Thursday, September 19, 2013

सबको ही प्यार की ज़रुरत है

सबको ही प्यार की, बस प्यार की ज़रुरत है
अब तो हर एक को दो चार की ज़रुरत है

लगा के फोन मुझे...मेरे दुश्मनों ने कहा
हमारे कुनबे को सरदार की ज़रुरत है

जब मेरी बाहों में बसी है तुम्हारी दुनिया
किस लिए फिर तुम्हें संसार की ज़रुरत है

अब तो सब देने को क़दमों में पड़ी है दुनिया
अब तो बस जुर्रत-ए-इनकार की ज़रुरत है

बस इसी वास्ते दुनिया में जंग जारी है
हमको सर की नहीं दस्तार की ज़रुरत है

ये दिल मेरा है, इसे तुम संभाल के रख लो
काम आएगा तुम्हे प्यार की ज़रुरत है

बुला रही ग़ज़ल आ भी जा मेरे सतलज
तेरे जैसे किसी अवतार की ज़रुरत है

--सतलज राहत

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