तुम्हारे रास्तो से दूर रहना ...
कहाँ तक ठीक है मजबूर रहना ..
सभी के बस की बात थोड़ी है ..
नशे में इस कदर भी चूर रहना ..
न जाने किस कदम पे छोड़ेगी ..
हमारे साथ रहके दूर रहना ...
तुम्हारी याद ही तो जानती है ..
मेरे कमरे बनके नूर रहना ...
सच तो ये है मेरी तमन्ना थी ..
तुम्हारी मांग का सिंदूर रहना ..
जो मेरे पास आना चाहती है ..
वो ही कहती है मुझसे दूर रहना ...
तो क्या ठीक है मेरे दिल में ...
तुम्हारा बनके यूं नासूर रहना ..
मुझसे पूछो के इतने पत्थरो में..
कितना मुश्किल है कोहिनूर रहना ..
उसकी आदत में आ गया है अब ...
हमारे नाम से मशहूर रहना ...
मैंने तो सिर्फ इतना जाना है ...
बड़ा मुश्किल है तुझसे दूर रहना ..
कभी इसा कभी सुखरात बनना ..
कभी सरमद कभी मंसूर रहना ..
ये शायरी नहीं तज्जली है ..
ज़हन ऐसे ही कोहेतूर रहना ..
'सतलज' हम तुझे पहचानते हैं ..
तुझे हक है युही मगरूर रहना .
--सतलज राहत
If you know, the author of any of the posts here which is posted as Anonymous.
Please let me know along with the source if possible.
Tuesday, November 12, 2013
कहाँ तक ठीक है मजबूर रहना ..
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment