम नहीं करते
हम अपने चारागो की लौ को कम नहीं करते
--वसीम बरेलवी
हम अपने चारागो की लौ को कम नहीं करते
--वसीम बरेलवी
लहू में रंग की सूरत बसा है तेरा ख्याल
लहू में रंग की सूरत बसा है तेरा ख्याल
मैं किस तरह तेरी यादो से फासला रखूँ?
--अज्ञात
मैं किस तरह तेरी यादो से फासला रखूँ?
--अज्ञात
Monday, January 25, 2010
कुछ मोहब्बत का नशा था हमको पहले फ़राज़
कुछ मोहब्बत का नशा था हमको पहले फ़राज़
दिल जो टुटा हमको नशे से मोहब्बत हो गयी
--अहमद फराज़
दिल जो टुटा हमको नशे से मोहब्बत हो गयी
--अहमद फराज़
Sunday, January 24, 2010
जब नज़र से नज़र मिली, तब नज़र ने नज़र से कहा
जब नज़र से नज़र मिली, तब नज़र ने नज़र से कहा
ऐ नज़र इस नज़र को इस नज़र से न देख
के कही नज़रों को नज़रों की नज़र न लग जाए
--अज्ञात
ऐ नज़र इस नज़र को इस नज़र से न देख
के कही नज़रों को नज़रों की नज़र न लग जाए
--अज्ञात
Saturday, January 23, 2010
अभी तलक तो न कुंदन हुए न राख हुए
अभी तलक तो न कुंदन हुए न राख हुए
हम अपनी आग में हर रोज जल के देखते हैं
--अज्ञात
हम अपनी आग में हर रोज जल के देखते हैं
--अज्ञात
Friday, January 22, 2010
किसकी याद ने ज़ख्मो से भर दिया सीना
किसकी याद ने ज़ख्मो से भर दिया सीना
हर एक सांस पे शक है के आखिरी होगी
--अज्ञात
हर एक सांस पे शक है के आखिरी होगी
--अज्ञात
फिर न कीजियेगा मेरी गुस्ताख निगाहों से गिला
फिर न कीजियेगा मेरी गुस्ताख निगाहों से गिला
देखिये फिर आपने प्यार से देखा है मुझे
--अज्ञात
देखिये फिर आपने प्यार से देखा है मुझे
--अज्ञात
सज़ा ये दी है के आँखों से छीन ली नींदें
सज़ा ये दी है के आँखों से छीन ली नींदें
कुसूर ये था के जीने के ख़्वाब देखे थे
--अज्ञात
कुसूर ये था के जीने के ख़्वाब देखे थे
--अज्ञात
Thursday, January 21, 2010
तुम से बिछड कर भी तुम्हे भूलना आसान न था
तुम से बिछड कर भी तुम्हे भूलना आसान न था
तुम्ही को याद किया, तुमको भूलने के लिए
--अज्ञात
तुम्ही को याद किया, तुमको भूलने के लिए
--अज्ञात
Wednesday, January 20, 2010
दिल तुझे रूह से पाने का तलबगार है वरना
दिल तुझे रूह से पाने का तलबगार है वरना
जिस्म बिकते हैं तेरे साथ के कुछ दामों में
--अज्ञात
जिस्म बिकते हैं तेरे साथ के कुछ दामों में
--अज्ञात
वफ़ा की आज भी कदर वही है फराज़
वफ़ा की आज भी कदर वही है फराज़
फक़त मिट चुके हैं टूट के चाहने वाले
--अज्ञात
फक़त मिट चुके हैं टूट के चाहने वाले
--अज्ञात
Tuesday, January 19, 2010
जुड़ने पे आये तो टूटा दिल भी जुड जाता है
जुड़ने पे आये तो टूटा दिल भी जुड जाता है
ऐतबार वो शीशा है, जो कभी टूट के नहीं जुड़ता
--अज्ञात
ऐतबार वो शीशा है, जो कभी टूट के नहीं जुड़ता
--अज्ञात
अब न देखेगा वो तुम्हारा रास्ता
अब न देखेगा वो तुम्हारा रास्ता
दिल को मैं समझा चूका कहना उस से
--अज्ञात
दिल को मैं समझा चूका कहना उस से
--अज्ञात
टुकड़े को एक कांच के कब तक बचाएं
टुकड़े को एक कांच के कब तक बचाएं
