Monday, February 28, 2011

हाथ मलती रह गयी खूब-सीरत लडकियां

हाथ मलती रह गयी खूब-सीरत लडकियां
खूब-सूरत लड़कियों के हाथ पीले हो गए

--फरयाद आज़र

वो मेरा हाल क्यों पूछे, वो मुझ पर मेहरबान क्यों हो

वो मेरा हाल क्यों पूछे, वो मुझ पर मेहरबान क्यों हो
कि जिनको हुस्न मिल जाता है, उनको दिल नहीं मिलता

--अज्ञात

बहुत मुश्किल होता है खुद को संभाल रखना

बहुत मुश्किल होता है खुद को संभाल रखना
मगर वो कह गया है कि अपना ख़याल रखना

--अज्ञात

मैं जी हुज़ूरी से इंकार करने वाला हूँ...

अमीरे शहर को तलवार करने वाला हूँ,
मैं जी हुज़ूरी से इंकार करने वाला हूँ...

--मुनव्वर राना

मुर्दा बदन में ज़िंदा अरमान रहे होंगे

क़दमों की आहटों से अनजान रहे होंगे
ये रास्ते कभी तो सुनसान रहे होंगे

आँखों से लाश की यूं आंसू नहीं निकलते
मुर्दा बदन में ज़िंदा अरमान रहे होंगे

मर कर भी, मोहब्बत को जिंदा रखा है, जिन्होंने
वो लोग, कितने, भोले नादान रहे होंगे

दुनिया की भीड़ से, जो हट कर हैं, उन्हें पढ़ लो
हम पूजते हैं जिनको इंसान रहे होंगे

साहिल पे नाव कोई यूं ही, नहीं डुबोता
उस नाखुदा के दिल में तूफ़ान रहे होंगे

देता है नूर जल कर चाँद और सितारों को
सूरज पे, शाम-ओ-शब के एहसान रहे होंगे

--सूरज राय

क्या हुआ, तेरी बेरुखी से मुझे

क्या सरोकार अब किसी से मुझे
वास्ता था, तो था, तुझ ही से मुझे

बे-हिसी का भी अब नहीं एहसास
क्या हुआ, तेरी बेरुखी से मुझे
बे-हिसी=senseless

मौत की आरज़ू भी कर देखूं
क्या उम्मीदें थी, जिंदगी से मुझे

फिर किसी पर न ऐतबार आये
यू उतारो न अपने जी से मुझे

तेरा गम भी न हो, तो क्या जीना
कुछ तसल्ली है, दर्द ही से मुझे

कर गए किस तरह तबाह ज़िया
दुश्मन अंदाज़-ए-दोस्ती से मुझे

ज़िया जलंधरी

बद-नज़र उठने ही वाली थी, किसी की जानिब

ले के माज़ी को, जो हाल आया, तो दिल कांप गया
जब कभी उनका ख़याल आया, तो दिल कांप गया

ऐसा तोड़ा था मोहब्बत में किसी ने दिल को
जब भी शीशे में बाल आया, तो दिल कांप गया

सर बलंदी पे तो मगरूर थे हम भी लेकिन
चढ़ते सूरज पे ज़वाल आया तो दिल कांप गया
ज़वाल=decline

बद-नज़र उठने ही वाली थी, किसी की जानिब
अपनी बेटी का ख़याल आया, तो दिल कांप गया
जानिब=तरफ
बद-नज़र=बुरी नज़र


--नवाज़ दिओबंदी

रे जोगी

तू शब्दों का दास रे जोगी
तेरा कहाँ विश्वास रे जोगी

इक दिन विष का प्याला पी जा
फिर न लगेगी प्यास रे जोगी

ये सांसों का का बन्दी जीवन
किसको आया रास रे जोगी

विधवा हो गई सारी नगरी
कौन चला वनवास रे जोगी

पुर आई थी मन की नदिया
बह गए सब एहसास रे जोगी

इक पल के सुख की क्या क़ीमत
दुख हैं बारह मास रे जोगी

बस्ती पीछा कब छोड़ेगी
लाख धरे सन्यास रे जोगी

--राहत इन्दौरी

सुने जाते न थे तुमसे, मेरे दिन रात के शिकवे

सुने जाते न थे तुमसे, मेरे दिन रात के शिकवे
कफ़न सरकाओ !! मेरी बे-जुबानी देखते जाओ

--फानी बदायूनी

Saturday, February 19, 2011

इक बार तो यूं होगा

इक बार तो यूं होगा
थोड़ा सा सुकूं होगा

न दिल में कसक होगी
न सर में जुनूं होगा

--अज्ञात

(फिल्म : सात खून माफ)

नसीब को भी तुम इम्तिहान में रखना

जो घर में है वो तो नसीब है लेकिन
जो खो गया है उसको भी मकान में रखना

सवाल तो मेहनत से ही हल होते हैं
नसीब को भी तुम इम्तिहान में रखना

--निदा फाजली

फिर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की

प्यास की कैसे लाये ताब कोई
न हो दरिया तो हो शराब कोई

रात बजती थी दूर शेहनाई
रोया पी के बहुत शराब कोई

कौन सा ज़ख्म किसने बक्शा है
इसका रखे कहाँ तक हिसाब कोई

फिर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की
आने वाला है फिर अज़ाब कोई

--जावेद अख्तर

Monday, February 7, 2011

एक सुकून इस दिल को नसीब नहीं होता

एक सुकून इस दिल को नसीब नहीं होता
बाकी तो मोहब्बत में कुछ अजीब नहीं होता

हिज्र में तो आँखों में कट जाती थी रातें
सोना मगर वस्ल में भी नसीब नहीं होता

बहुत सुकून रहता है जिंदगी में
मोहब्बत में जब कोई भी रकीब नहीं होता

तेरा ख़याल आते ही मीर याद आ जाता है
तू पास होती है जब कोई भी करीब नहीं होता

--अमोल सहारन

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