भूलने लगे जो विसाल-ए-यार गुज़रे
लम्हात-ए-याद मगर यादग़ार गुज़रे
कट गई तमाम शब देखते देखते
रात तेरे ख्वाब .. मददगार गुज़रे
फ़क़त एक इश्क़ से घबरा गए आप
ये हादसे संग मेरे .. कई बार गुज़रे
मिलो तुम हरदम महंगाई की तरह
उम्मीद लिए हम सरे-बाज़ार गुज़रे
ज़रुरतमंद हूँ ये ख़बर क्या फ़ैली
बचकर सरेराह दोस्त-यार गुज़रे
मुफ़्त अच्छी है शायरी ‘अमित’ की
कहते हुए दर से मेरे खरीदार गुज़रे
--अमित हर्ष
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