वो दिल कहाँ से लाएं, जो टूटता न हो
--अज्ञात
वो दिल कहाँ से लाएं, जो टूटता न हो
--अज्ञात
चलो अपनी मोहब्बत को भी बाँट आयें
चलो अपनी मोहब्बत को भी बाँट आयें
हर एक प्यार का भूखा दिखाई देता है
--अज्ञात
हर एक प्यार का भूखा दिखाई देता है
--अज्ञात
मोहब्बत की हकीकत से हम खूब वाकिफ थे
मोहब्बत की हकीकत से हम खूब वाकिफ थे
यूँ ही ज़रा सा शौक हुआ था दिल बर्बाद करने का
--अज्ञात
यूँ ही ज़रा सा शौक हुआ था दिल बर्बाद करने का
--अज्ञात
कहते हैं कि सिर्फ कहने को ही मोहब्बत नहीं कहते हैं
कहते हैं कि सिर्फ कहने को ही मोहब्बत नहीं कहते हैं
कुछ लोग खामोशी से भी इंतहा से गुजार जाते हैं
--अज्ञात
कुछ लोग खामोशी से भी इंतहा से गुजार जाते हैं
--अज्ञात
मांगते है लोग मुझसे मोहब्बत का हिसाब
मांगते है लोग मुझसे मोहब्बत का हिसाब
कहते थे कभी, बेहिसाब है ये
--अज्ञात
कहते थे कभी, बेहिसाब है ये
--अज्ञात
तलब करें तो अपनी आँखें भी इनको दे दूं,
तलब करें तो अपनी आँखें भी इनको दे दूं,
मगर ये लोग मेरी आँखों के ख़्वाब मांगते हैं
--अज्ञात
मगर ये लोग मेरी आँखों के ख़्वाब मांगते हैं
--अज्ञात
आया ही था ख्याल के आँखें छलक पड़ी
आया ही था ख्याल के आँखें छलक पड़ी
आंसू तुम्हारी याद के कितने करीब थे
--अज्ञात
आंसू तुम्हारी याद के कितने करीब थे
--अज्ञात
Sunday, January 17, 2010
मेरी रुह निकलने वाली होगी
मेरी रूह निकलने वाली होगी
मेरी सांस बिखरने वाली होगी
फ़िर दामन जिंदगी का छूटेगा
धागा सांस का भी टूटेगा
फ़िर वापस हम ना आयेंगे
फ़िर हमसे कोइ ना रूठेगा
फ़िर आंखों मे नूर ना होगा
फ़िर दिल गम से चूर ना होगा
उस पल तुम हमको थामोगे
हम सा दोस्त अपना फ़िर मांगोगे
फ़िर हम ना कुछ भी बोलेंगे
और आंखें भी ना खोलेंगे
उस पल तुम रो दोगे
और दोस्त अपना खो दोगे, दोस्त अपना खो दोगे
--अज्ञात
मेरी सांस बिखरने वाली होगी
फ़िर दामन जिंदगी का छूटेगा
धागा सांस का भी टूटेगा
फ़िर वापस हम ना आयेंगे
फ़िर हमसे कोइ ना रूठेगा
फ़िर आंखों मे नूर ना होगा
फ़िर दिल गम से चूर ना होगा
उस पल तुम हमको थामोगे
हम सा दोस्त अपना फ़िर मांगोगे
फ़िर हम ना कुछ भी बोलेंगे
और आंखें भी ना खोलेंगे
उस पल तुम रो दोगे
और दोस्त अपना खो दोगे, दोस्त अपना खो दोगे
--अज्ञात
कहाँ कतरे की गमख्वारी करे है
कहाँ कतरे की गमख्वारी करे है
समंदर है अदाकारी करे है
कोई माने, न माने उसकी मरजी
मगर वो हुक्म तो जारी करे है
नहीं लम्हा भी जिसकी दस्तरस में
वही सदियों की तैयारी करे है
बड़े आदर्श है बातों में लेकिन
वो सारे काम बाजारी करे है
हमारी बात भी आये तो जानें
वो बातें तो बहुत सारी करे है
यही अखबार की सुर्खी बनेगी
ज़रा सा काम चिंगारी करे है
बुलावा आएगा चल देंगे हम भी
सफर की कौन तैयारी करे है
--वसीम बरेलवी
गमख्वारी=sympathy;
दस्तरस=reach
समंदर है अदाकारी करे है
कोई माने, न माने उसकी मरजी
मगर वो हुक्म तो जारी करे है
नहीं लम्हा भी जिसकी दस्तरस में
वही सदियों की तैयारी करे है
