Wednesday, May 5, 2010

जाने एक नौजवान को क्या सनक चढ़ी...

जाने एक नौजवान को क्या सनक चढ़ी...
जाने थी क्या खुराफात उसने मन मे गढ़ी...
वो जोश मे उठा और तेज़ी से चलने लगा...
एक सज्जन का तेज़ी से पीछा करने लगा...

बेचारे सज्जन भी ये देखकर बड़ा घबराए...
अपने कदम थे उन्होने बड़ी तेज़ी से बढ़ाए...
उनके काँधे पे एक छोटा सा बैग लटका था...
बस उसी मे इस नौजवान का जी अटका था...

सज्जन बैग सीने से चिपकाए ज़ोर से भागे...
लगा शायद नौजवान से निकल गये आगे...
पर वो भी दुगनी रफ़्तार से दौड़ रहा था...
सज्जन का पीछा बिल्कुल न छोड़ रहा था...

सज्जन भागकर तब रेलवे स्टेशन पहुँचे...
बड़ी तेज़ी से थे प्लॅटफॉर्म की ओर लपके...
पर उसने अभी भी उनका पीछा ना छोड़ा...
वो भी उनके पीछे पीछे प्लॅटफॉर्म पे दौड़ा...

लोग तो बस खड़े खड़े तमाशा देख रहे थे...
ओलंपिक जैसी दौड़ से आँख सेंक रहे थे...
फिर पोलीस भी कहीं से सीन मे आई...
नौजवान को पकड़ा और लाठियाँ बजाई...

पर वो सज्जन अभी शायद नही थे थके...
वो तो बस दौड़ते ही रहे और नही रुके..
पोलीस को शक हुआ तो उन्हे भी रोका...
पर वो तो दे गये पोलीस को ही धोखा...

बैग फेंका और वो भीड़ मे कहीं खो गये...
फिर जाने कहाँ वो चुपचाप चंपत हो गये...
बैग खोला तो वहाँ खड़े सब गये सहम..
उसके अंदर रखा हुआ था एक टाइम बम...

फिर तुरंत वहाँ बम निरोधक दस्ता आया...
फिर उन्होने उस बम को फटने से बचाया...
फिर बात चली नौजवान उसी का साथी है...
हो ना हो ये भी ज़रूर कोई आतंकवादी है...


फिर चार लाठियों मे ही वो बिखर गया...
उसके खुलासे से हर कोई था सिहर गया...
बोला मैं कोई आतंकवादी नही सरकार...
मैं तो हूँ बस एक अदना सा बेरोज़गार...

जाने कबसे घर मे था चूल्हा नही जला...
कोशिश की तो पर कोई काम ना मिला....
ये सब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था..
इसलिए एक कोने मे बैठा रो रहा था...

फिर मैने उसे बम रखते हुए देख लिया...
इसीलिए मैं उसके पीछे पीछे हो लिया...
सोचा था कहीं न कहीं तो ये बम फूटेगा...
बस बेरोज़गारी से वही मेरा दामन छूटेगा...

इसके धमाके मे चुपचाप मरने चला था...
परिवार के लिए आज कुछ करने चला था...
मरता तो सरकार से पैसे ही मिल जाते....
मेरे मरने से परिवार के दिन फिर जाते....

--दिलीप तिवारी

E-mail : dileep.tiwari8@gmail.com

1 comment:

  1. सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

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