मुफ्त का एहसान न लेना यारो
दिल अभी और सस्ते होंगे
--अज्ञात
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खामोशी को पकड़ रहा है तू
सबकी आँखों में गढ़ रहा है तू
उसकी बातों में गोल चक्कर है
किसके चक्कर में पड़ रहा है तू
क्या हुआ क्यूं झुकाए है नज़रें
बात क्या है बिगड़ रहा है तू
ठीक है हो गया जो होना था
क्या सही है जो लड़ रहा है तू
--अर्घ्वान रब्भी
हद तक सताना भी खूब आता है
उनको मनाना भी खूब आता है
गुस्से मे होते हैं जब कभी हम
उनको मुस्कुराना भी खूब आता है
प्यार तो करती हैं हमसे बेपनाह
ये उनको छुपाना भी खूब आता है
लड़ती है अक्सर हमसे हमारे खातिर
प्यार उनको जताना भी खूब आता है
थक के सो जाने को जी करे तब वो
उनकी यादों का सिरहाना भी खूब आता है
किस तरह बयाँ करूँ अपना हाल-ए-दिल दीपक
--दीपक सिन्हा
सबको ही प्यार की, बस प्यार की ज़रुरत है
अब तो हर एक को दो चार की ज़रुरत है
लगा के फोन मुझे...मेरे दुश्मनों ने कहा
हमारे कुनबे को सरदार की ज़रुरत है
जब मेरी बाहों में बसी है तुम्हारी दुनिया
किस लिए फिर तुम्हें संसार की ज़रुरत है
अब तो सब देने को क़दमों में पड़ी है दुनिया
अब तो बस जुर्रत-ए-इनकार की ज़रुरत है
बस इसी वास्ते दुनिया में जंग जारी है
हमको सर की नहीं दस्तार की ज़रुरत है
ये दिल मेरा है, इसे तुम संभाल के रख लो
काम आएगा तुम्हे प्यार की ज़रुरत है
बुला रही ग़ज़ल आ भी जा मेरे सतलज
तेरे जैसे किसी अवतार की ज़रुरत है
--सतलज राहत
पूछा न जिंदगी में किसी ने भी दिल का दुःख
शहर भर में ज़िक्र मेरी ख़ुदकुशी का है ।
--अज्ञात
नज़र नज़र का फर्क होता है हुस्न का नहीं
महबूब जिसका भी हो बेमिसाल होता है
--अज्ञात
दुनिया में तो कोई और भी होगा तेरे जैसा
पर हम, तुझे चाहते हैं, तेरे जैसों को नहीं
--अज्ञात