बड़े आदर्श है बातों में लेकिन
वो सारे काम बाजारी करे है
हमारी बात भी आये तो जानें
वो बातें तो बहुत सारी करे है
यही अखबार की सुर्खी बनेगी
ज़रा सा काम चिंगारी करे है
बुलावा आएगा चल देंगे हम भी
सफर की कौन तैयारी करे है
--वसीम बरेलवी
गमख्वारी=sympathy;
दस्तरस=reach
Friday, January 15, 2010
मै अपनी दोस्ती को शहर मे रुसवा नही करता
मै अपनी दोस्ती को शहर मे रुसवा नही करता
मोहब्बत मै भी करता हूँ मगर चर्चा नही करता
--अज्ञात
मोहब्बत मै भी करता हूँ मगर चर्चा नही करता
--अज्ञात
Wednesday, January 13, 2010
यूं भला कब तक मेरा इम्तिहान लोगे तुम
यूं भला कब तक मेरा इम्तिहान लोगे तुम
इस तरह तो एक दिन मेरी जान लोगे तुम
है खड़ी इक फ़स्ल गम की दिल में मेरे
दर्द की इस फ़स्ल का भी लगान लोगे तुम
एक पैसा दे के मैने दुआ थी चाही जब
कह उठा तब था फकीर आसमान लोगे तुम ?
--श्याम सखा 'श्याम'
Source : http://gazalkbahane.blogspot.com/2010/01/blog-post_13.html
इस तरह तो एक दिन मेरी जान लोगे तुम
है खड़ी इक फ़स्ल गम की दिल में मेरे
दर्द की इस फ़स्ल का भी लगान लोगे तुम
एक पैसा दे के मैने दुआ थी चाही जब
कह उठा तब था फकीर आसमान लोगे तुम ?
--श्याम सखा 'श्याम'
Source : http://gazalkbahane.blogspot.com/2010/01/blog-post_13.html
अपनी गज़लों को तमाशों से बचाते हैं बहुत
अपनी गज़लों को तमाशों से बचाते हैं बहुत
हम तो इस फन को इबादत के लिये रखते हैं
--अज्ञात
हम तो इस फन को इबादत के लिये रखते हैं
--अज्ञात
सूखे होंटों पे ही होती हैं मीठी बातें
सूखे होंटों पे ही होती हैं मीठी बातें
प्यास जब बुझ जाये तो लहज़े बदल जाते हैं
--अज्ञात
प्यास जब बुझ जाये तो लहज़े बदल जाते हैं
--अज्ञात
टूट कर चाहा जिसे वो लौट कर आया नहीं
टूट कर चाहा जिसे वो लौट कर आया नहीं
मेरे दिल को उस के सिवा कोई भाया नहीं
प्यार की सौदागरी में हम बराबर ही रहे
उसने कुछ खोया नहीं, और मैने कुछ पाया नहीं
--अज्ञात
मेरे दिल को उस के सिवा कोई भाया नहीं
प्यार की सौदागरी में हम बराबर ही रहे
उसने कुछ खोया नहीं, और मैने कुछ पाया नहीं
--अज्ञात
वो मिले हमें कहानी बनकर
वो मिले हमें कहानी बनकर
दिल में रहे प्यार की निशानी बन कर
हम जिन्हें जगह देते हैं आंखों के अन्दर
वो अक्सर निकल जाते हैं आंख का पानी बन कर
--अज्ञात
दिल में रहे प्यार की निशानी बन कर
हम जिन्हें जगह देते हैं आंखों के अन्दर
वो अक्सर निकल जाते हैं आंख का पानी बन कर
--अज्ञात
न जाने आखिरी दीदार करने कब आओ
न जाने आखिरी दीदार करने कब आओ
कफन से इस लिये चेहरा निकाल रखा है
खुदा के सामने भी तू मुकर ना जाये कहीं
इस लिये तो तेरा खत सम्भाल कर रखा है
--अज्ञात
कफन से इस लिये चेहरा निकाल रखा है
खुदा के सामने भी तू मुकर ना जाये कहीं
इस लिये तो तेरा खत सम्भाल कर रखा है
--अज्ञात
इतने ज़ालिम न बनो, कुछ तो मुरव्वत सीखो
इतने ज़ालिम न बनो, कुछ तो मुरव्वत सीखो
तुम पे मरते हैं, तो क्या मार ही डालोगे?
