कभी कभी यूं ही रो पड़ती हैं ये आंखें
उदास होने का हमेशा कोई सबब नही होता
--अज्ञात
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Tuesday, August 30, 2011
कभी कभी यूं ही रो पड़ती हैं ये आंखें
Monday, August 29, 2011
बदनाम है फिरदौस इस जहाँ में जिनके वासते
बदनाम है फिरदौस इस जहाँ में जिनके वासते
वो दिल जानता ही नहीं, फिरदौस किस का नाम है
Sunday, August 28, 2011
दिल में अब यूँ तेरे भूले हुये ग़म आते हैं
दिल में अब यूँ तेरे भूले हुये ग़म आते हैं
जैसे बिछड़े हुये काबे में सनम आते हैं
इक इक कर के हुये जाते हैं तारे रौशन
मेरी मन्ज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते हैं
रक़्स-ए-मय तेज़ करो, साज़ की लय तेज़ करो
सू-ए-मैख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते हैं
कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग
वो तो जब आते हैं माइल-बा-करम आते हैं
और कुछ देर ना गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो
दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते हैं
--फैज़ अहमद फैज़
Source : http://www.urdupoetry.com/faiz24.html
दिल में अब यूं तेरे भूले हुए ग़म आते हैं
दिल में अब यूं तेरे भूले हुए ग़म आते हैं
जैसे बिछड़े हुए क़ाबे में सनम आते हैं
--फैज़ अहमद फैज़
आप ही अपनी अदाओं पे ज़रा गौर करें फराज़
आप ही अपनी अदाओं पे ज़रा गौर करें फराज़
हम अगर अर्ज़ करेंगे, तो शिकायत होगी
--अहमद फराज़
तेरी बेरूखी का शिकवा मैं किस से करूँ फराज़
तेरी बेरूखी का शिकवा मैं किस से करूँ फराज़
यहाँ हर शक्स तुझे मेरा महबूब समझता है
--अहमद फ़राज़
ये बार बार जो आंखों को मल के देखते हैं
अभी कुछ और करिश्में गज़ल के देखते हैं
फ़राज़ अब ज़रा लहज़ा बदल के देखते हैं
तू सामने है, तो फिर क्यूँ यकीन नहीं आता
ये बार बार जो आंखों को मल के देखते हैं
--अहमद फ़राज़
सिर्फ़ चहरे की उदासी से भर आये आँसू फ़राज़
सिर्फ़ चहरे की उदासी से भर आये आँसू फ़राज़
दिल का आलम तो अभी आपने देखा ही नही
--अहमद फ़राज़
कुछ तो फ़राज़ हमने पलटने मे देर की
कुछ तो फ़राज़ हमने पलटने मे देर की
कुछ उसने इन्तज़ार ज़्यादा नहीं किया
--अहमद फ़राज़
हमने सोचा के दो चार दिन की बात होगी लेकिन
हमने सोचा के दो चार दिन की बात होगी लेकिन
तेरे ग़म से तो उम्र भर का रिश्ता निकल आया
--अहमद फ़राज़
हम इस गुरूर में रहते हैं कि हम अपनी ही चीज़ें मांगा नही करते
वो इस अना में रहते हैं कि हम उनको उन से मांगें फ़राज़
हम इस गुरूर में रहते हैं कि हम अपनी ही चीज़ें मांगा नही करते
--अहमद फ़राज़
सोचा था ये सवाल, न सोचा करेंगें हम
वो किस तरह मिला था, जुदा कैसे हो गया फ़राज़
सोचा था ये सवाल, न सोचा करेंगें हम
--अहमद फ़राज़
कुछ तो होता है मोहब्बत में जुनून का असर फ़राज़
कुछ तो होता है मोहब्बत में जुनून का असर फ़राज़
और कुछ लोग दीवाना बना देते हैं
--अहमद फ़राज़
यूँ ही इसे लोग मोहब्बत समझ बैठे फ़राज़
यूँ ही इसे लोग मोहब्बत समझ बैठे फ़राज़
वो शक्स मुझे जान से प्यारा है और बस
--अहमद फ़राज़
यूँ ही इसे लोग मोहब्बत समझ बैठे हैं फ़राज़
यूँ ही इसे लोग मोहब्बत समझ बैठे हैं फ़राज़
वो शक्स मुझे जान से प्यारा है और बस
--अहमद फराज़
अब तो इस कदर बेगैरतें बढ़ गयी है फ़राज़
अब तो इस कदर बेगैरतें बढ़ गयी है फ़राज़
शेर किसी का हो नाम मेरा ठोक देते है
--अज्ञात
कितने मसरूफ सभी यार पुराने निकले
हम भी असीम की तरह कितने दीवाने निकले
उस के दर पर इसी उम्मीद पे बैठा हूँ फ़क़त
काश खैरात ही करने के बहाने निकले
मेरे दुःख दर्द को सुनने का नहीं वक़्त इन्हें
कितने मसरूफ सभी यार पुराने निकले
सारे कन्धों पे है ज़ंजीर-ए-गुलामी का वज़न
कौन गैरत का जनाज़े को उठाने निकले
ख्वाब में गम है खुली आँख से ये कौम मेरी
है यही वक़्त कोई इसको जगाने निकले
पर्दा-ए-गैब में बैठा है जो हादी असीम
उसको आवाज़ दो अब दीं बचाने निकले
--असीम कौमी
Saturday, August 27, 2011
इतना टूटा हूँ के छूने से बिखर जाऊँगा
इतना टूटा हूँ के छूने से बिखर जाऊँगा
अब अगर और दुआ दोगे तो मर जाऊँगा
--अज्ञात
एक बहुत मशहूर गज़ल भी है इस पर...
