एक यह ज़िद कि कोई ज़ख्म न देख पाए दिल के मेरे
और एक यह हसरत कि काश कोई देखने वाला होता
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एक यह ज़िद कि कोई ज़ख्म न देख पाए दिल के मेरे
और एक यह हसरत कि काश कोई देखने वाला होता
उसी की तरहा मुझे सारा ज़माना चाहे ,
वो मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे ?.
मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा ,
ये मुसाफिर तो कोई और ठिकाना चाहे .
एक बनफूल था इस शहर में वो भी ना रहा,
कोई अब किस के लिए लौट के आना चाहे .
ज़िन्दगी हसरतों के साज़ पे सहमा-सहमा,
वो तराना है जिसे दिल नहीं गाना चाहे .
हम अपने आप से कुछ इस तरह हुए रुखसत,
साँस को छोड़ दिया जिस तरफ जाना चाहे .
--Unknown...
ख़याल से भी खूबसूरत था वो , ख़्वाब से ज्यादा नाजुक
गवां दिया हमने ही उसको , देर तक आज़माने में ..
चाँद चेहरा जुल्फ दरिया , बात खुशबू, दिल चमन
एक तुझे देकर खुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे
#बशीर_बद्र
मौत उसकी जिसका ज़माना करे अफ़सोस
यूं तो सभी आये हैं दुनिया में मरने के लिए
जो लौट आएं तो कुछ कहना नहीं बस देखना उन्हें गौर से
जिन्हें मंज़िलों पे खबर हुई के ये रास्ता कोई और था
--अज्ञात
भूलने लगे जो विसाल-ए-यार गुज़रे
लम्हात-ए-याद मगर यादग़ार गुज़रे
कट गई तमाम शब देखते देखते
रात तेरे ख्वाब .. मददगार गुज़रे
फ़क़त एक इश्क़ से घबरा गए आप
ये हादसे संग मेरे .. कई बार गुज़रे
मिलो तुम हरदम महंगाई की तरह
उम्मीद लिए हम सरे-बाज़ार गुज़रे
ज़रुरतमंद हूँ ये ख़बर क्या फ़ैली
बचकर सरेराह दोस्त-यार गुज़रे
मुफ़्त अच्छी है शायरी ‘अमित’ की
कहते हुए दर से मेरे खरीदार गुज़रे
--अमित हर्ष
दायरा हर बार बनाता हूं ज़िदगी के लिए
लकीरें वहीं रहती है, मैं खिसक जाता हूं
तज़ुर्बा कहता है मोहब्बत से किनारा कर लूँ
और दिल कहता है ये तज़ुर्बा दोबारा कर लूँ
तअल्लुका़त की क़ीमत चुकाता रहता हूँ
मैं उसके झूठ पे भी मुस्कुराता रहता हूँ
मगर ग़रीब की बातों को कौन सुनता है
मैं बादशाह था सबको बताता रहता हूँ
ये और बात कि तनहाइयों में रोता हूँ
मगर मैं बच्चों को अपने हँसाता रहता हूँ
तमाम कोशिशें करता हूँ जीत जाने की
मैं दुशमनों को भी घर पे बुलाता रहता हूँ
ये रोज़-रोज़ की *अहबाब से मुलाक़ातें
मैं आप क़ीमते अपनी गिराता रहता हूँ
हसीब सोज़
मुद्दतो बाद आज फिर परेशान हुआ है दिल,
जाने किस हाल में होगा मुझसे रुठने वाला...
अज्ञात
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
पहले सेमरस्सिम ना सही फिर भी कभी तो
रस्मो राहे दुनिया ही निभाने के लिए आ
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे खफा है तो जमाने के लिए आ
कुछ मेरे पिंडारे मुहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मानने के लिए आ
एक उमरा से हूँ लज़्जते गिरिया से भी महरूम
आईराहत-ए-जान मुझको रुलाने के लिए आ
ऐब तक दिले खुश-फहम को हैं तुझ से उम्मीदें
यह आख़िरी शमा भी बुझाने के लिए आ
माना की मुहब्बत का छिपाना है मुहब्बत
चुपके से किसी रोज जताने के लिए आ
जैसे तुझे आते हैं ना आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज ना जाने के लिए आ
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
उसने भी छोड़ दी मेरे बारे मे गुफ्तगू
कुछ दिन के बाद मैं भी उसे भूल-सा गया
दिल-ए-नादान की ज़िद है के तेरा साथ रहे
मर्ज़ी-ए-वक़्त कहता है के बिछड़ना होगा