--अज्ञात
तुम पे मरते हैं, तो क्या मार ही डालोगे?
--अज्ञात
कभी कभी वो मुझे इतना याद आता है
वो खत्म कैद की मियाद भी नहीं करता
और मैं ज़हमत-ए-फरियाद भी नहीं करता
कभी कभी वो मुझे इतना याद आता है
के मैं ज़िद में आ कर उसे याद भी नहीं करता
--अज्ञात
मुझे आख़िरी की दो लाइनें ठीक से समझ तो नहीं आई, मगर अच्छी लगी :)
और मैं ज़हमत-ए-फरियाद भी नहीं करता
कभी कभी वो मुझे इतना याद आता है
के मैं ज़िद में आ कर उसे याद भी नहीं करता
--अज्ञात
मुझे आख़िरी की दो लाइनें ठीक से समझ तो नहीं आई, मगर अच्छी लगी :)
Sunday, January 10, 2010
मां की चाहत की बदौलत है कहानी तेरी
मां की चाहत की बदौलत है कहानी तेरी
इनकी क़ुरबानियों के सदके है जवानी तेरी
तेरा हर ताज मां के कदमों की धूल है
मां नहीं तो किस काम की हुकमरानी तेरी
--अज्ञात
इनकी क़ुरबानियों के सदके है जवानी तेरी
तेरा हर ताज मां के कदमों की धूल है
मां नहीं तो किस काम की हुकमरानी तेरी
--अज्ञात
बही लिखता हुआ सब रेज़गारी पूछ लेता है
बही लिखता हुआ सब रेज़गारी पूछ लेता है ,
वो नकदी लहजे से मेरी उधारी पूछ लेता है ,
बिना ताली के सब गाली बजा कर लौट पड़ते हैं
जो अपने खेल का पैसा मदारी पूछ लेता है
उठा कर बीन इस डर से कभी जंगल नहीं जाता
मैं पकडूं सांप कैसे वो पिटारी पूछ लेता है
तेरे इज़हार पर हैरान: है 'रिताज़' वो ऐसे
के जैसे मोल गहने का भिखारी पूछ लेता है
--रिताज़ मैनी
वो नकदी लहजे से मेरी उधारी पूछ लेता है ,
बिना ताली के सब गाली बजा कर लौट पड़ते हैं
जो अपने खेल का पैसा मदारी पूछ लेता है
उठा कर बीन इस डर से कभी जंगल नहीं जाता
मैं पकडूं सांप कैसे वो पिटारी पूछ लेता है
तेरे इज़हार पर हैरान: है 'रिताज़' वो ऐसे
के जैसे मोल गहने का भिखारी पूछ लेता है
--रिताज़ मैनी
लम्हों लम्हों पर ख्वाब लिखूंगा
लम्हों लम्हों पर ख्वाब लिखूंगा
अपनी ज़िन्दगी पर किताब लिखूंगा
आपकी गर्दन को फूलों की टहनी
और आपके चेहरे को गुलाब लिखूंगा
--अज्ञात
अपनी ज़िन्दगी पर किताब लिखूंगा
आपकी गर्दन को फूलों की टहनी
और आपके चेहरे को गुलाब लिखूंगा
--अज्ञात
ग़मों की आंच पे आंसू उबाल कर देखो
ग़मों की आंच पे आंसू उबाल कर देखो
भीगे रंग किसी पर डाल कर देखो
तुम्हारे दिल की चुभन भी ज़रूर होगी कम
किसी के पांव का कांटा निकाल कर देखो
