Saturday, October 17, 2015

कभी हो मुखातिब ...

कभी हो मुखातिब तो कहूँ क्या मर्ज़ है मेरा,
अब तुम ख़त में पूछोगे तो खैरियत ही कहेंगे...

अज्ञात

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