मैं तो इसी में खुश हूँ, के तुम खुश हो वरना
मैं तो इसी में खुश हूँ, के तुम खुश हो वरना
उठा लूं हाथ अगर दुआ के लिए तो, तुम अब भी मेरे हो जाओगे
--अज्ञात
Thursday, August 25, 2011
एक ये ख्वाहिश के कोई ज़ख्म न देखे दिल का
एक ये ख्वाहिश के कोई ज़ख्म न देखे दिल का
एक ये हसरत कि कोई देखने वाला होता
--जावेद अख्तर
Source : https://www.facebook.com/JavedAkhtarJadoo?sk=wall
Sunday, August 21, 2011
तेरी बेरुखी का शिकवा मैं किस से करूँ
तेरी बेरुखी का शिकवा मैं किस से करूँ
यहाँ हर शक्स तुझे मेरा दोस्त समझता है
--अज्ञात
तुम आये तो इस रात की औकात बनेगी
सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आये तो इस रात की औकात बनेगी
उनसे यही कह आये कि हम अब न मिलेंगे
आखिर कोई तरकीब-ए-मुलाक़ात बनेगी
ये हम से न होगा के किसी एक को चाहें
ए-इश्क ! हमारी न तेरे साथ बनेगी
हैरत कदा-ए-हुस्न कहाँ है अभी दुनिया
कुछ और निखार ले तो तिलिस्मात बनेगी
ये क्या के बढते चलो, बढते चलो आगे
जब बैठ के सोचेंगे तो कुछ बात बनेगी
--जान निसार अख्तर
Saturday, August 20, 2011
सांस भी लूं तो उसकी महक आती है
सांस भी लूं तो उसकी महक आती है
उसने ठुकराया है मुझे इतना करीब आने के बाद
--अज्ञात
कल यही ख्वाब हकीकत में बदल जायेंगे
कल यही ख्वाब हकीकत में बदल जायेंगे
आज तो ख़्वाब फक़त ख़्वाब नज़र आते हैं
--जान निसार अख्तर
Sunday, August 14, 2011
अब किसी शक्स की आदत नहीं होती मुझको
अब तेरी याद से वेहशत नहीं होती मुझको
ज़ख्म खुलते हैं, अजीयत नहीं होती मुझको
अब कोई आये, चला जाए, मैं खुश रहता हूँ
अब किसी शक्स की आदत नहीं होती मुझको
ऐसा बदला हूँ, तेरे शहर का पानी पी कर
झूठ बोलूँ तो नदामत नहीं होती मुझको
है अमानत में खयानत, सो किसी की खातिर
कोई मरता है तो हैरत नहीं होती मुझको
इतना मसरूफ हूँ जीने की हवस में मोहसिन
सांस लेने की भी फुरसत नहीं होती मुझको
--मोहसिन नकवी
Monday, August 8, 2011
तुझे महसूस ही करना है मुझको
तेरे वादों मे जब तक दम रहेगा
ये मेरा हौंसला कायम रहेगा
तेरे अंदर वही हवा रहेगी
मेरे अंदर वही आदम रहेगा
ज़माना चाहतों का आ गया है
कई दिन तक यही मौसम रहेगा
तुझे महसूस ही करना है मुझको
तुझे लिखने लगूं तो कम रहेगा
सोच पथरा गई हैं सब की सब
तेरा ख्याल पर रेशम रहेगा
कुछ दिनों तो हुमारे साथ थीं तुम
बहुत दिन अब तुम्हारा गम रहेगा
मेरी पेशनी पे ये बल रहेगा
तुम्हारी ज़ुलफ मे ये ख़म रहेगा
कोई भी ज़ख़्म दे मुझे लेकिन
तुम्हारे पास ही मरहम रहेगा
ख्वाब आयेंगे पर बेजान हो कर
दिल भी धड़केगा पर बेदम रहेगा
मेरे बगैर तेरे शानो पर
जो भी आँचल रहेगा, नम रहेगा
रात अपनी पे उतर आई है
सवेरे हर तरफ मातम रहेगा
ये भी दिल तोड़ क जायेगी एक दिन
मुझे इस बात का भी गम रहेगा
बिछड़ के टूट-फूट जाऊंगा
तुझे अफ़सोस थोड़ा कम रहेगा
'सतलज' तेरी ही जयकार होगी
'सतलज' तेरा ही परचम रहेगा!!!
--सतलज राहत
Friday, August 5, 2011
चंद सिक्कों में बिक जाता है यहाँ ज़मीर इंसान का
चंद सिक्कों में बिक जाता है यहाँ ज़मीर इंसान का
कौन कहता है मेरे देश में महंगाई बहुत है
--अज्ञात