--अज्ञात
भीगे रंग किसी पर डाल कर देखो
तुम्हारे दिल की चुभन भी ज़रूर होगी कम
किसी के पांव का कांटा निकाल कर देखो
--अज्ञात
Friday, January 8, 2010
मेरा ज़िक्र ना करना
दुख दर्द के मारों से मेरा ज़िक्र ना करना
घर जाओ तो यारों से मेरा ज़िक्र ना करना
वो ज़ब्त ना कर पायेंगें आखों के समन्दर
तुम राह गुज़ारों से मेरा ज़िक्र ना करना
फूलों के नशेमन में रही हूं सदा मैं
देखो कभी खारों से मेरा ज़िक्र ना करना
वो मेरे हाल में बेसख्त ना रो दे
इस बार बहारों से मेरा ज़िक्र ना करना
शायद ये अंधियारा ही मुझे राह दिखाये
तुम चांद सितारों से मेरा ज़िक्र ना करना
कहीं वो मेरी कहानी को गलत रंग न दे दे
अफसाना निगारों से मेरा ज़िक्र ना करना
गहराई में ले जायेंगें तुम को भी बहा कर
दरिया के किनारों से मेरा ज़िक्र ना करना
वो शक्स मिले तो उसे हर बात बताना
तुम सिर्फ़ इशारों से मेरा ज़िक्र ना करना
--अज्ञात
Raah guzaroo – travelers
Baysakhta – achanak
Afsaana nigaroon – story teller
घर जाओ तो यारों से मेरा ज़िक्र ना करना
वो ज़ब्त ना कर पायेंगें आखों के समन्दर
तुम राह गुज़ारों से मेरा ज़िक्र ना करना
फूलों के नशेमन में रही हूं सदा मैं
देखो कभी खारों से मेरा ज़िक्र ना करना
वो मेरे हाल में बेसख्त ना रो दे
इस बार बहारों से मेरा ज़िक्र ना करना
शायद ये अंधियारा ही मुझे राह दिखाये
तुम चांद सितारों से मेरा ज़िक्र ना करना
कहीं वो मेरी कहानी को गलत रंग न दे दे
अफसाना निगारों से मेरा ज़िक्र ना करना
गहराई में ले जायेंगें तुम को भी बहा कर
दरिया के किनारों से मेरा ज़िक्र ना करना
वो शक्स मिले तो उसे हर बात बताना
तुम सिर्फ़ इशारों से मेरा ज़िक्र ना करना
--अज्ञात
Raah guzaroo – travelers
Baysakhta – achanak
Afsaana nigaroon – story teller
Thursday, January 7, 2010
नादान बचपन
कागज़ की कश्ती थी
पानी का किनारा था
खेलने की मस्ती थी
दिल ये आवारा था
कहां आ गया,
समझदारी के दलदल में
वो नादान बचपन ही कितना प्यारा था
--अज्ञात
पानी का किनारा था
खेलने की मस्ती थी
दिल ये आवारा था
कहां आ गया,
समझदारी के दलदल में
वो नादान बचपन ही कितना प्यारा था
--अज्ञात
हम से देखी नही जाती ये वीरानी दिल की
हम से देखी नही जाती ये वीरानी दिल की
कोई समझा है ना समझेगा कहानी दिल की..
