हलक़ में अपनी ज़ुबान रखता हूँ !
मैं चुप हूँ कि तेरा मान रखता हूँ !
मेरी बुलंदियों से रश्क कर तू भी
मैं ठोकर में आसमान रखता हूँ !
--अज्ञात
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Saturday, April 30, 2011
मैं ठोकर में आसमान रखता हूँ !
ये मेरे दिल पे घाव कैसा है !!
उम्र का ये पड़ाव कैसा है !
ख्वाहिशों का अलाव कैसा है !!
हसरतें टूट कर बिखर जाये ,
काइदों का दबाव कैसा है !!
जो कभी सूख ही नहीं पाता,
ये मेरे दिल पे घाव कैसा है !!
मैं उलझ कर फंसा रहा जिनमें,
इन लटों का घुमाव कैसा है !!
जिसको देखो बहा ही जाता है,
इस नदी का बहाव कैसा है!!
बेमज़ा जिंदगी है इसके बिन,
तेरे ग़म से लगाव कैसा है!!
कर चुके दफ़्न अर्श ख्वाबों को
फिर ये जीने का चाव कैसा है!!
--अर्श
Source : http://prosingh.blogspot.com/2011/04/blog-post.html
सज़ा बन जाती है गुज़रे वक़्त की यादें
सज़ा बन जाती है गुज़रे वक़्त की यादें
न जाने क्यों छोड़ जाने के लिए मेहरबान होते हैं लोग
--अज्ञात
Wednesday, April 20, 2011
लौट आती है मेरी शब की इबादत खाली
लौट आती है मेरी शब की इबादत खाली ....
जाने किस अर्श पे रहता है खुदा शाम के बाद...
--अज्ञात
Sunday, April 10, 2011
ना हमने बुलाया था तो तुम ही बुला लेते
रिश्तों की हकीकत ये कुछ ऐसे निभा लेते
ना हमने बुलाया था तो तुम ही बुला लेते
दिल में शिकवे थे अगर आते तो कभी एक दिन
कुछ तुम भी कह लेते कुछ हम भी सुना लेते
गुमसुम से ना रहते फिर रातों में अक्सर
डरते जो कभी ख्वाबों में हम तुम को बुला लेते
उजड़ा सा है आँगन भी, है बिना लिपा चूल्हा
तुम साथ अगर होते इस घर को सजा लेते
ना हमने बुलाया था तो तुम ही बुला लेते
कुछ तुम भी कह लेते कुछ हम भी सुना लेते.....
--अज्ञात
Monday, April 4, 2011
ये लड़का कब होगा सयाना क्या पता
मुझे मालूम है तेरे घर का पता
कहाँ है मेरा आशियाना क्या पता
ख़ुदकुशी ही कहीं दुश्वारियों का हल तो नहीं ?
ये इश्क ही न हो मौत का बहाना क्या पता
हर एक को राज़-ए-दिल बता देता है
ये लड़का कब होगा सयाना क्या पता
यु ही बेड के साथ हो लिए हम भी
किस की जीत का है जयकारा क्या पता !!
--अमोल सहारन