Sunday, January 29, 2012

न छेड़ किस्सा-ऐ-उल्फत. बड़ी लम्बी कहानी है,

न छेड़ किस्सा-ऐ-उल्फत. बड़ी लम्बी कहानी है,

मैं ज़माने से नहीं हारा. किसी की बात मानी है...!!

--अज्ञात

Friday, January 27, 2012

वो शख्स के जो मेरा अपना भी नहीं है

वो शख्स के जो मेरा अपना भी नहीं है
हो जाये किसी और का मुझे अच्छा नहीं लगता

--अज्ञात

Sunday, January 22, 2012

एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया

रुखसत हुआ तो बात मेरी मान कर गया
जो था उसके पास वो मुझे दान कर गया

बिछड़ा कुछ इस अदा से के रुत ही बदल गयी
एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया

दिलचस्प वाक्य है की कल एक अज़ीज़ दोस्त
अपनी मुफाद पर मुझे कुर्बान कर गया

इतनी सुधर गयी है जुदाई में ज़िन्दगी
हाँ ! वो जफा से तो मुझ पे एहसान कर गया

मैं बात बात पर कहता था जिसको जान
वो शख्स आखिर आज मुझे बेजान कर गया

--खालिद शरीफ

Saturday, January 21, 2012

इश्क में उसको गिरफ्तार कर के छोड़ दिया ..

समंदर जैसा बेक़रार कर के छोड़ दिया..
इश्क में उसको गिरफ्तार कर के छोड़ दिया ..

मौत अब आ ही जा तू साथ दवाई लेकर ..
ज़िन्दगी ने मुझे बीमार कर के छोड़ दिया ...

नसीब ने भी अजब खेल दिखाया के हमे ...
हर एक शय का तलबगार कर के छोड़ दिया ...

उम्र गुजरेगी उसकी भी ग़लतफ़हमी में ...
हमने भी इश्क का इज़हार कर के छोड़ दिया ...

प्यार में सबको ही मैंने सबक सिखाया है ...
तुझे भी कितना समझदार कर के छोड़ दिया ...

वो तो गलियों में दीवानी सी फिरा करती थी...
मैंने बस थोडा सा सिंगार कर के छोड़ दिया..

हाँ सच है प्यार कई बार भी हो सकता है ...
"सतलज" तुने क्यों एक बार कर के छोड़ दिया..

--सतलज राहत

हम बहुत दूर तक चले आये ..

दिल में फिर जैसे ज़लज़ले आये ...
ख्याल तेरे यूं चले आये.. ...

हमने छोड़ा नहीं तेरा दामन ...
कितने मौसम बुरे भले आये..

गुज़ारिश हो रही है लम्हों से ...
कोई तो साथ तुझे ले आये ....

जिनकी नियत में बस मोहब्बत थी. ..
उनकी किस्मत में फासले आये...

हैरान रह गई सारी दुनिया ....
खुदा के ऐसे फैसले आये...

बिछड़ते वक़्त बस यही गम है ....
हम बहुत दूर तक चले आये ...

शाम होते ही मेरी आँखों में ...
कितनी यादो के काफिले आये..

"सतलज" तुमको बहुत रोका था...
तुम नहीं माने , तुम चले आये......