तमन्ना इश्क़ की बर्बाद कर गयी हम को
हम जिसे आज भी कहते हैं नादानी दिल की
जब भी सोचा उसे, धड़कन ना फिर संभाल पाई
अब भी मनसूब उसी से है रवानी दिल की
[मनसूब = Association]
हम ना बदले मगर दुनिया बदल गयी
वही दिल है, वही आदत है पुरानी दिल की
--अज्ञात
कोई समझा है ना समझेगा कहानी दिल की..
तमन्ना इश्क़ की बर्बाद कर गयी हम को
हम जिसे आज भी कहते हैं नादानी दिल की
जब भी सोचा उसे, धड़कन ना फिर संभाल पाई
अब भी मनसूब उसी से है रवानी दिल की
[मनसूब = Association]
हम ना बदले मगर दुनिया बदल गयी
वही दिल है, वही आदत है पुरानी दिल की
--अज्ञात
वो और हैं के जो दीदार करना चाहते हैं
यह लोग जिस से अब इनकार करना चाहते हैं
वो गुफ़्तुगू दर-ओ-दीवार करना चाहते हैं....
हमें खबर है गुज़रेगा एक सेल-ए-फ़ना
सो हम तुम्हें भी खरबारदार करना चाहते हैं
और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-खामोशी
हम अपनी राय का इज़हार करना चाहते हैं
यहाँ तक आ तो गये आप की मोहब्बत में
अब और कितना गुनेहगार करना चाहते हैं
गुल-ए-उम्मीद फ़रोज़ां रहे तेरी खुश्बू
के लोग इसे भी गिरफ्तार करना चाहते हैं
[फरोज़ां = Illuminate, Lit-up]
उठाए फिरते हैं कब से अज़ाब ए दरमदरी
अब इस को वाकिफ-ए-राह-ए-यार करना चाहते हैं
वो हम हैं जो तेरी आवाज़ सुन क तेरे हुए
वो और हैं के जो दीदार करना चाहते हैं
--अज्ञात
वो गुफ़्तुगू दर-ओ-दीवार करना चाहते हैं....
हमें खबर है गुज़रेगा एक सेल-ए-फ़ना
सो हम तुम्हें भी खरबारदार करना चाहते हैं
और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-खामोशी
हम अपनी राय का इज़हार करना चाहते हैं
यहाँ तक आ तो गये आप की मोहब्बत में
अब और कितना गुनेहगार करना चाहते हैं
गुल-ए-उम्मीद फ़रोज़ां रहे तेरी खुश्बू
के लोग इसे भी गिरफ्तार करना चाहते हैं
[फरोज़ां = Illuminate, Lit-up]
उठाए फिरते हैं कब से अज़ाब ए दरमदरी
अब इस को वाकिफ-ए-राह-ए-यार करना चाहते हैं
वो हम हैं जो तेरी आवाज़ सुन क तेरे हुए
वो और हैं के जो दीदार करना चाहते हैं
--अज्ञात
दिल के दर्द को जाने कौन?
मुंह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन?
आवाजों के बाज़ारों में, ख़ामोशी,पहचाने कौन?
--निदा फाज़ली
आवाजों के बाज़ारों में, ख़ामोशी,पहचाने कौन?
--निदा फाज़ली
जिसको चुरा के दिल को हुआ गुरूर था
जिसको चुरा के दिल को हुआ गुरूर था
नीलम नहीं था शक्स वो नीला ज़रूर था
--अज्ञात
नीलम नहीं था शक्स वो नीला ज़रूर था
--अज्ञात
Wednesday, January 6, 2010
Cigarette
Ravi Noor Singh : A brand new composition which highlights the merits and de-merits of smoking
I don’t smoke but this composition is a mixture of my imagination and observations J
I hope it’ll be liked by smokers as well as non-smokers.
ikk saah andar nu bhar layiye,
ik saah baahr nu chhad-de aa'n,
ikk agg sive di machdi ae,
dhuyein da chhalla kadh-de aa'n..
