Wednesday, September 12, 2018

*पत्थर का हो चुका अब मजे से उछाल लेता हूँ...*

*तजुर्बे के मुताबिक़ खुद को ढाल लेता हूँ,*
*कोई प्यार जताए तो जेब संभाल लेता हूँ...*

*नहीं करता थप्पड़ के बाद दूसरा गाल आगे,*
*खंजर खींचे कोई तो तलवार निकाल लेता हूँ...*

*वक़्त था सांप की परछाई डरा देती थी,*
*अब एक आध मैं आस्तीन में पाल लेता हूँ...*

*मुझे फांसने की कहीं साजिश तो नहीं,*
*हर मुस्कान ठीक से जांच पड़ताल लेता हूँ...*

*बहुत जला चुका उंगलियां मैं पराई आग में,*
*अब कोई झगड़े में बुलाए तो मैं टाल देता हूँ...*

*सहेज के रखा था दिल जब शीशे का था,*
*पत्थर का हो चुका अब मजे से उछाल लेता हूँ...*

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