ये दिल फिर तुम पर हमारा आ रहा है
एक मोदी ही नहीं जो दुबारा आ रहा है
आते आते आता है आदाब-ए-इश्क़ यूँ तो
पर हमें प्यार अभी से ढेर सारा आ रहा है
वो गली वो घर कब का छोड़ चुके हैं हम
जिस पते पर अब ख़त तुम्हारा आ रहा है
ख़ुद ब ख़ुद धुल गईं हैं आँखें अश्क से
अब साफ़ नज़र हर नज़ारा आ रहा है
अब चाँद से होंगे मुख़ातिब रात तमाम
सूरज तो सुबह का थका हारा आ रहा है
तुमने तो कहा था रखना अपना ‘अमित’
पर ख़्याल क्यूँ रह रहकर तुम्हारा आ रहा है
--अमित हर्ष
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