मुख़्तसर सी थी सो शुरुआत लम्बी कर दी
कुछ इस तरह से हमने बात लम्बी कर दी
सुबह तलक टूट जायेंगे मालूम था ख़्वाब
बस इस ख़ातिर खींचकर रात लम्बी कर दी
ऐ ज़िन्दगी तुझसे मिलकर अच्छा तो लगा
पर तूने बेवजह मुलाक़ात लम्बी कर दी
छाई कुछ यूँ कि घटती ही नहीं तनिक
घटा ने बढ़ाकर बरसात लम्बी कर दी
बात बात में ‘अमित’ ये छोटी सी ग़ज़ल
तुमने देखो बिना-बात लम्बी कर दी
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