Saroor jeha sir chadh janda,
jannat da hulaara aa janda,
jad ik vi kashsh lga layiye,
sach pucho nazaara aa janda
kyun kehnde isnu cheez buri,
kyun naam hoyeya badnam eda,
kyun gamm ne isnu gal layeya
kyun sathi baneya jaam eda
ki dosh bedoshi cigarette da,
jo dhuyein naal hai fukk jandi,
do pal dukhaan ton door kare,
saroor chadhaake mukk jandi..
ik nasha ajab iss cigarette da,
ki kehna edi khumari da
jad kalla koi mehsus kre,
eh farz nibhaundi yaari da.
aj kal de chandre daur andar,
insaan insaa'n da wairi ae'
fir har pal jehri saath rahe..
kyun kehnde ne eh zehri ae'
Cigarette speaks…
main hikk te fatt lawaundi haan
par dil de fatt mukaundi haan
main apni agg de sek tale,
har gamm nu khaak banaundi haan..
main raunak tere mukhde di,
farh lainay unglaan do karke
saah raahi'n dil wich wass jaavan
tere bullaa'n nu chhoh karke
main sulag sulag ke sarh jandi,
par seene aggaan laa jaavan,
oh mud mud mainu hi loche,
aisa koi jaam pila jaavan
mera jeewan tera mukh sajna,
meri maut hai ash tray de wich
main balke ban swaah jana,
te mil jana fir kheh de wich
shahukaraan di shohrat haan
par surat meri hai saadi,
mere ishq ch yaaro na paina
mere palle bas hai barbaadi
mere ishq ch yaaro na paina
mere palle bas hai barbaadi…
-Noor
Couldn't type it in Punjabi, so sharing it as I got it from Ravi Noor. :)
I don’t smoke but this composition is a mixture of my imagination and observations J
I hope it’ll be liked by smokers as well as non-smokers.
ikk saah andar nu bhar layiye,
ik saah baahr nu chhad-de aa'n,
ikk agg sive di machdi ae,
dhuyein da chhalla kadh-de aa'n..
Saroor jeha sir chadh janda,
jannat da hulaara aa janda,
jad ik vi kashsh lga layiye,
sach pucho nazaara aa janda
kyun kehnde isnu cheez buri,
kyun naam hoyeya badnam eda,
kyun gamm ne isnu gal layeya
kyun sathi baneya jaam eda
ki dosh bedoshi cigarette da,
jo dhuyein naal hai fukk jandi,
do pal dukhaan ton door kare,
saroor chadhaake mukk jandi..
ik nasha ajab iss cigarette da,
ki kehna edi khumari da
jad kalla koi mehsus kre,
eh farz nibhaundi yaari da.
aj kal de chandre daur andar,
insaan insaa'n da wairi ae'
fir har pal jehri saath rahe..
kyun kehnde ne eh zehri ae'
Cigarette speaks…
main hikk te fatt lawaundi haan
par dil de fatt mukaundi haan
main apni agg de sek tale,
har gamm nu khaak banaundi haan..
main raunak tere mukhde di,
farh lainay unglaan do karke
saah raahi'n dil wich wass jaavan
tere bullaa'n nu chhoh karke
main sulag sulag ke sarh jandi,
par seene aggaan laa jaavan,
oh mud mud mainu hi loche,
aisa koi jaam pila jaavan
mera jeewan tera mukh sajna,
meri maut hai ash tray de wich
main balke ban swaah jana,
te mil jana fir kheh de wich
shahukaraan di shohrat haan
par surat meri hai saadi,
mere ishq ch yaaro na paina
mere palle bas hai barbaadi
mere ishq ch yaaro na paina
mere palle bas hai barbaadi…
-Noor
Couldn't type it in Punjabi, so sharing it as I got it from Ravi Noor. :)
हकीकत है के मर के भी उन्हें हम याद रखेंगें
हकीकत है के मर के भी उन्हें हम याद रखेंगें
के गुलशन उनकी यादों का सदा आबाद रखेंगें
उनसे मेरा वादा है कोई मेरी कब्र ना खोदे
मेरे इस आखिरी घर की वो खुद बुनियाद रखेंगें
--अज्ञात
के गुलशन उनकी यादों का सदा आबाद रखेंगें
उनसे मेरा वादा है कोई मेरी कब्र ना खोदे
मेरे इस आखिरी घर की वो खुद बुनियाद रखेंगें
--अज्ञात
झूठे थे…
हमारे गम में जो भी थे उदास , झूठे थे ,
वो लोग जितने थे सब आस पास, झूठे थे !!