--सतलज राहत

Sunday, January 15, 2012

दिल मगर कम किसी से मिलता है

आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है

भूल जाता हूँ मैं सितम उस के
वो कुछ इस सादगी से मिलता है

आज क्या बात है के फूलों का
रन्ग तेरी हँसी से मिलता है

मिल के भी जो कभी नहीं मिलता
टूट कर दिल उसी से मिलता है

कारोबार-ए-जहाँ सँवरते हैं
होश जब बेख़ुदी से मिलता है

जिगर मोरादाबादी

Saturday, January 14, 2012

मकानों के थे, या ज़मानो के थे

मकानों के थे, या ज़मानो के थे
अजब फासले दरमियानों के थे

सफर यूं तो सब आसमानों थे
करीने मगर कैदखानों के थे

खुली आँख तो सामने कुछ न था
वो मंज़र तो सारे उड़ानों के थे

पकड़ना उन्हें कुछ ज़रूरी न था
परिंदे सभी आशियानो के थे

मुसाफिर की नज़रें बलंदी पे थीं
मगर रास्ते सब ढलानों के थे

उन्हें लूटने तुम कहाँ चल दिए
वो किरदार तो दास्तानो के थे

--शीन काफ नाजमी

सोया हुआ ज़मीर जगाना भी चाहिए

खुद से कभी आँख मिलाना भी चाहिए
सोया हुआ ज़मीर जगाना भी चाहिए

कुछ न कहो तुम जुबां से, गर कह दिया
तो उसको निभाना भी चाहिए

बे-हिम्मती को पास फटकने न दो कभी
मायूसियों से दिल को बचाना भी चाहिए

इज्ज़त गयी तो मौत से बत्तर है ज़िंदगी
और इज्ज़त को जान दे के बचाना भी चाहिए

एक रोज इनक़लाब भी चुपके से आएगा
ये बात दोस्तों को बताना भी चाहिए

नफरत जला रही है तो इसका भी है इलाज
उल्फत का बीज दिल में लगाना भी चाहिए

जो ढूँढ़ते हैं सिर्फ बुराई हर एक में
आइना बन के उनको दिखाना भी चाहिए

मिर्ज़ा अमल का वक़्त है बातें तो हो चुकीं
कश्ती को अब भंवर से बचाना भी चाहिए

खुद से कभी आँख मिलाना भी चाहिए
सोया हुआ ज़मीर जगाना भी चाहिए

--इकबाल मिर्ज़ा

Thursday, January 12, 2012

बना के छोड़ देते हैं...

बना के छोड़ देते हैं अपने वजूद का आदि
कुछ लोग इस तरह भी मोहब्बतों का सिला देते हैं
--अज्ञात

Monday, January 9, 2012

ज़िंदगी से बारहा यूं भी निभाना पड़ गया

ज़िंदगी से बारहा यूं भी निभाना पड़ गया
खुल के रोना चाहा था, मुस्कुराना पड़ गया

उनकी आँखें भी नयीं हैं, उनके सपने भी नए
अपने बच्चों के लिए मैं ही पुराना पड़ गया

--बशीर बद्र

Sunday, January 8, 2012

उदास होने का कोई सबब नहीं होता

अदब की हद में हूँ बे-अदब नहीं होता
तुम्हारा ताज़किरह अब रोज-ओ-शब नहीं होता

कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूंही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता

कई अमीरों की महरूमियाँ न पूछ के बस
गरीब होने का एहसास अब नहीं होता

मैं वालिदां को ये बात कैसे समझाऊं
मोहब्बत में हस्ब नसब नहीं होता

वहाँ के लोग बड़े दिल फरेब होते हैं
मेरा बहकना भी कोई अजब नहीं होता

मैं उस ज़मीन का दीदार करना चाहता हूँ
जहाँ कभी भी खुदा गज़ब नहीं होता

--बशीर बद्र

एक नया मोड़ देते हुए फिर फ़साना बदल दीजिये

एक नया मोड़ देते हुए फिर फ़साना बदल दीजिये
या तो खुद ही बदल जाइए या ज़माना बदल दीजिये

अहल-ए-हिम्मत ने हर दौर मैं कोह* काटे हैं तकदीर के
हर तरफ रास्ते बंद हैं, ये बहाना बदल दीजिये
[कोह=पहाड़]

--मंज़र भोपाली

Thursday, January 5, 2012

मुश्किल पहले, बाद में हल सोंचेगें

मुश्किल पहले, बाद में हल सोंचेगें
क्या कहना है .... ये कल सोंचेगें

प्यार किया मैंने ‘पुण्य’ समझकर
जो करें ‘पाप’ .. वो ‘फल’ सोंचेंगे

--अमित हर्ष

मगर उम्र भर हाथ मलते रहे

मुसाफिर के रास्ते बदलते रहे
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे

कोई फूल सा हाथ काँधे पे था
मेरे हाथ शोलों पे चलते रहे

मेरे रास्ते में उजाला रहा
दिए उसकी आँखों में जलते रहे

मोहब्बत, अदावत, वफ़ा बेरुखी
किराए के घर थे बदलते रहे

सुना है उन्हें भी हवा लग गयी
हवाओं का रुख जो बदलते रहे

वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे

--बशीर बद्र