Sunday, March 25, 2012

के पैसे को ही क्यों,बदनाम करते हो..!

न तर्क होने के,न विचार होने के...!
दुखड़े कई है,बेरोजगार होने के...!!

प्रतिशद फैसला करे है जिंदगानी का..!
फायेदे मामूली है,होशियार होने के..!!

के पैसे को ही क्यों,बदनाम करते हो..!
मसले तो बहुत है,तकरार होने के...!

गम-ए-रोजगार से निकल कर कहा जाये..!
करे है होसले परवरदिगार होने के..!!

अपने सितारे भी क्या कमजोर हुए ''बेदिल''..!
जाते रहे मोके नाम वार होने के...!!!

बेदिल शाहपुरी

1 comment:

  1. के पैसे को ही क्यों,बदनाम करते हो..!
    मसले तो बहुत है,तकरार होने के...!
    WAH!!!

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