रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
पहले सेमरस्सिम ना सही फिर भी कभी तो
रस्मो राहे दुनिया ही निभाने के लिए आ
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे खफा है तो जमाने के लिए आ
कुछ मेरे पिंडारे मुहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मानने के लिए आ
एक उमरा से हूँ लज़्जते गिरिया से भी महरूम
आईराहत-ए-जान मुझको रुलाने के लिए आ
ऐब तक दिले खुश-फहम को हैं तुझ से उम्मीदें
यह आख़िरी शमा भी बुझाने के लिए आ
माना की मुहब्बत का छिपाना है मुहब्बत
चुपके से किसी रोज जताने के लिए आ
जैसे तुझे आते हैं ना आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज ना जाने के लिए आ
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
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Wednesday, February 24, 2016
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
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