Sunday, November 21, 2010

तुम्हारे वास्ते क्या सोचते हैं

मुकद्दर आजमाना चाहते हैं
तुम्हें अपना बनाना चाहते हैं

तुम्हारे वास्ते क्या सोचते हैं
निगाहों से बताना चाहते हैं

गलत क्या है, जो हम दिल मांग बैठे
परिंदे भी ठिकाना चाहते हैं

परिस्थितियां ही अक्सर रोकती हैं
मुहब्बत सब निभाना चाहते हैं

बहुत दिन से हैं इन आँखों में आंसू
तुषार अब मुस्कुराना चाहते हैं

--नित्यानंद तुषार
http://ntushar.blogspot.com/

5 comments:

  1. परिंदे भी ठिकाना चाहते हैं
    परिन्दों को दरिन्दों की निगाह से बचा कर रखिये
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  2. गलत क्या है, जो हम दिल मांग बैठे
    परिंदे भी ठिकाना चाहते हैं
    सुंदर भावाव्यक्ति अच्छी लगी

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  3. योगेश जी
    नमस्कार
    बहुत दिन से हैं इन आँखों में आंसू
    पंक्ति ये है कृपया संशोधन करें .
    नित्यानंद तुषार

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  4. @Nityanand,

    Made the correction.

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