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Saturday, December 14, 2019
समझने लगे वो हमें खास यूं ही
Saturday, November 16, 2019
नादानी और तजुर्बे का बटवारा हो रहा है
Thursday, October 24, 2019
Saturday, October 5, 2019
Tuesday, September 17, 2019
रोज़ रोज़ जलते हैं, फिर भी ख़ाक ना हुए
रोज़ रोज़ जलते हैं, फिर भी खाक़ न हुए,
अजीब हैं कुछ ख़्वाब भी मेरे, बुझ कर भी राख़ न हुए
--अज्ञात
Saturday, July 27, 2019
मैं प्यार के सरोवर में आग लिख रहा हूँ।
प्राणों में ताप भर दे वो राग लिख रहा हूँ
मैं प्यार के सरोवर में आग लिख रहा हूँ।
मेरी जो बेबसी है, उस बेबसी को समझो
उजडे़ हुए चमन को मैं बाग लिख रहा हूँ।
दामन पे मेरे जाने कितने लहू के छींटे
धोया न जा सके जो वो दाग लिख रहा हूँ।
दुनिया है मेरी कितनी ये तो नहीं पता, पर
धरती है मेरी जितनी वो भाग लिख रहा हूँ।
कितने अमीर होंगे दस बीस फ़ीसदी बस
कमज़ोर आदमी का मैं त्याग लिख रहा हूँ।
सब लोग मैल अपनी मल-मल के धो रहे हैं
असहाय साबुनों का मैं झाग लिख रहा हूँ
- डी. एम. मिश्र
🙏🌹🙏......
Monday, June 24, 2019
रात गुज़री हमारी सितारों के साथ
गुमनाम, अनजाने तारों के साथ
रात गुज़री हमारी सितारों के साथ
याद है, तन्हाई है, ग़म है, शब् है
अच्छी कट रही है चारों के साथ
माना होते हैं कान पर ज़ुबां तो नहीं
कबतलक करें बात दीवारों के साथ
फिक जाते हैं बनके रद्दी दिन ढलते ही
हादसा ये रोज़ होता है अख़बारों के साथ
देख तन्हा चले आते हैं मिलने हमसे
दोस्ती सी हो गई है अशआरों के साथ
खेलने बाज़ी इश्क़ की हाथ में दिल लिए
तैयार शादीशुदा भी यहाँ कुंवारों के साथ
मझधार में ही मिलेगी मंज़िलें हमारी
कर लिया हैं किनारा, किनारों के साथ
लहरें ही करेंगीं पार नैया कश्ती की
रिश्ता तोड़ दिया है पतवारों के साथ
क्या सही है और क्या ग़लत ‘अमित’
एक द्वन्द्व सी छिड़ी है विचारों के साथ
--अमित हर्ष
Friday, June 21, 2019
ये बात उस तरह भी नहीं थी
गुंजाइश, कोई जगह भी नहीं थी
बिछड़ने की .. वजह भी नहीं थी
जाने कब कैसे गाँठ पड़ गई
कहीं कोई गिरह भी नहीं थी
जिस तरह समझी है तुमने
ये बात उस तरह भी नहीं थी
वही दलील दिल, दर्द .. दूरी की
और तो कोई जिरह भी नहीं थी
शिक़स्त ही वाबस्ता थी दोनों तरफ
मेरी हार उसकी फ़तह भी नहीं थी
डूबते गए सब शायरी में जिसमें
गहराई क्या सतह भी नहीं थी
चाँद-सितारों, नींद, ख्वाबों से सजा ली
जिस रात की कोई सुबह भी नहीं थी
पास-दूर, दोस्त-दुश्मन, अज़ीज़-गैर
वो हमारी किसी तरह भी नहीं थी
जायेगी देखना प्राण लेकर ही
वैसे पीड़ा इतनी असह भी नहीं थी
जो मायने निकाले गए मेरी शायरी के
उतनी समझ तो मुझे भी नहीं थी
बिखरे पड़े थे जहन में ‘अमित’ के
ख्यालों की कोई तह भी नहीं थी
--अमित हर्ष
Thursday, June 13, 2019
पर हमें प्यार अभी से ढेर सारा आ रहा है
ये दिल फिर तुम पर हमारा आ रहा है
एक मोदी ही नहीं जो दुबारा आ रहा है
आते आते आता है आदाब-ए-इश्क़ यूँ तो
पर हमें प्यार अभी से ढेर सारा आ रहा है
वो गली वो घर कब का छोड़ चुके हैं हम
जिस पते पर अब ख़त तुम्हारा आ रहा है
ख़ुद ब ख़ुद धुल गईं हैं आँखें अश्क से
अब साफ़ नज़र हर नज़ारा आ रहा है
अब चाँद से होंगे मुख़ातिब रात तमाम
सूरज तो सुबह का थका हारा आ रहा है
तुमने तो कहा था रखना अपना ‘अमित’
पर ख़्याल क्यूँ रह रहकर तुम्हारा आ रहा है
--अमित हर्ष
Sunday, April 28, 2019
जिन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं
जिन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं
और क्या जुर्म है पता ही नहीं
इतने हिस्सों मे बंट गया हूँ मैं
मेरे हिस्से मे कुछ बचा ही नहीं
जिन्दगी मौत तेरी मंज़िल है
और तो कोई रास्ता ही नहीं
जिसके कारण फसाद होते हैं
उसका कोई अता पता ही नहीं
ज़िन्दगी, अब बता कहाँ जाये
बाज़ार मे ज़हर मिला ही नहीं
सच घटे या बढ़े, तो सच ना रहे
झूठ की कोई इन्तिहां ही नहीं
धन के हाथों बिके हैं सब कानून
अब किसी जुर्म की सज़ा ही नहीं
चाहे सोने के फ्रेम मे जड़ दो
आइना झूठ बोलता ही नहीं
-कृष्ण बिहारी नूर
Thursday, April 18, 2019
जिन्दगी सितम तेरे भी बेहिसाब रहे
ना कोई शिकवा, ना कोई गिला, ना कोई मलाल रहा;
ज़िन्दगी सितम तेरे भी बेहिसाब रहे, सब्र मेरा भी कमाल रहा!
Monday, April 8, 2019
Tuesday, March 26, 2019
और सुनाओ क्या हाल है
मालूम सबको है कि जिंदगी बेहाल है..
लोग फिर भी पूछते हैं...
"और सुनाओ क्या हाल है"..?
आप रहने दो !!!!!
दिल की ज़िद थी, कि शिकायत नहीं करनी "वर्ना" ,
तुम से तो वो गिले हैं कि बस..... आप रहने दो !!!!!