तेरे लबों को मेरे होंठ कैसे छू पाते,
के प्यास सच्ची थी लेकिन, गिलास, झूठे थे !!
शराब शौक थी उनका ! वो इश्क कहते रहे,
महोब्ब्तों में सभी देवदास, झूठे थे !!
तुम्हे 'रिताज़' खबर हो भी कैसे सकती थी ,
अमीर शहर के उजले लिबास झूठे थे !
--रिताज़ मैनी
वो लोग जितने थे सब आस पास, झूठे थे !!
तेरे लबों को मेरे होंठ कैसे छू पाते,
के प्यास सच्ची थी लेकिन, गिलास, झूठे थे !!
शराब शौक थी उनका ! वो इश्क कहते रहे,
महोब्ब्तों में सभी देवदास, झूठे थे !!
तुम्हे 'रिताज़' खबर हो भी कैसे सकती थी ,
अमीर शहर के उजले लिबास झूठे थे !
--रिताज़ मैनी
Tuesday, January 5, 2010
ये भी अच्छा हुआ के उसे पा ना सके फराज़
ये भी अच्छा हुआ के उसे पा ना सके फराज़
हमारा हो के बिछड़ता तो कयामत होती
--अहमद फराज़
हमारा हो के बिछड़ता तो कयामत होती
--अहमद फराज़
मेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखाअ सुना कुछ भी नहीं
मांगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
देखा तुझे सोचा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे
मेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं
जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात भर
भेजा वही काग़ज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं
इक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत मूँह से कहा कुछ भी नहीं
दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जायेगा
जब आग पर काग़ज़ रखा बाकी बचा कुछ भी नहीं
अहसास की ख़ुश्बू कहाँ, आवाज़ के जुगनू कहाँ
ख़ामोश यादों के सिवा, घर में रहा कुछ भी नहीं
--बशीर बद्र
Source : http://www.urdupoetry.com/bashir03.html
मांगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
देखा तुझे सोचा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे
मेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं
जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात भर
भेजा वही काग़ज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं
इक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत मूँह से कहा कुछ भी नहीं
दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जायेगा
जब आग पर काग़ज़ रखा बाकी बचा कुछ भी नहीं
अहसास की ख़ुश्बू कहाँ, आवाज़ के जुगनू कहाँ
ख़ामोश यादों के सिवा, घर में रहा कुछ भी नहीं
--बशीर बद्र
Source : http://www.urdupoetry.com/bashir03.html
ज़िन्दगी में कभी कभी ऐसा भी मुकाम आता है
ज़िन्दगी में कभी कभी ऐसा भी मुकाम आता है
दिल में कोई और, होंटों पे किसी और का नाम आता है
--अज्ञात
दिल में कोई और, होंटों पे किसी और का नाम आता है
--अज्ञात
Sunday, January 3, 2010
फुरसत नहीं उसे के मेरी मौत पे आये वो
फुरसत नहीं उसे के मेरी मौत पे आये वो
काश के किसी और दिन मरता मैं के आज इतवार नहीं है
--अरघवान रबभी
काश के किसी और दिन मरता मैं के आज इतवार नहीं है
--अरघवान रबभी
मुझको तेरे कुर्ब की ख्वाहिश तो है मगर
मुझको तेरे कुर्ब की ख्वाहिश तो है मगर
उल्फत का जो मज़ा है, इन्हीं फासलों में है
--अज्ञात
उल्फत का जो मज़ा है, इन्हीं फासलों में है
--अज्ञात
मैं कोशिश तो बहुत करता हूँ उसको जान लूं लेकिन
मैं कोशिश तो बहुत करता हूँ उसको जान लूं लेकिन
वो मिलने पर बड़ी कारीगरी से बात करता है
--अशोक अंजुम
वो मिलने पर बड़ी कारीगरी से बात करता है
--अशोक अंजुम
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