न तर्क होने के,न विचार होने के...!
दुखड़े कई है,बेरोजगार होने के...!!
प्रतिशद फैसला करे है जिंदगानी का..!
फायेदे मामूली है,होशियार होने के..!!
के पैसे को ही क्यों,बदनाम करते हो..!
मसले तो बहुत है,तकरार होने के...!
गम-ए-रोजगार से निकल कर कहा जाये..!
करे है होसले परवरदिगार होने के..!!
अपने सितारे भी क्या कमजोर हुए ''बेदिल''..!
जाते रहे मोके नाम वार होने के...!!!
बेदिल शाहपुरी
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Sunday, March 25, 2012
के पैसे को ही क्यों,बदनाम करते हो..!
Sunday, March 18, 2012
आंधी से कोई कह दे कि औकात में रहे
सूरज , सितारे , चाँद मेरे साथ में रहे
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे
और शाखों जो टूट जाये वो पत्ते नही है हम
आंधी से कोई कह दे कि औकात में रहे
--राहत इंदोरी
वो ही महसूस करते है तपिश दर्द-ए-दिल की फ़राज
वो ही महसूस करते है तपिश दर्द-ए-दिल की फ़राज
जो अपने आप से बढ कर किसी से प्यार करते है
--अहमद फराज़
Wednesday, March 14, 2012
रो पड़ा था वो .... मुस्कुराने से पहले
खुश हूँ तेरे बगैर ..... बताने से पहले
रो पड़ा था वो .... मुस्कुराने से पहले
हो न जायें जाया ... सब ‘एहसान’ तेरे
ज़रा सोच लेना .. तुम जताने से पहले
--अमित हर्ष
इस बात पर भी उसे ....... 'ऐतराज' रहता है
मान जाए ‘कल’ शायद पर .. ‘आज’ रहता है
वो इन दिनों .. कुछ हमसे ‘नाराज़’ रहता है
हर बात से उसकी ...... 'इत्तेफाक' रखता हूँ
इस बात पर भी उसे ....... 'ऐतराज' रहता है
--अमित हर्ष
Sunday, March 4, 2012
और मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
एक एक लव्ज़ का मफ़हूम बदल रखा है
आज से हमने तेरा नाम गज़ल रखा है
और मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक ताजमहल रखा है
--राहत इंदोरी
अभी मसरूफ हूँ काफी, कभी फुरसत में सोचूंगा
अभी मसरूफ हूँ काफी, कभी फुरसत में सोचूंगा
के तुझको याद करने में, मैं क्या क्या भूल जाता हूँ
--अज्ञात
हम जा रहे हैं वहाँ, जहाँ दिल की कदर हो
हम जा रहे हैं वहाँ, जहाँ दिल की कदर हो
बैठे रहो तुम अपनी अदाएं लिए हुए
--अज्ञात
हमारा तजकिरा छोडो, हम ऐसे लोग हैं जिन को
हमारा तजकिरा छोडो, हम ऐसे लोग हैं जिन को
मोहब्बत कुछ नहीं कहती, वफायें मार जाती हैं
--अज्ञात
मोहब्बत नहीं है क़ैद मिलने या बिछड़ने की
मोहब्बत नहीं है क़ैद मिलने या बिछड़ने की
ये इन खुदगर्ज़ लफ़्ज़ों से बहुत आगे की बात है
--अज्ञात
कितनी बदनाम है बाज़ार-ए-मोहब्बत में वफ़ा
कितनी बदनाम है बाज़ार-ए-मोहब्बत में वफ़ा
लोग इस चीज़ के पास आ के चले जाते हैं
--अज्ञात
तुम्हारे पास नहीं तो फिर किसके पास है
तुम्हारे पास नहीं तो फिर किसके पास है
वो टूटा हुआ दिल आखिर गया कहाँ..
--अज्ञात
पर बातें वो ..... ‘जहीन’ करता है
तस्वीर यादों की .. रंगीन करता है
बारीकियों को और महीन करता है
महज़ हरक़तें .. ‘नागवार’ है थोड़ी
पर बातें वो ..... ‘जहीन’ करता है
--अमित हर्ष
[ज़हीन=serious/गहरी]