गुमनाम, अनजाने तारों के साथ
रात गुज़री हमारी सितारों के साथ
याद है, तन्हाई है, ग़म है, शब् है
अच्छी कट रही है चारों के साथ
माना होते हैं कान पर ज़ुबां तो नहीं
कबतलक करें बात दीवारों के साथ
फिक जाते हैं बनके रद्दी दिन ढलते ही
हादसा ये रोज़ होता है अख़बारों के साथ
देख तन्हा चले आते हैं मिलने हमसे
दोस्ती सी हो गई है अशआरों के साथ
खेलने बाज़ी इश्क़ की हाथ में दिल लिए
तैयार शादीशुदा भी यहाँ कुंवारों के साथ
मझधार में ही मिलेगी मंज़िलें हमारी
कर लिया हैं किनारा, किनारों के साथ
लहरें ही करेंगीं पार नैया कश्ती की
रिश्ता तोड़ दिया है पतवारों के साथ
क्या सही है और क्या ग़लत ‘अमित’
एक द्वन्द्व सी छिड़ी है विचारों के साथ
--अमित हर्ष
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